यमुना को नहीं मिल रहा न्याय
जागरण संवाददाता, मथुरा। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण को गंगा के साथ यमुना की शुद्धि के प्रयास भी करने थे, पर यह प्राधिकरण के कार्यक्रम तक ही सीमित रह गया है और अभी भी यमुना एवं उसकी सहायक नदियों की सफाई के बिना गंगा शुद्धि के दावे किए जा रहे हैं।
बीते दिनों दिल्ली में हुए गंगा मंथन में यमुना प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले भी बुलाए गए, पर बोलने का मौका नहीं दिया गया। जो लोग शिरकत करने गए, उनकी मानें तो यमुना प्रदूषण के प्रति मंथन हुआ ही नहीं। मुद्दा केवल गंगा तक सीमित रहा। हालांकि जल संसाधन और नदी विकास मंत्री उमा भारती ने ब्रजवासियों को आश्वस्त किया है कि गंगा प्रदूषण के साथ यमुना भी एजेंडे में शामिल है और उन्होंने एडीशनल सेक्रेटरी स्तर की कमेटी बनाकर रिपोर्ट भी मांग ली है।
इसी प्रकार राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण ने यमुना के मुद्दे पर एक इंच आगे की कार्यवाही नहीं की है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गठित प्राधिकरण कोई एक्शन ही नहीं ले सका था। इससे कुपित होकर कई पर्यावरणविद् प्राधिकरण की सदस्यता भी छोड़ चुके हैं।
गंगा के सापेक्ष यमुना को नजरंदाज करने के कारण ही यमुना कार्ययोजना देश की उच्च अदालतों ने गठित कराई। 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी गंगा एक्शन प्लान लाए, लेकिन यमुना पर ध्यान नहीं दिया, सो बाद में अदालती आदेश पर 1993 में यमुना कार्ययोजना लागू की गई। अब भी यही हो रहा है, इससे ब्रजवासी निराश हैं। उनका कहना है कि यमुना के शुद्ध हुए बिना गंगा साफ नहीं हो सकती। क्योंकि कानपुर से लेकर इलाहाबाद तक भले ही गंगा साफ कर ली जाए, इलाहाबाद के संगम पर 90 फीसद यमुना का ही पानी है।
यमुना कार्ययोजना के याची गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि गंगा और उसकी सहायक नदियों को साफ करने का एजेंडा तो सरकार ने लिया है, जिसमें यमुना मुख्य है, पर यमुना के प्रति संवेदनशीलता अभी तक नहीं दिखी है। यमुना और उसकी सहायक हिंडन, काली, चंबल और बेतवा आदि का भी प्रमुखता से संज्ञान लिया जाना चाहिए।
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