वो युवा जिसे शिक्षा देने का जुनून
मैनपुरी: उसकी उम्र महज 16 साल है। लेकिन उसमें समाज को शिक्षित करने का जुनून है। खुद इंटरमीडिएट उत
मैनपुरी: उसकी उम्र महज 16 साल है। लेकिन उसमें समाज को शिक्षित करने का जुनून है। खुद इंटरमीडिएट उत्तीर्ण ऋषभ दो साल से सरकारी पाठशाला के बच्चों को न केवल मुफ्त में संस्कृत का पाठ पढ़ाते हैं बल्कि उन्हें नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी देते हैं। कदम केवल पढ़ाने तक नहीं रुके, स्कूल में पढ़ाई का माहौल बनाने के लिए भी ऋषभ सरकारी शिक्षकों की ओर नहीं देखते।
सुल्तानगंज विकास खंड के गांव रजवाना में रहने वाले ऋषभ प्रताप ¨सह ने इसी वर्ष इंटरमीडिएट की परीक्षा 86 फीसद अंकों से उत्तीर्ण की है। उनको संस्कृत विषय का अच्छा ज्ञान है। बच्चों को शिक्षित करने का जुनून उनमें शुरु से ही था। इसी जुनून ने उनके कदम गांव के सरकारी स्कूल की ओर बढ़ा दिए। दो साल से वह स्कूल में बच्चों को दो से तीन घंटे रोज संस्कृत पढ़ा रहे हैं। पढ़ाने का वहएक भी पैसा नहीं लेते। 188 बच्चों वाले इस स्कूल में केवल दो शिक्षक हैं। ऐसे में ऋषभ की पाठशाला से शिक्षकों को भी लाभ मिलता है। संस्कृत पढ़ाने के साथ वह बच्चों को नैतिक संस्कारों की शिक्षा भी देते हैं। शिक्षा के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए वह तरह-तरह के मॉडल बनाकर बच्चों को उसके जरिए पढ़ाते हैं। ऋषभ की लगन से गदगद उनके पिता कहते हैं कि बेटे को पढ़ाने की लगन है, इससे ज्यादा खुशी की बात मेरे लिए क्या हो सकती है। उनके पिता महेंद्र प्रताप सिंह जिला अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर प्रभारी हैं। प्रधानाध्यापक इशरत अली बताते हैं कि स्कूल में शिक्षकों की कमी हैं। ऋषभ नियमित बच्चों को संस्कृत पढ़ाने आते हैं। अच्छी पढ़ाई के कारण स्कूल को राज्य पुरस्कार के लिए भी इस वर्ष चयनित किया गया है।
हाथों के हुनर के सभी कायल
ऋषभ केवल बच्चों को पढ़ाते ही नहीं बल्कि, वह हाथों के हुनरमंद भी हैं। किसी को भी सामने बैठाकर उसकी मिट्टी की मूर्ति बनाना उनके बाएं हाथ का खेल है। खास बात यह है कि मूर्ति बनाने की कला उन्होंने किसी से नहीं सीखी। बचपन में मिट्टी से आकृतियां बनाते बनाते कब हाथ हुनरमंद हो गए उन्हें पता ही नहीं चला। उनके हुनर को देख पिता ने उनका दाखिला आगरा में फाइन आर्ट में करा दिया हैं।