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मुकदमे में गुजरी जवानी, बुढ़ापे तक न आया फैसला

मैनपुरी: केस नंबर -1: आलीपुर निवासी बलवीर सहाय का भूमि पर स्वामित्व का एक मुकदमा 1974 में चकबं

By Edited By: Published: Wed, 27 Apr 2016 08:27 PM (IST)Updated: Wed, 27 Apr 2016 08:27 PM (IST)
मुकदमे में गुजरी जवानी, बुढ़ापे तक न आया फैसला

मैनपुरी:

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केस नंबर -1:

आलीपुर निवासी बलवीर सहाय का भूमि पर स्वामित्व का एक मुकदमा 1974 में चकबंदी अदालत में शुरू हुआ था। उम्मीद थी कि जल्द न्याय मिलेगा। मगर जवानी गुजर गई, इतनी बार तारीखें मिली कि 42 साल गुजर गए। मुकदमा डीडीसी कोर्ट में चल रहा है। बलवीर बताते हैं कि मुकदमा लड़ते-लड़ते जवानी बीत गई। बुढ़ापा आ गया, मगर कोर्ट का फैसला न आ सका। बस तारीख ही बढ़ रही है।

केस नंबर 2: संतान जखौआ निवासी पुष्पा देवी वाल्मीकि की मां 2003 में चल बसीं। गांव के मुन्नालाल बाथम ने फर्जी वसीयत तैयार कर तहसीलदार की अदालत में जमीन अपने नाम कराने की कार्रवाई की। लेकिन कानून के हिसाब से दलित की जमीन गैर दलित के नाम नहीं की जा सकती। इसलिए तहसीलदार ने कार्रवाई को खारिज कर दिया। मुन्नालाल ने एसडीएम के यहां कार्रवाई कर उसकी मां की जमीन हड़प ली। एसडीएम ने सबकुछ जानते हुए भी कानून के खिलाफ आदेश पारित किया। आदेश को खारिज कराने के लिए उसने एसडीएम कोर्ट में पुनस्र्थापन प्रार्थनापत्र दिया, लेकिन अब तक सुनवाई नहीं हुई।

मुकदमे न केवल दीवानी न्यायालयों में निस्तारण की राह देख रहे हैं, बल्कि राजस्व अदालतों में भी मुकदमों के निस्तारण की स्थिति संतोषजनक नहीं है। धीमी गति से चल रहे मुकदमों के निस्तारण के चलते स्थिति यह है कि बाबा के मुकदमे को पोते लड़ रहे हैं। राजस्व अदालतों में लंबित कई मामले ऐसे हैं जो चार दशक पहले शुरू हुए थे लेकिन आज तक उनका निस्तारण नहीं हो पाया है। मुकदमों में कार्रवाई के नाम पर महज तारीखें ही मिल रही हैं। जिले की राजस्व अदालतों में करीब 5500 मुकदमे विचाराधीन हैं। अधिकारियों के पास प्रशासनिक कार्यों का भी बोझ है। ऐसे में राजस्व मामले लंबित रह जाते हैं। कलक्ट्रेट अपनी तारीख पर आए बलवंत ¨सह ने बताया कि उनका जमीन संबंधी मुकदमा एसडीएम साहब की कोर्ट विचाराधीन है। 9 सालों से तारीखें लग रही हैं। जिस दिन उनकी तारीख होती है, उस दिन कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि साहब अदालत में ही नहीं बैठ पाते। कभी वीआइपी आते हैं तो कभी बड़े अधिकारी विकास कार्यों का मुआयना करने आ जाते हैं। ऐसे में उनका मुकदमा आगे ही नहीं बढ़ पाता है।

चकबंदी अदालतों के हालात भी खराब

चकबंदी अदालतों में भी हालात अच्छे नहीं है। उपसंचालक चकबंदी न्यायालय में 367, बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी के कोर्ट में 600 मुकदमे तथा चकबंदी अधिकारी मैनपुरी, करहल व बरनाहल में कुल 800 मामले लंबित हैं। यहां भी मामलों का निस्तारण तेजी से नहीं हो पा रहा है। उप निदेशक चकबंदी (डीडीसी) मैनपुरी पर इटावा, फीरोजाबाद, आगरा तथा मथुरा का भी कार्यभार है। इसलिए वे यहां मुकदमों की सुनवाई के लिए अधिक समय नहीं दे पाते।

अधिकारी कहिन

शासन स्तर से लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि प्रत्येक कोर्ट में माह में जितने नए मुकदमे दायर हों, उससे कहीं अधिक मुकदमे उस माह में निस्तारित करने हैं। इसके अलावा शासन स्तर से अब न्यायिक अधिकारियों की अलग से तैनाती की जा रही है। इससे मुकदमों के निस्तारण में तेजी आएगी।

सूर्यमणि लाल चंद्र, अपर जिलाधिकारी, मैनपुरी।


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