जिंदगी के लिएजद्दोजहद, फिर भी लोकतंत्र जिंदाबाद
महराजगंज: परतावल विकास खंड के सिरिसिया गांव निवासी सज्जाद खां हों या उनकी बहन जयनफ खातून। इसी गांव क
महराजगंज: परतावल विकास खंड के सिरिसिया गांव निवासी सज्जाद खां हों या उनकी बहन जयनफ खातून। इसी गांव के विभुन यादव और सदरून निशा। सबकी कहानी एक जैसी है। इनके लिए ¨जदगी संघर्ष का दूसरा नाम है। न तो अपने दम पर खाने पीने की शक्ति न दो कदम आगे बढ़ने भर का साहस, फिर भी लोकतंत्र के इस उत्सव में इनकी हिस्सेदारी देखने लायक थी। कोई बेटा बेटी संग आया तो किसी की अंगुली मां ने पकड़ी। लड़खड़ाते कदमों के साथ घर की चौखट लांघ सभी निकले वह भी मतदाता पहचानपत्र के साथ। वोट डाला और खुशी खुशी चल दिए घर की तरफ। सिरसिया गांव निवासी सज्जाद खां और जायफन खातून जन्म से ही विकलांग हैं। यहां तक की नीयमित दिनचर्या की पूर्ति भी इनके लिए कठिन है। फिर भी मतदान के दिन दोनों भाई बहन घर से निकले। शारीरिक विकलांगता को देखते हुए मां ने उन्हें जाने से मना किया, लेकिन दोनों कहा मानने वाले थे। मतदाता पहचान पत्र लिया और मां व भाई के साथ चल दिए लोकतंत्र के इस उत्सव में सरीक होने। इन्हें देखकर लाइन में लगे लोगों ने भी रास्ता दे दिया। वे वोट डाले और चल दिए घर की तरफ। कमोवेश यही जज्बा विभुन यादव में भी देखने को मिला। चलने फिरने में असमर्थ विभुन यादव घर से कम ही निकलते हैं। बहुत आवश्यक पड़ने पर ही इनकी ट्राईसाईकिल सड़कों पर दौड़ती है। आज मतदान था। घर के लोगों ने कहा कि रहने दें प्रधानी नहीं है, लेकिन विभुन वोट को अपना अधिकार बता कर घर से ट्राइर्साइकिल निकाल दी। इनका जज्बा देख भतीजा भी सहारा देने के लिए निकल पड़ा। चाचा भतीजा बूथ पर पहुंचे और मताधिकार का प्रयोग कर अपनी जिम्मेदारी निभाई। क्षेत्र के बड़े बुर्जुगों की भी यही स्थिति रही। चलने फिरने में असमर्थ हो चुके लोग भी अपना घर छोड़ कर मतदान स्थलों तक आने का साहस जुटाए। जायफन निशा, हीरा यादव व अस्सी वर्षीय केसिया देवी सब की हिस्सेदारी से लोकतंत्र के इस उत्सव का रंग चटख हो गया।