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World Menstrual hygiene day 2020: गंदे कपड़े का प्रयोग सर्वाइकल कैंसर की बड़ी वजह

माहवारी में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखती महिलाएं। 70 फीसद लड़कियां व महिलाएं इस्तेमाल करती हैं कपड़ा।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 01:23 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 01:23 PM (IST)
World Menstrual hygiene day 2020: गंदे कपड़े का प्रयोग सर्वाइकल कैंसर की बड़ी वजह
World Menstrual hygiene day 2020: गंदे कपड़े का प्रयोग सर्वाइकल कैंसर की बड़ी वजह

लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। कुछ जानकारी का अभाव तो कहीं संसाधनों की कमी। ज्यादातर महिलाएं व लड़कियां आज भी माहवारी में कपड़े का ही प्रयोग करती हैं। यही नहीं, लंबे समय तक इसे ना तो बदलती हैं और ना ही खुद की साफ- सफाई पर ही ध्यान देती हैं। सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित महिलाओं में किए गए सर्वे में पता चला की इन महिलाओं ने मेंस्ट्रूअल हाइजीन यानी माहवारी स्वच्छता पर ध्यान नहीं दिया जिसके चलते उन्हें ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) का शिकार होना पड़ा। लंबे समय तक इंफेक्शन रहने की वजह से उनमें से कई को सर्वाइकल कैंसर तक हो गया।

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गुरुवार को मेंस्ट्रूअल हाइजीन डे के मौके पर जागरण द्वारा महिला रोग विशेषज्ञों से बातचीत की गई । क्वीन मैरी हॉस्पिटल की डॉक्टर निशा सिंह ने बताया कि उन्होंने कैंसर स्क्रीनिंग के लिए अस्पताल आई महिलाओं पर अध्ययन किया। पाया गया कि जिन महिलाओं में प्री कैंसर या कैंसर मिला उनकी मेंस्ट्रूअल हाइजीन बहुत ज्यादा पुअर थी। इसके चलते उन्हें बार-बार इंफेक्शन हुआ और स्थिति गंभीर होने पर वह कैंसर की चपेट में आ गईं। डॉक्टर सिंह बताती हैं कि दरअसल एचपीवी इन्फेक्शन यूं तो अपने आप ही कुछ समय में ठीक हो जाता है लेकिन यदि पुअर मेंस्ट्रूअल हाइजीन हो तो यह इन्फेक्शन कैंसर में तब्दील हो जाता है। उन्होंने बताया कि सर्वे में पाया गया कि ज्यादातर महिलाएं माहवारी में घर के ही गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती थीं। यही नहीं, वह काफी-काफी घंटों इसको नहीं बदलती । यह भी देखा गया कि हाथ धोने व कपड़े को डिस्पोज ऑफ करने के लिए भी उनमें कोई जागरूकता नहीं थी।

वह बताती है कि यह कहना मुश्किल है कि ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता कम है। कारण यह है कि क्वीन मेरी अस्पताल में ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहर की भी महिलाएं इलाज के लिए पहुंचती हैं। वह बताती हैं कि तमाम कोशिशों के बाद आज भी महिलाएं माहवारी में साफ-सफाई को लेकर अधिक जागरूक नहीं। फॉगसी की एडोलिसेंट हेल्थ कमिटी की नॉर्थ जोन की कोऑर्डिनेटर डॉ. प्रीति कुमार ने बताया कि मेंस्ट्रूअल हाइजीन को लेकर उन्होंने राजधानी के आर्य कन्या स्कूल में कुछ माह पहले 89 लड़कियों पर सर्वे किया था। सर्वे में पाया गया की 70 प्रतिशत लड़कियां सेनेटरी नैपकिन का प्रयोग करती हैं जबकि 30 फीसद लड़कियां कपड़ा। 70 फीसद लड़कियों को यह जानकारी नहीं थी कि प्रत्येक चार घंटे में नैपकिन या कपड़े को चेंज करना चाहिए। इनमें से 60 फीसद लड़कियां ऐसी थी जिन्हें इस बात की जागरूकता नहीं थी कि पैड या कपड़ा चेंज करने के बाद साबुन से अच्छी तरह से हाथ धोने चाहिए। कपड़े या नैपकिन को इस्तेमाल के बाद सुरक्षित तरीके से फेंकना चाहिए।

डॉ.कुमार बताती हैं कि 80 फीसद लड़कियां माहवारी में किचन में नहीं जाना, मंदिर नहीं जाना जैसी भ्रांतियों का ही अनुसरण कर रही थीं। उन्होंने बताया 60 फीसद लड़कियां एनिमिक थीं जिनका हीमोग्लोबिन 10 ग्राम से कम था। केवल 40 प्रतिशत लड़कियों का ही हीमोग्लोबिन सही पाया गया। यही नहीं, 70 फीसद लड़कियों को सेक्स एजुकेशन के बारे में किसी तरीके की कोई काउंसलिंग नहीं की गई थी। डॉ. कुमार कहती हैं कि खासतौर से ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की बहुत कमी है। इस क्षेत्र में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। एडोलिसेंट हेल्थ कमिटी लगातार प्रयास कर रही है कि किशोरियों को माहवारी के संबंध में सही जानकारी उपलब्ध कराई जाए। इसके लिए अलग-अलग स्कूलों में कैंप लगाए जा रहे हैं। हालांकि इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है।

क्वीन मेरी अस्पताल की डॉ.स्मृति अग्रवाल कहती हैं कि आज बहुत ही किफायती दामों पर सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हैं। कई एनजीओ भी इसे निशुल्क उपलब्ध कराते हैं। सरकार भी जगह-जगह नैपकिन उपलब्ध करा रही है। बावजूद इसके अभी अवेयरनेस बेहद कम है। महिलाओं को इस बात की भनक तक नहीं की माहवारी में स्वच्छता ना बरतने से कैंसर जैसी घातक बीमारी की चपेट में आ सकती हैं। दुखद यह है कि उम्रदराज महिलाएं भी नई पीढ़ी को इसके बारे में कोई शिक्षा दे पा रही हैं क्योंकि वह खुद ही जागरूक नहीं । हर साल विश्व महावारी दिवस इसीलिए मनाया जाता है कि लोग जागरूक हो और इसके बारे में खुलकर बातचीत करें।

यूनिसेफ ने नेपकिन देने की वकालत की

लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में श्रमिक व प्रवासी दूर-दूर यात्रा करके अपने घरों को लौट रहे हैं।इनके साथ महिलाएं व लड़कियां भी हैं । यूनिसेफ ने अपील की है कि श्रमिकों को उनके जरूरी सामान के साथ सैनिटरी नेपकिन भी उपलब्ध कराया जाए। कई-कई दिन का सफर कर रही महिलाएं व लड़कियों को इसकी जरूरत होगी। 


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