बस्ते के बोझ तले बीमार हो रहा बचपन
महराजगंज: प्रतिस्पर्धा के दौर में बचपन बोझ तले दबा है। जितने वजन के बच्चे हैं, उनके बस्ते का वजन उस
महराजगंज: प्रतिस्पर्धा के दौर में बचपन बोझ तले दबा है। जितने वजन के बच्चे हैं, उनके बस्ते का वजन उससे अधिक है। हर अभिभावक अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देकर सुनहरा भविष्य बनाना चाहता है। निजी विद्यालयों के तड़क भड़क को देखकर अभिभावक भी बच्चों का दाखिला निजी विद्यालयों में करा रहे हैं। परिणाम यह है कि बेहतर शिक्षा का प्रदर्शन करने के नाम पर निजी स्कूल कई नए विषयों से जोड़ते हैं, इसके चलते उनके बस्ते का बोझ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बस्ते के भारी बोझ के चलते बच्चों के रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो रही है , तथा पीठ से कमर तक का हिस्से में झुकाव हो रहा है। बेहतर शिक्षा के नाम पर बस्ता के बढ़ रह बोझ से बच्चों का स्वास्थ्य भी खराब हो रही है। जागरण टीम ने शनिवार को जब स्कूलों आने जाने वाले बच्चों के वजन और उनके स्कूल बैग की पड़ताल की तो कक्षा पांच तक के बच्चों का वजन उनके स्कूल बैग से कम था।
केस एक- नगर पालिका परिषद क्षेत्र के गांधी नगर वार्ड में किराये के मकान में रहने वाले गिरिजेश यादव सदर ब्लाक के सामने मेडिकल स्टोर की दुकान चलाते हैं। इनका छह वर्षिय बच्चा अर्पित यू.के.जी व चार वर्षीय अंकित एल.के.जी. में नगर के एक प्रतिष्ठत इंग्लिश स्कूल में पढ़ते हैं। इनका कहना है जितना बच्चे का वजन नहीं है उससे कहीं अधिक बस्ते का वजन बढ़ गया है। दोनों बच्चों को स्वयं स्कूल छोड़ने जाता हूं। बस्ते का बोझ अधिक होने के कारण स्वयं बस्ता लेकर चलना पड़ता है। स्कूल गेट से बच्चे स्वयं बस्ता लेकर जाते हैं। गेट से कक्ष तक जाने में बस्ता के बोझ से दब कर बच्चों की हालत खराब हो जाती है।
केस दो- बिस्मिलनगर वार्ड के रहने वाले राजेश ¨सह का बेटा मोनू आठ साल का है। वह कक्षा दो में पढ़ता है। इनका कहना है बच्चे का वजन 12 किलो है, पर बस्ते का वजन 13 किलो है। बस्ते का वजन अधिक होने के कारण खुद स्कूल तक बच्चे को छोड़ने जाते हैं। क्योंकि बच्चे को बस्ता लेकर चलने में परेशानी होती है।
ये दो मामले अभी उदाहरण मात्र है, जनपद में 268 मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूल संचालित हो रहे हैं। निजी स्कूल में पढ़ रहे सभी बच्चों की यही हालत है। बस्ते का बोझ बढ़ा कर बच्चों की ¨जदगी से खिलवाड़ करने के लिए सीधे तौर पर प्राइवेट स्कूलों के प्रबंध तंत्र ही जिम्मेदार है। बढ़ रहे बस्ते के बोझ को देखते हुए तो यही प्रतीत हो रहा है, कि बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर जिम्मेदार तंत्र को तनिक भी ¨चता नहीं है।