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यहां पग-पग पर बीमारियों की सौगात

मैनपुरी: ये शहर के खराब हो रहे सिस्टम का हाल है। अस्पतालों से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट अब लोगों क

By Edited By: Published: Sun, 05 Jul 2015 08:30 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2015 08:30 PM (IST)
यहां पग-पग पर बीमारियों की सौगात

मैनपुरी: ये शहर के खराब हो रहे सिस्टम का हाल है। अस्पतालों से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट अब लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है। सरकारी अस्पताल हों या निजी, सबमें बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण की व्यवस्था फेल हो गई है। जिसे जहां मन आता है, वहीं मेडिकल कचरा फेंक दिया जाता है। कहीं सड़क पर पड़ा है तो कहीं खाली प्लॉट कूड़ेदान बन गए हैं। इस कचरे को स्वास्थ्य के लिए बेहद खरतनाक माना जा रहा है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस संबंध में गाइड लाइन जारी की है।

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स्वस्थ और स्वच्छ भारत की राह में बायो मेडिकल कचरा बड़ी समस्या है। जिले में बायो मेडिकल कचरे के निस्तारण की पूरी व्यवस्था ताक पर है। स्वास्थ्य अधिकारियों की अनदेखी के कारण निजी अस्पतालों और पैथोलॉजी सेंटरों द्वारा सारी व्यवस्था का मखौल बनाया जा रहा है। शहर में किसी भी अस्पताल द्वारा बायो मेडिकल वेस्ट का नियमानुसार निस्तारण नहीं किया जा रहा है। सबसे ज्यादा अनदेखी प्राइवेट अस्पतालों में हो रही है। कचहरी रोड पर दर्जनों निजी अस्पताल, क्लीनिक, मेडिकल स्टोर और पैथोलॉजी सेंटरों का संचालन हो रहा है।

मगर कूड़ा निस्तारण के इंतजाम कहीं नहीं हैं। जिला अस्पताल के सामने संचालित होने वाले अस्पतालों द्वारा गंदे कपडे़, सी¨रज, कॉटन, खून से सनी पट्टियां और तमाम प्रकार के बायोमेडिकल वेस्ट को पास ही खाली पडे़ प्लॉटों में फेंका जाता है। मेडिकल स्टोर संचालक भी दवाओं और इंजेक्शनों की बोतलों को सड़क पर फेंक रहे हैं। जिला अस्पताल में भी मेडिकल वेस्ट फेंकने के इंतजाम नाकाफी हैं। पोस्टमार्टम हाउस के बाहर प्लास्टर, सी¨रज, नीडिल और तमाम प्रकार के मेडिकल वेस्ट को फेंका जा रहा है।

ये की है व्यवस्था

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और स्वास्थ्य मंत्रालय ने मेडिकल वेस्ट को डंप करने के लिए बाकायदा व्यवस्था की है। मेडिकल वेस्ट को चार हिस्सों में बांटा है।

पीले रंग का डिब्बा- इनमें इनसिनिरेटेड (जलाए जाने वाले) कचरे जैसे- ब्लड बैग, मांस के हिस्से, सर्जरी के दौरान निकलने वाला कचरा, कॉटन, दवाइयां आदि को डाला जाता है।

लाल रंग का डिब्बा-इनमें मानव अंग, रक्त और अन्य प्रकार के कचरे को डाला जाता है।

हरे रंग का डिब्बा- इनमें मरीजों के खाने की बची चीजों के अलावा खाद्य सामग्री के कचरे को रखा जाता है।

नीले रंग का डिब्बा- कांच और सी¨रज, ग्लूकोज की बोतलें, नीडिल आदि को रखा जाता है। (इन डिब्बों में काले रंग की पॉलीथिन लगाई जाती है। पॉलीथिन के आधे भरने के बाद इसे अच्छी तरह से गांठ लगाकर पैक कर देते हैं। बाद में ऐसे स्थान पर रखा जाता है, जहां इंफेक्शन फैलने की संभावना न हो।)

हैजा से लेकर एड्स तक की सौगात

खुले में फेंका जा रहा मेडिकल वेस्ट सिर्फ वातावरण को ही प्रभावित नहीं कर रहा, बल्कि स्वास्थ्य पर भी घातक प्रभाव छोड़ रहा है। जिला अस्पताल के इमरजेंसी मेडिकल ऑफीसर डॉ. अतुल यादव का कहना है कि मेडिकल वेस्ट बेहद खतरनाक होता है। इनमें कई हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस होते हैं। खुले में नीडिल और सी¨रज फेंकने से एड्स का खतरा बढ़ जाता है। खून से सनी बेंडेज और कॉटन सड़क पर फेंकने से हैजा, डायरिया के अलावा बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू के वायरस तेजी से फैलते हैं। टाइफाइड, कैंसर और टीबी जैसी बीमारी भी मेडिकल वेस्ट के कारण होती है। त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरांग गुप्ता का कहना है कि मेडिकल वेस्ट को खुले में फेंकने से त्वचा संबंधी बीमारियां फैलती हैं। वायरस के प्रति त्वचा संवेदनशील होती है।

खुलेआम की जा रही अनदेखी

मेडिकल वेस्ट के निस्तारण की व्यवस्था लागू कराने की जिम्मेदारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी की है। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरके सागर का कहना है कि जिला अस्पताल में कूड़ा उठाने कि जिम्मेदारी कानपुर की संस्था को दी है। जिले के अन्य स्थानों से मेडिकल वेस्ट निस्तारण की जिम्मेदारी भी उसी संस्था की है। मगर प्राइवेट अस्पतालों से मेडिकल वेस्ट उठाने के लिए कंपनी कुछ शुल्क वसूलती है। प्रति बिस्तर यह शुल्क ज्यादा होने के कारण निजी अस्पताल कूडे़ को या सड़क पर फेंकते हैं या खाली प्लॉटों में। खुले में कूडे़ के ढेर में बायो मेडिकल वेस्ट को फेंकने से कई बार आवारा जानवर खाने की चीजों के साथ नीडिल और सी¨रज भी मुंह में ले लेते हैं।

कूड़ा जलाने से होती है दिक्कत

मेडिकल वेस्ट में कई प्रकार के हानिकारक केमिकल होते हैं। जिला अस्पताल में कहीं खुले में मेडिकल वेस्ट फेंका जा रहा है, तो एक स्थान पर कूड़ेदान में फेंका जाता है। फिर उसमें आग लगा दी जाती है। आग लगने के कारण धुएं में हानिकारक गैस निकलती हैं। ये गैस फेफड़ों में जाती है, जिससे फेफड़ों की टीबी होने का खतरा रहता है।

अधिकारी कहिन

अस्पताल में मेडिकल निस्तारण की व्यवस्था निजी संस्था को दी है। वह संस्था कभी कूड़ा उठाने के लिए दो दिन में आती है तो कभी एक सप्ताह में। संस्था को पत्र लिखकर कहा जाएगा कि वह नियमित रूप से मेडिकल वेस्ट उठाए, ताकि दिक्कत न हो।

डॉ. आरके सागर, मुख्य चिकित्साधीक्षक, मैनपुरी।


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