नारी सशक्तिकरण: जिंदगी में 'कला' के 'रंग' भर रहीं वंदना
मेरठ की वंदना शर्मा बेनूर जिंदगी में कला के 'रंग' भर रही हैं। कभी उनकी खामोश तुलिका कैनवास पर भूख, बेबसी, द्वंद्व, शोषण और विषमता की अनकही व्यथा उकेरती है, तो कभी 'सृजन' का यह 'साज' बेरोजगारी के खिलाफ 'हथियार' भी बनता है। चित्रकला, मूर्तिकला और म्यूरल (एक तरह की
लखनऊ। मेरठ की वंदना शर्मा बेनूर जिंदगी में कला के 'रंग' भर रही हैं। कभी उनकी खामोश तुलिका कैनवास पर भूख, बेबसी, द्वंद्व, शोषण और विषमता की अनकही व्यथा उकेरती है, तो कभी 'सृजन' का यह 'साज' बेरोजगारी के खिलाफ 'हथियार' भी बनता है। चित्रकला, मूर्तिकला और म्यूरल (एक तरह की उभरी चित्रकला) की यह निष्णात कलाकार गरीब व उपेक्षित तबके की छात्रा एवं महिलाओं को कला की बारीकियां सिखाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला दे रही हैं।
मेरठ के किला रोड मुख्य मार्ग से गली नंबर दो 'न्यू प्रभात नगर' के लिए मुड़ती है। उबड़-खाबड़ टाइल्स वाली तंग गली के एक छोर पर वंदना शर्मा का घर है। यही उनकी कर्मशाला है, जहां वह बेजान 'पंखों' में 'उड़ान' के हौसले भरती हैं। गरीब और वंचित तबके के छात्राओं और महिलाओं को विभिन्न कलाएं नि:शुल्क सिखाकर आत्मनिर्भर बनने का हुनर देती हैं।
'मथुरा की भित्तीय चित्रण' पर पीएचडी शोध कर रहीं वंदना शर्मा बताती हैं कि वह चित्रकला की छात्रा थीं और संयोग से उनकी शादी चित्रकार डा. अखिलेश शर्मा से हुई। शुरुआती वर्षों में दोनों बेरोजगार थे। चित्रकला से क्या कमाई होती है, बताने की जरूरत नहीं। जीवन में काफी संघर्ष किया। अभाव को नजदीक से देखा। पति के साथ मिलकर चित्रकला के ट्यूशन सेंटर चलाए। 1992 में जब पति अखिलेश शर्मा को एनएएस डिग्री कालेज मेरठ में चित्रकला प्राध्यापक के रूप में पूर्णकालिक नौकरी मिली तो आर्थिक तंगी ने पीछा छोड़ा। फिर कुछ नया करने का मन बनाया।
गरीब छात्राओं को नि:शुल्क कला सिखाकर आत्मनिर्भर बनाने का मिशन शुरू किया। कुछ कालेज की गरीब छात्रा और घरेलू महिलाओं को जोड़ा, ताकि वे घर का खर्च निकाल सकें।
वंदना शर्मा बताती हैं कि महिलाओं की आमदनी बढ़ाने के लिए उन्होंने बाजार में कला संबंधी बिक रहे उत्पाद और सेवाओं का गहन अध्ययन किया। पाया कि बाजार में मूर्तियां, पीओपी से बने म्यूरर्स, सीनरी, एक्रेलिक मॉडर्न आर्ट पेंटिंग वाले टी-शर्ट, कुर्तियां, ट्वाय आदि की मांग है। इसका प्रशिक्षण देना शुरू किया। बड़े पैमाने पर डिजाइन छपाई वाले बेडसीट, साड़ी, कुर्तियां, दुपट्टे तैयार करने के लिए टेक्सटाइल प्रिंटिंग मसलन हार्ड पेंटिंग, ब्लॉक पेंटिंग, स्क्रीन पेंटिंग सीखी और सिखाना शुरू किया। ये आयटम घर में तैयार किए जाते हैं, कहीं जाने की जरूरत नहीं होती, इस कारण महिलाओं ने दिलचस्पी दिखाई। मेहंदी कला की इन दिनों अच्छी डिमांड है। एक शादी में दुल्हन को मेहंदी लगाने के 2500-5000 रुपये मिल जाते हैं, सो इसे भी प्रशिक्षण में शामिल किया। वंदना कहती हैं कि उनकी सिखाईं 200 से अधिक छात्रा और महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।