UP सरकार के 100 दिन : इरादों की रफ्तार में कानून व्यवस्था का रोड़ा
भाजपा सरकार ने अफसरों को ताश की गड्डी नहीं समझा। भरोसा किया, तबादलों को उद्योग मानकर उनकी झड़ी नहीं लगा दी और चंद अपवाद छोड़कर पहले से तैनात अफसरों को ही काम करने का मौका दिया।
लखनऊ [आशुतोष शुक्ल] । उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के सौ दिन लेकिन, मुख्य सचिव अब भी वही राहुल भटनागर जिन्हें पिछली सरकार में तैनाती मिली थी। योगी सरकार को इस बात का श्रेय जाता है कि वह कभी बदले की भावना से काम करती नहीं दिखी।
पूर्ववर्ती सरकार के कामों को नकारना राजनीति की अनिवार्यता हो सकती है लेकिन, भाजपा सरकार ने अफसरों को ताश की गड्डी नहीं समझा। उन पर भरोसा किया, तबादलों को उद्योग मानकर उनकी झड़ी नहीं लगा दी और चंद अपवाद छोड़कर पहले से तैनात अफसरों को ही काम करने का मौका दिया।
प्रदेश शासन कार्यपालिका चलाती है लेकिन, उत्तर प्रदेश में अफसरों के खाने बंटे थे। मेरा अफसर-तेरा अफसर की परंपरा चली आती थी। सरकारें आते ही थोक में तबादले करतीं और अपनी पसंद के अधिकारियों को उनकी मनचाही पोस्टिंग दे देतीं। इस काम में आइएएस लॉबी खुद तत्पर, सक्रिय और शामिल रहती। इस लिहाज से पिछले सौ दिन अलग रहे। चुनाव के पहले भाजपा जिन अफसरों के खिलाफ पक्षपात की शिकायत करती थी, सत्ता में आते ही उसने उन्हें हटा नहीं दिया।
यह बात अलग है कि नौकरशाही सकारात्मक नहीं रह सकी। उसने इसे सरकार की कमजोरी माना और अधिसंख्य मंत्रियों की अनुभवहीनता का लाभ उठा ले गई। सड़क दूधली और शब्बीरपुर की घटनाएं शासन की शिथिलता का परिणाम थीं। प्रशासन और पुलिस की ढिलाई का ही नतीजा है कि कानून व्यवस्था अभी तक सरकार का सबसे कमजोर पक्ष सिद्ध हुई है।
वाराणसी मथुरा और सीतापुर सभी जगह लूट और हत्या की बड़ी वारदात हुईं। यहां तक कि पुलिस पर भी हमले हुए। शासन की तस्वीर लखनऊ में हमेशा उजली दिखेगी। उसकी असल परीक्षा दूर दराज के क्षेत्र होते हैं। भाजपा सरकार की कठिनाई यह कि उत्तर प्रदेश के अधिकतर थानों में अब भी सपा शासन के दारोगा जमे हैं और पुलिस लगभग निष्क्रिय है।
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किसानों का कर्ज माफ करने के फैसले ने देशव्यापी बहस को जन्म दिया और दूसरे राज्यों में भी इसकी मांग होने लगी। हालांकि उत्तर प्रदेश में इसे अभी अमल में आना है और बैंक किसानों के घर नोटिस भेजने लगे हैं लेकिन, आखिर तो किसान तक फायदा पहुंचना ही है।
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गेहूं खरीद में भी योगी सरकार ने बाजी मारी और 2016 की तुलना में इस बार करीब चार गुना अधिक गेहूं खरीदा गया। 14 साल से अटकी पड़ी जेवर एयरपोर्ट परियोजना के अलावा योगी सरकार का एक और फैसला बहुत दूरगामी महत्व वाला है। विधायक निधि से एनजीओ को पैसा देने की व्यवस्था खत्म करके सरकार ने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया है।
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अभी तक तो विधायकों के परिवार और मित्रों में ही इस निधि का बड़ा अंश बंट जाता था। वे लोग एनजीओ बना लेते और विधायक निधि से लाभान्वित हो जाते। विभागों में ई टेंडरिंग शुरू है और यदि यह ठीक से लागू हुई तो सरकारी ठेके पट्टे पर लगा बदनामी का दाग धुल सकेगा। दफ्तरों में हाजिरी का बायोमीट्रिक सिस्टम भी लागू हो रहा है। बेशक, योगी सरकार सचेत और सक्रिय है। खुद मुख्यमंत्री का लगातार अपने दफ्तर जाकर बैठना अच्छा संदेश देता है। सरकार की मंशा सही है लेकिन, सख्ती अभी बाकी है।