मन को जग में नहीं ईश्वर में लगाएं
महराजगंज: संसार में मनुष्य कितना भी अध्ययन कर ले, पर वास्तविक तृप्ति उसे नहीं मिलती । इंद्रियों का
महराजगंज: संसार में मनुष्य कितना भी अध्ययन कर ले, पर वास्तविक तृप्ति उसे नहीं मिलती । इंद्रियों का तर्पण है विषय आत्मा तो अतृप्त ही रह जाती है। और विषय तो स्वयं अपूर्ण हैं, उन्हें पाकर हम कैसे पूरे हो पाएंगे जीवन में परिपूर्णता तभी आएगी जब हम परिपूर्ण प्रभु से जुड़ेंगे क्योंकि परिपूर्ण प्रभु के बिना जीवन का आनंद नहीं मिल पाता, इसलिए मनुष्य को अपने मन को जग में नहीं जगदीश्वर में लगाना चाहिए। जहां उसे भगवान का दर्शन होता है । उन्होंने कथा के माध्यम से बताया कि राजा उत्तानपाद के दो रानियां थी एक का नाम सुनीति तो दूसरे का नाम सुरुचि था। सुरूची महारानी व सुनीति के एक-एक एक बालक पैदा हुए बड़ी रानी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था, सौतेली मां बड़ी इष्र्या करती थी एक समय की बात है बालक ध्रुव खेलते खेलते अपने पिता की गोद में जा बैठे जब सौतेली मां सुरूची ने देखा था तो ध्रुव का हाथ पकड़कर गोद से बाहर फेंक दिया । ये सारी बातें बालक ध्रुव ने अपनी माता सुनीति से कहा माता ने बताया कि बेटा जिस गोद में तु बैठा था उस गोद से बड़ा भगवान का गोद है, तू उस पर बैठ माता ने बालक ध्रुव को शास्त्र से संबंधित सारी शिक्षाएं दीं। उसके बाद वे भगवान की तपस्या किये । जहां भगवान स्वय ध्रुव को दर्शन दिये। आसमान मे जो तारा है वह बालक ध्रुव के नाम पर ही पड़ा हुआ है। जिसे ध्रुव तारा करते हैं । इस अवसर पर कृष्णानंद तिवारी, विनोद दीपक पांडे, विद्या प्रसाद वर्मा, मधुतिवारी कुसुमावती देवी, कीर्ति वर्मा, अशोक वर्मा, रमेश मिश्रा अजय गुप्ता, रिया वर्मा आदि उपस्थित रहे।