योगी सरकार का एक माह: इन फैसलों ने बढ़ाया जनता का विश्वास
पहला वादा किसानों की ऋण माफी का था और सरकार ने अपना पहला फैसला भी यही लिया। सार्थक पक्ष यह कि योगी सरकार प्रतिशोध की राजनीति पर नहीं चल रही है।
लखनऊ (जेएऩएन)। महज एक माह में किसी भी नई सरकार के कामकाज का आकलन तो नहीं किया जा सकता लेकिन, उसकी दिशा जरूर भांपी जा सकती है। बुधवार को योगी आदित्यनाथ की सरकार के एक माह पूरे हो रहे हैं। इस बीच उनकी सरकार ने नियंत्रित और ठोस कदम उठाने पर जोर दिया है। कोई हड़बड़ाहट नहीं, कोई जल्दबाजी नहीं, अपनी टीम को गतिशील बनाने पर अधिक ध्यान और कार्यसंस्कृति बदलने पर जोर। सरकार के कामकाज के केंद्र में उसका संकल्पपत्र है और इसके लिए जहां बड़े फैसलों से अपने वादों की प्रतिबद्धता का संदेश देने की कोशिश है, वहीं सौ दिन, छह माह और साल भर के लक्ष्य पहले ही निर्धारित करने की मंशा न सिर्फ अधिकारियों बल्कि मंत्रियों को भी जवाबदेह बनाएगी।
सरकार ने इस बीच कई फैसले लिए हैं लेकिन दो विषयों ने उसे मुख्य रूप से चर्चा में रखा हुआ है। पहला अवैध बूचडख़ानों पर रोक और दूसरा तीन तलाक के मामले में अपने संवेदनात्मक पक्ष को मजबूती से सामने रखना। लोगों से मिले फीडबैक की बात करें तो उनका मानना है कि फिलहाल, सरकार सही दिशा में जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च को शपथ ग्रहण की शाम को ही अपने मंत्रियों की बैठक में सुशासन और पारदर्शिता के संकल्प को दोहराया तो इसके साथ ही वादों को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का मंसूबा भी नजर आया। उन्हें अपनी चुनौतियां मालूम हैं, इसलिए चौबीस घंटे में बीस घंटे काम पर जोर है।
एक नई कार्य संस्कृति विकसित हुई। उन्होंने समय और अनुशासन पर जोर दिया। खुद दफ्तर में समय से पहुंचे और दूसरों को भी प्रेरित किया। अगले ही दिन मंत्री अपने-अपने दफ्तरों में साढ़े नौ बजते-बजते नजर आए। जो नहीं आ सके उनका दफ्तर तैयार नहीं था। अफसरों ने भी रफ्तार पकड़ी तो फिर हर अगले दिन दफ्तर आने और दफ्तरों में बैठने की उनकी आदत सुधरती गई। कुछ आलसी और गैर जिम्मेदार बचे तो योगी के मंत्रियों ने उनकी नकेल कस दी।
कभी कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने औचक निरीक्षण कर अनुपस्थित कर्मचारियों का वेतन काटा तो कभी किसी अफसर को दीवार कूदकर हाजिरी लगानी पड़ी। यह भाव सबके मन में हो गया कि हाजिरी जांच का छापा कभी भी पड़ सकता है। इसके पहले योगी ने शास्त्री भवन के पांचों तल पर सीढिय़ों से चलकर साफ-सफाई जांची तो यह एक खास व्यवस्था बन गई। अपने फैसलों की समीक्षा का साहस भी उन्होंने दिखाया। एंटी रोमियो अभियान को लेकर जब पुलिस ने युवाओं का उत्पीडऩ शुरू किया तो उन्होंने इस पर लगाम लगाने में देर न की।
किसान, बिजली और स्वास्थ्य
भाजपा ने किसानों का दिल जीतकर ऐतिहासिक बहुमत हासिल किया है तो योगी सरकार ने उन्हें संतुष्ट करने में देर न की। सरकार का पहला फैसला ही किसानों की कर्ज माफी के रूप में सामने आया। इसके अलावा उनकी अन्य समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। किसानों की सबसे बड़ी समस्या बाजार है। इसके लिए 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का फैसला किया गया। साथ ही 625 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य और दस रुपये लदाई-ढुलाई के लिए अलग से निर्धारित किए गए। प्रदेश में पांच हजार क्रय केन्द्र खोलने का फैसला भी किसानों को राहत पहुंचाएगा। 487 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से एक लाख मीट्रिक टन आलू खरीद का फैसला भी लिया गया। 14 दिन के भीतर होगा गन्ना मूल्य भुगतान पश्चिम के किसानों को राहत पहुंचाएगा।
इसी तरह बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए फैसले लेने में देरी न हुई। इसमें भी किसान केंद्र में रहे। गांवों और तहसीलों में बिजली की उपलब्धता बढ़ाने का निर्णय लिया गया। 48 घंटे में जले ट्रांसफार्मर बदलने के साथ ही बिजली बिल का सरचार्ज माफ करके मध्यवर्गीय उपभोक्ताओं को राहत दी गई है। पॉवर ऑफ ऑल योजना के तहत केंद्र और राज्य के बीच करार है जो भविष्य में लाभदायक होगा।
