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प्रतिबंध के बावजूद बिक रहे चाइनीज पटाखा व झालर

जागरण संवाददाता,महराजगंज: दीवाली की तैयारी में जुटे लोगों की पसंद अब चाइनीज झालरें बनती जा रही

By Edited By: Published: Mon, 20 Oct 2014 10:36 PM (IST)Updated: Mon, 20 Oct 2014 10:36 PM (IST)
प्रतिबंध के बावजूद बिक रहे चाइनीज पटाखा व झालर

जागरण संवाददाता,महराजगंज:

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दीवाली की तैयारी में जुटे लोगों की पसंद अब चाइनीज झालरें बनती जा रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बड़े कस्बों में झालरों की खेप गिरनी शुरू हो गई। पिछले दो दिनों में करीब आठ ट्रक झालर थोक की दुकानों से फुटकर दुकानों पर आ चुकी है। 30 रुपये से लेकर 200 रुपये के बीच रंग बिरंगी इन झालरों से सजी दुकानें अंधेरा होते ही जगमगा उठ रही हैं, जिसे देख ग्राहक एकबारगी जरूर देखने पहुंच जा रहे हैं।

नगर के प्रमुख चौराहे के अलावा मऊपाकड़ रोड के विभिन्न सजावट व बिजली के दुकानों पर चाइनीज झालर तो सजे ही हैं। दिल्ली से भी इस तरह के बने झालरों को बाजार में विभिन्न रंगों में उतारा गया है।

दुकानदार अनिल कुमार कहते हैं कि चाइनिज झालर 30 रुपये से 200 रुपये के बीच के आ रहे हैं। जबकि मिट्टी के बने गणेश व लक्ष्मी की प्रतिमा 50 रुपये से 150 रुपये के बीच बेची जा रही। लकी कुमार कहते हैं कि अभी इक्का दुक्का लोग ही दुकान पर केवल रेट जानने के लिए आ रहे हैं। लेकिन मंगलवार को धनतेरस से बिक्री में तेजी आएगी।

-नेपाल के विभिन्न बाजारों से चाइनीज झालर को यहां के व्यापारी सस्ते दर पर लाकर दस गुनी कीमत पर बेच रहे हैं। 10 रुपये से 15 रुपये के बीच मिलने वाले झालर को सौ से डेढ़ सौ रुपये में बेचा जा रहा है। भारी मुनाफा देख मुख्यालय, चौक, शिकारपुर, भिटौली, परतावल, श्यामदेउरवा, घुघली, सिसवा, पनियरा, मिठौरा, सोनौली, नौतनवा, ठूठीबारी, निचलौल, आनंदनगर, बृजमनगंज, धानी आदि स्थानों पर प्रमुख दुकानों पर चाइनीज झालर सजे हुए हैं। हल्का होने के कारण झोले में भी सौ से लेकर दो सौ झालर आ जा रहे हैं।

प्रकाश पर्व दीपावली पर मिट्टी के वर्तन बनाने व बेचने वाले कुम्हार भी उत्साहित हैं। मिट्टी के दीप व अन्य सामग्री बनाने के लिए उनके चाक सुबह चालू हो जा रहे हैं। ऐसा कोई गांव नहीं बचा है जहां कुम्हार अपनी परंपरा को जीवित रखने के लिए कला का प्रदर्शन न कर रहे हों। हालांकि मिट्टी के दीप के डिमांड शहरी क्षेत्र में कम दिख रही है।

चौपरिया-परतावल निवासी कुम्हार महेन्द्र कहते हैं कि अब दीपावली पर आधुनिकता की भेंट चढ़ गई है। लोग झालरों से घर को सजा रहे हैं। मठेलू कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में गांव के बसे लोग ही मिट्टी के दीप मंगाते हैं। राम अवध कहते हैं कि अब मिट्टी के सामानों की डिमांड कम होती जा रही है।

पुरुषोत्तम कहते हैं कि अभी पांच वर्ष पूर्व तक मिट्टी के दीप का प्रयोग अधिकतर लोग करते थे, लेकिन अब इसका प्रयोग कम हो रहा है। -----------

यह मिट्टी के दीए का रेट

-दीपक- 1 रुपये पीस

-धांती-2 रुपये

-कोसा-2 रुपये

-पईली-2रुपये

-घूंचा-10 रुपये

-हांडी-10-15-30 रुपये

-गगरी-20 व 30 रुपये

-परई-5 रुपये

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