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धरती की कोख सूखा रही मेंथा की खेती

महराजगंज: मेंथा की खेती के प्रति किसानों की बढ़ती रुझान और पानी के अंधाधुंध दोहन धरती की कोख को सूखा

By Edited By: Published: Fri, 29 Apr 2016 11:20 PM (IST)Updated: Fri, 29 Apr 2016 11:20 PM (IST)
धरती की कोख सूखा रही मेंथा की खेती

महराजगंज: मेंथा की खेती के प्रति किसानों की बढ़ती रुझान और पानी के अंधाधुंध दोहन धरती की कोख को सूखा रही है। पिछले कई सालों से किसानों के बीच नगदी फसल के रूप में लोकप्रिय मेंथा (पिपर¨मट) किसानों की जेबें तो गर्म कर रही है, साथ ही यह फसल भूगर्भ जल स्तर को भी तेजी से नीचे खिसका रही है।

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जिले के सदर ब्लाक के बागापार, रामपुर बुजुर्ग, लखिमा थरुआ, कटहरा, सोनरा, बैजनाथपुर कला, विजयपुर, बरगदवा राजा, जगपुर उ़र्फ सलामतगढ़, केवलापुर खुर्द, परासखांड़, बड़हरा राजा एवं मिठौरा ब्लाक के नदुआ बाजार, परसा राजा, बसंतपुर राजा, दरहटा, लालपुर, चैनपुर, बरगदही बसंतनाथ, कसमरिया, खजुरिया, नंदाभार, पिपरा सोनाड़ी, ओबरी, बेलभरिया, कम्हरिया, चौक क्षेत्र में में मेंथा ऑयल बनाने का काम कुटीर उद्योग की तरह है।

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एक लीटर मेंथा तेल के लिए 1200 लीटर पानी की जरूरत

मेंथा की खेती कर रहे किसानों का कहना है कि तीन माह की इस फसल को औसतन दस से बारह बार ¨सचाई की जरूरत होती है। एक बार की ¨सचाई में एक बीघे मेंथा की फसल में औसतन 30 से 35 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है। इस लिहाज से एक बीघे की पूरी फसल के लिए तीन से साढ़े तीन लाख लीटर पानी की खपत होती है। फसल तैयार हो जाने के बाद इससे मेंथा ऑयल बनाया जाता है। एक लीटर मेंथा तेल के लिए करीब 1200 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इस फसल के प्रति बढ़ती दिलचस्पी से भूजल स्तर को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

इन इलाकों में जल स्तर काफी तेजी से नीचे जा रहा है। खेतों में लगे बो¨रग से पानी कम निकल रहा है साथ ही गाँवों में लगे हैंडपंप से भी पानी निकालने में लोगों को मशक्कत करनी पड़ रही है। इस पर अंकुश न लगाया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है।

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जिले में 625 हेक्टेयर में मेंथा की खेती

इस वर्ष जिले में करीब 625 हेक्टेयर में मेंथा की खेती की जा रही है। दिसंबर से फरवरी के मध्य इसका रोपण किया जाता है। मार्च से मई के मध्य फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है। इन दिनों जिले में मेंथा ऑयल बनाने का काम जोरों पर है। जनपद के लगभग सभी गांवों में मेंथा से तेल निकालने वाले उपकरण भी लगाये गए हैं। उपकरण लगाने वालों को भी अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है। उन्होंने बताया कि मेंथा के दामों में प्रतिवर्ष होने वाले उतार-चढ़ाव को देखते हुए इसे आमदनी का अच्छा जरिया माना जाता है।

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मेंथा की खेती करने वाले कई रोगों से ग्रस्त

उधर चिकित्सा विशेषज्ञों का दावा है कि भूजल को नुकसान पहुंचाने के साथ फसल तैयार करने में लगे लोग भी मेंथा के दुष्प्रभाव से कई गंभीर रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं।

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