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औंछा के जर्रे-जर्रे में इतिहास

मैनपुरी : मैनपुरी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। जिले में ऋषियों की तपोस्थली रही औंछा में आज भी

By Edited By: Published: Sun, 29 Nov 2015 07:32 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2015 07:32 PM (IST)
औंछा के जर्रे-जर्रे में इतिहास

मैनपुरी : मैनपुरी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। जिले में ऋषियों की तपोस्थली रही औंछा में आज भी जर्रे-जर्रे में विरासत है। औंछा में 88 हजार ऋषियों ने तप किया था। जिस स्थान पर च्वयन ऋषि, श्रृंगी ऋषि और ओम ऋषि ने तप किया था वह टीले आज भी यहां के महत्व की गवाही देते हैं।

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च्यवन ऋषि का मंदिर आस्था का प्रतीक है। यहां हर वर्ष मेला लगता है और दूर दराज से लोग मंदिर में दर्शन करने आते हैं। च्यवन ऋषि के आश्रम का मुख्य आकर्षण यहां का कुंड है जहां लोग डुबकी लगाकर मन्नत मांगते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार च्वयन ऋषि दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के भाई और भृगु ऋषि के पुत्र थे। उन्होंने औंछा में 84 हजार वर्ष तक तपस्या की थी। तपस्या के दौरान उनका सारा शरीर मिट्टी के टीले में दब गया था। सिर्फ आंखें दिख रही थीं। उसी दौरान अयोध्या के राजा शर्यात अपनी पुत्री सुकन्या के साथ जंगल में शिकार करने निकले थे।

सुकन्या ने मिट्टी के टीले में चमकती च्वयन ऋषि की आंखों में नुकीली लकड़ी चुभो दी थी। जिससे उनकी आंखों से खून निकलने लगा। यह देखकर राजा शर्यात ने च्वयन ऋषि से माफी मांगी और सुकन्या को उनकी सेवा में वहीं छोड़ दिया।

कुंड में डाली गई थीं जड़ी-बूटी मान्यता है कि आश्रम में स्थित कुंड में इंद्र के अमरावती बाग से औषधियां मंगाकर कुंड में डाली गईं। फिर उसी से कुंड में दवा तैयार की गई। इसी दवा का नाम च्यवनप्राश रखा गया। इस कुंड में मेढक नहीं पाए जाते। मान्यता है कि कुंड में स्नान से चर्म रोग दूर हो जाते हैं।


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