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सावधान, कच्चे दूध से हो सकती है टीबी

मैनपुरी : अगर आप गाय और भैंस के दूध का सेवन कर रहे हैं तो सचेत हो जाएं। कच्चे दूध का सेवन कतई न करें

By Edited By: Published: Thu, 26 Mar 2015 07:56 PM (IST)Updated: Thu, 26 Mar 2015 07:56 PM (IST)
सावधान, कच्चे दूध से हो सकती है टीबी

मैनपुरी : अगर आप गाय और भैंस के दूध का सेवन कर रहे हैं तो सचेत हो जाएं। कच्चे दूध का सेवन कतई न करें। गाय-भैंसों के कच्चे दूध के माध्यम से टीबी के बैक्टीरिया आपके शरीर में भी प्रवेश कर सकते हैं। सही समय पर इलाज न मिले तो व्यक्ति को आंतों की टीबी हो सकती है। आंतों की टीबी के मरीजों की संख्या में इजाफा होने से स्वास्थ्य महकमा भी सतर्क हो गया है।

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जिले में टीबी के संभावित मरीजों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। वर्ष 2014 में 11 हजार 878 लोगों ने अपनी जांच कराई, जिसमें 1449 मरीजों में टीबी के लक्षण मिले। वहीं वर्ष 2013 में 11 हजार 408 लोगों ने जांच कराई, जिसमें 1283 लोग टीबी से ग्रसित पाए गए थे। चिकित्सकों का कहना है कि इन रोगियों में से अधिकांश में आंतों की टीबी के लक्षण मिले हैं। चिकित्सक मवेशियों के दूध से संचारित बीमारी की आशंका जता रहे हैं।

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. योगेश कुमार सारस्वत का कहना है कि गाय और भैंसों में भी टीबी की बीमारी पाई जाती है। ऐसे गोवंशीय अथवा महीषवंशीय जो बेहद गंदगी वाले स्थानों में बांधे जाते हैं। उनके थनों में यह बैक्टीरिया चिपक जाता है। सांसों से संचारित होने वाला यह बैक्टीरिया दुधारू पशुओं की सांसों से उनके पेट में पहुंच जाता है। पशुपालक जब दूध निकालते हैं, तो दूध के साथ यह बैक्टीरिया दूध निकालने वाले पात्र में भी चला जाता है। यदि कोई व्यक्ति कच्चे दूध का सेवन करता है, तो टीबी के बैक्टीरिया दूध के साथ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर आंतों की टीबी को जन्म देते हैं।

आसान नहीं है आंतों की टीबी को पहचानना

पशु चिकित्सकों का कहना है कि आंतों की टीबी के इंफेक्शन का पता लगाना आसान नहीं है। इसकी पहचान के लिए जांच रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ता है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. सारस्वत का कहना है कि गाय-भैंसों में टीबी की जांच के लिए ट्यूबर कुनीन टेस्ट करना पड़ता है। जांच के लिए जानवर के गले में इंजेक्शन के माध्यम से सैंपल लिया जाता है। यदि इंजेक्शन वाले स्थान पर सूजन बढके तो जानवरों में टीबी की आशंका रहती है। हालांकि जिले में अभी तक किसी भी गोवंशीय अथवा महीषवंशीय की जांच नहीं कराई गई है। लेकिन इस बीमारी की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।

ये हैं लक्षण

जानवर दिनों-दिन कमजोर होने लगता है।

- मुंह-नाक से पीले रंग का झाग निकलता है।

- जानवर की खुराक के साथ दूध की मात्रा में भी कमी आती है।

- थकावट के कारण जानवर सही तरीके से खड़ा नहीं रख पाता है।


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