टेसू-झांझी का खेल अब बीते दिनों की बात
जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): टेसू और झांझी का खेल, उनका विवाह और घर-घर जाकर गीत गाने की परंपरा
जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): टेसू और झांझी का खेल, उनका विवाह और घर-घर जाकर गीत गाने की परंपरा अब घट रही हैं। अल्प संख्या में सिमट चुके इस खेल को बचाने की जरूरत आन पड़ी है। आधुनिक परिवेश में इसे मात्र खिलौने के रूप में ही जाना जाने लगा है। टेसू और झांझी का विवाह शहर की पिछड़ी बस्तियों और गांवों तक सिमट गया है।
दरअसल दशहरा पर्व के पहले टेसू-झांझी का खेल और दशहरा पर्व पर उनका किया जाने वाल विवाह हमारे समाज की पौराणिक संस्कृति से जुड़ा है। इस बारे में वृंदावन शोध संस्थान के पूर्व संरक्षण अधिकारी आचार्य वृंदावन बिहारी कहते हैं कि ब्रज में साढ़े पांच सौ सालों का इतिहास बताता है कि ब्रज में टेसू और झांझी का विवाह दशहरा पर्व के दौरान होता रहा है। छोटे-छोटे बच्चे टेसू और झांझी को लेकर घर-घर जाते और पारंपरित गीत गाते। इसके बाद घर के लोग उन्हें अनाज या पैसे देते।
नौ दिन तक वे शाम के समय टेसू- झाझी का भम्रण कराने के बाद दशहरा वाले दिन इनका विवाह संपन्न कराते हैं। बाद में इनका यमुना में विसर्जन कर दिया जाता है।
बदल गया जमाना
टेसू-झाझी विवाह परंपरा का निर्वाह अब कम होता जा रहा है, यह कहना है आचार्य बद्रीश का। वे बताते हैं कि आधुनिकता में लोग इस परंपरा को भूलने लगे हैं। जबकि टेसू-झाझी विवाह हमारी पौराणिक परंपरा का अंग हैं।