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बारूद के ढेर पर बैठे गांव

लखनऊ (शोभित मिश्र)। दीपावली पर्व के करीब आते ही पटाखों का अवैध कारोबार राजधानी तथा पास के

By Edited By: Published: Sun, 21 Sep 2014 12:02 PM (IST)Updated: Sun, 21 Sep 2014 12:02 PM (IST)
बारूद के ढेर पर बैठे गांव

लखनऊ (शोभित मिश्र)। दीपावली पर्व के करीब आते ही पटाखों का अवैध कारोबार राजधानी तथा पास के क्षेत्रों में धड़ल्ले से शुरू हो गया है। मोहनलालगंज के सिसेंडी के जिस गोदाम में विस्फोट हुआ, वहा मानक से अधिक पटाखे रखे थे। कई घटनाओं के बावजूद भी शासन और प्रशासन की ढिलाई से अवैध पटाखों का कारोबार बदस्तूर जारी है और हर वर्ष कई बेगुनाह जान गवा देते हैं। बारूद के ढेर पर बैठे इन गांवों में इसका फलता कारोबार प्रशासनिक लापरवाही का भी एक मुख्य कारण है।

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मोहनलालगंज के सिसेंडी गांव में पटाखा गोदाम मालिक का लाइसेंस 25 किलो तथा दो सौ किलो कम क्षमता का था, लेकिन गोदाम में मानक से कई गुना अधिक बारूद और पटाखे रखे थे। गोदाम के पीछे खेत में भी बोरों में भरकर पटाखा रखा गया था। जिस घर में पटाखा गोदाम चल रहा था, वहा चूल्हा जलाने की भी बात सामने आ रही है। यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी कई घटनाओं में मानक से अधिक पटाखा और बारूद रखने का मामला सामने आ चुका है, लेकिन पटाखा के अवैध कारोबार को अधिकारियों की ढील से ही बल मिल रहा है।

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यहा बन रहे अवैध पटाखे

लखनऊ के आसपास काकोरी, इटौंजा, अमानीगंज महोना, बख्शी का तालाब, मड़ियाव, चिनहट, गोसाईगंज, माल, मोहनलालगंज, अजरुनगंज, पारा, मड़ियाव समेत अन्य कई जगहों पर अवैध पटाखों का कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है।

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पहले भी हो चुके हैं हादसे

वर्ष 2004-मऊ गाव में विस्फोट से तीन घायल।

28 सितंबर 2006-चिनहट में पटाखे के गोदाम में आग, एक की मौत।

12 अगस्त 2007-काकोरी के मौदा तालाब के पास पटाखों में आग लगी, एक बच्चे की मौत।

नौ अक्टूबर 2008-बंथरा में दशहरा मेले में आतिशबाजी में विस्फोट, कपूरखेड़ा निवासी अयोध्या प्रसाद की मौत।

17 अक्टूबर 2009-मल्हौर में पटाखे की बोरी में विस्फोट, दंपती की दर्दनाक मौत।

18 जून 2012-पारा में घर के अंदर विस्फोट, दो की मौत।

12 सितंबर 2012-मोहनलालगंज के कनकहा में विस्फोट से दो महिलाओं की मौत।

28 सितंबर 2012-पारा के बादलखेड़ा गाव में पटाखा गोदाम में विस्फोट से दो किशोरियों की मौत।

13 अक्टूबर 2012-चिनहट में आतिशबाज रहीम बख्श के बेटे की जान गई।

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मानक नहीं 'मलाई' से मिलता है लाइसेंस

लखनऊ। कलेक्ट्रेट के कमरा नंबर 38 से पुलिस, तहसील और दमकल विभाग तक चंद दिनों दिनों की दौड़ और चढ़ावा चढ़ाकर मौत की फैक्ट्री का लाइसेंस मिल जाता है। गली में खुली बारूद की दुकानें और गोदाम पटाखा व्यवसाय में जमी भ्रष्टाचार की कहानी खुद बया कर रही हैं। जिला प्रशासन से लेकर पुलिस व अग्निशमन विभाग की तिकड़ी का खेल यहां लंबे समय से चल रहा है। असलहा बाबू से फार्म 24 मिलने के बाद लाइसेंस के लिए थाना, एसडीएम और अग्निशमन विभाग को रिपोर्ट जाती है। वहा से एनओसी मिलने के बाद लाइसेंस की संस्तुति होती है। लाइसेंस की फीस तो मात्र 150 रुपए है लेकिन पाच हजार के चढ़ावे के बाद हरी झडी मिल जाती है। दरअसल दीपावली और दूसरे त्योहारों के वक्त जब डिमाड बढ़ जाती है तब ऐसे हादसे आम होते हैं। पटाखा व्यवसाय से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं यह व्यवसाय बहुत अनियोजित है। त्योहारों के वक्त डिमाड बढ़ने पर अधिक मजूदर लगाए जाते हैं जो ट्रेंड नहीं होते। अधिकतर हादसों के लिए इसी तरह के अनट्रेंड मजदूर जिम्मेदार होते हैं। बारूद का गलत इस्तेमाल भी कई बार विस्फोट का कारण बनता है। बारूद बनाने में गंधक व पोटाश का इस्तेमाल होता है। पटाखा बनाते समय अगर इसका सही मात्र में इस्तेमाल नहीं किया गया तो भी यह विस्फोट की वजह बन सकता है।

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मुझे नहीं जानकारी

मुख्य अग्निशमन अधिकारी एचएस मलिक ने बताया कि बिना मानक के दुकानों को एनओसी कैसे दी गई उन्हें पता नहीं। उनको जानकारी नहीं है कि कितनी आतिशबाजी की दुकानों को एनओसी दी गई है। यह काम अग्निशमन अधिकारियों का है।

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हर दुकान की जाच होगी

एडीएम प्रशासन राजेश कुमार पाडेय का कहना है कि प्रत्येक दुकान और फैक्ट्री की जाच होगी। जहा भी मानक नहीं होंगे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।


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