बिना 'महावत' बिखर गए हाथी के वोट
मैनपुरी: 'महावत' मैदान में नहीं था, सो हाथी का वोट बिखर गया। सपा और भाजपा बसपा के कैडर वोट पर नजरें गड़ाए थे। दोनों ने ही इन्हें अपने पाले में करने के लिए गोटियां बिछाईं। मगर बाद में भाजपा के मुकाबले बसपाई वोट बैंक सपा के पाले में ज्यादा चला गया। यह बसपा के लिए और बड़ी खतरे की घंटी है, क्योंकि बसपा किसी भी हालत में सपा के पाले में अपने वोट को नहीं देखना चाहती।
मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में करीब ढाई लाख दलित मतदाता है। ये बसपा का कैडर वोट माना जाता है। बीते चुनाव में बसपा प्रत्याशी डॉ. संघ मित्रा मौर्य को 1,42,833 मत मिले थे। इस बार बसपा ने उपचुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारा, तो भाजपा ने शाक्य बिरादरी के प्रेम सिंह शाक्य पर दांव लगा दिया। भाजपा को उम्मीद थी कि बसपा का कैडर वोट मिल जाएगा और शाक्य उम्मीदवार के नाते शाक्य भी भाजपा के पाले में आ जाएगा। उधर, सपा ने भी दलित वोट को अपने पाले में करने के लिए रणनीति बनाई। दोनों दलों के दलित बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले नेताओं ने इन वोटरों को लुभाने के लिए तमाम कोशिशें कीं। कई- कई बैठकें तक की गईं। मगर अंतत: दलित वोट बैंक को भाजपा के मुकाबले सपा ने ज्यादा हथिया लिया। ग्रामीण क्षेत्रों में सत्तर फीसद दलित मतदाता सपा के साथ गया तो कस्बाई क्षेत्रों में करीब 60 फीसद वोट सपा ने हासिल किया। तेजू की अधिक जीत का कारण भी दलित वोट बैंक बना। पूर्व में बसपा मुखिया मायावती ने अपने कैडर वोटरों से कहा था कि वह किसी दल को नहीं बल्कि निर्दल को वोट दें। मगर उपचुनाव में कोई भी निर्दल उम्मीदवार दमदार नहीं दिखा। हाल ये हुआ कि दोनों दलों ने बसपाई वोट बैंक को बांट लिया।