प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या ग्र्रामीण क्षेत्रों में डाक्टरों की कमी है। एग्रेसिव कैंपेन चलाकर कम से कम डेढ़-दो हजार डाक्टर नियुक्त होंगे। एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस का लोकार्पण हो चुका है। एम्स या बड़े अस्पतालों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में बुलाए जाएंगे। मेडिकल कालेजों में दिमागी बुखार के मरीजों के इलाज के साधन बढ़ेंगे।
पारदर्शिता के पांच कदम
-मंत्रियों का समूह बनाएगा नई औद्योगिक नीति, सिंगल विंडो सिस्टम होगा लागू।
-मंत्रियों की समिति के प्रस्ताव पर डीएम को छह माह तक दस एकड़ तक की भूमि पर खनन पट्टा देने का अधिकार। ई टेंडरिंग के जरिये होगा पट्टा।
-अवैध बूचड़खानों पर रोक, नियमों के तहत जारी होंगे लाइसेंस।
-विकास प्राधिकरणों का आडिट सीएजी से कराने का फैसला।
-विभागों में खरीद, निर्माण और टेंडर जैसे सभी काम ई-टेंडरिंग प्रणाली के जरिये।
अगले पांच कदम
-पांच लाख श्रमिकों का बीमा कराएगी सरकार
-शुरू होगी मुख्यमंत्री पशुधन आरोग्य योजना।
-बुंदेलखंड में पांच वर्ष में दोगुना करेंगे किसानों की आय।
-विधवा, दिव्यांगजन तथा वृद्धावस्था पेंशन होगी दोगुनी।
-सरकारी जमीनों को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के लिए एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स का गठन
अखिलेश सरकार की योजनाएं जांच घेरे में
-गोमती रिवर फ्रन्ट में भ्रष्टाचार की जांच के लिए न्यायमूर्ति मनोज सिंह की अध्यक्षता में जांच समिति गठित।
-बसपा सरकार में 21 चीनी मिलें बेचने के मामले की जांच, सीबीआइ जांच के भी संकेत।
-जेपी सेन्टर के निर्माण की जांच के लिए विभागीय मंत्री सुरेश पासी की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह गठित।
-समाजवादी पेंशन योजना की जांच कराने के लिए दो मंत्रियों की समिति गठित।
-जल निगम द्वारा कराये गये जेएनएनयूआरएम के कार्यों की जांच कराने को समिति गठित।
-अखिलेश सरकार की बहु चर्चित कैंसर इंस्टीट्यूट के निर्माण कार्यो की जांच को मंत्रियों का समूह बनाने का निर्णय।
-वक्फ बोर्डो के भ्रष्टाचार की जांच कराने की घोषणा।
सबके लिए खुला सीएम दरबार
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रोज करीब 1000 से अधिक लोगों की समस्याएं सुनते हैं। 30 मार्च को अपने आवास पांच कालिदास मार्ग पर आने के बाद से ही यह क्रम जारी है। अपवाद सिर्फ वे तीन दिन रहे जबकि वह यहां नहीं थे, पर इस दौरान बाकी दिनों की तरह सीएम हाउस पर आए फरियादियों के आवेदन लिए गए। सीएम की वेबसाइट पर तो पहले दिन से लोगों की समस्याएं आने लगीं। इनकी संख्या औसतन करीब 16 हजार है। फरियादी को एसएमएस के जरिए उसके मोबाईल नंबर या मेल पर की गई कार्यवाही से भी अवगत कराने की परंपरा शुरू हुई है। गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर में भी फरियादियों की संख्या बढ़ी है। मंदिर कार्यालय के मुखिया द्वारिका तिवारी के मुताबिक अब तक वहां करीब 10 हजार लोगों की फरियाद आ चुकी है। अधिकारियों को निर्देश है कि वे हफ्ते- दस दिन में शिकायतों का निपटारा कर दें।
...लेकिन चुनौती है कानून व्यवस्था
सरकार की हनक बढ़ी है लेकिन कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे चुनौती भी हैं। अपराध की घटनाएं नहीं रुकीं। बदमाशों का मनोबल तोडऩे के लिए अभी प्रभावी कदम नहीं उठाए जा सके। हत्या और लूट की कई घटनाओं ने कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं।
बदले की राजनीति नहीं
पहला वादा किसानों की ऋण माफी का था और सरकार ने अपना पहला फैसला भी यही लिया। सार्थक पक्ष यह कि योगी सरकार प्रतिशोध की राजनीति पर नहीं चल रही है। अनेक योजनाओं में भ्रष्टाचार की जांच के आदेश तो दिए गए लेकिन, उन्हें बंद नहीं किया गया। अफसरों को भी शपथ लेते ही नहीं फेंटा गया।