दो माह में बने यौन उत्पीडि़त बच्चों की मुआवजा नीति : हाईकोर्ट
दो माह में बने यौन उत्पीडि़त बच्चों की मुआवजा नीति : हाईकोर्ट
<स्त्रद्बक्>लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह यौन उत्पीडऩ के शिकार बच्चों के पुनर्वास हेतु मुआवजा देने की नीति पर दो माह में निर्णय लेकर इसे लागू करे। कोर्ट ने मुआवजा फंड के तहत आने वाले पीडि़तों का दायरा बढ़ाने का भी निर्देश दिया है। <स्त्रद्बक्>सामाजिक संस्था गुडिय़ा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति डा. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति एमके गुप्ता की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण मुद्दा अदालत के समक्ष उठाने पर संस्था की सराहना भी की। <स्त्रद्बक्>संस्था की याचिका में कहा गया कि पॉक्सो एक्ट की धारा 7(4) के तहत यौन उत्पीडऩ के शिकार बच्चों को मुआवजा देने के लिए एक कोष स्थापित करने का प्रावधान है लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी इसकी स्थापना नहीं की गई है। हाई कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह से इस संबंध में जवाब तलब किया था। सरकार ने बताया कि पॉक्सो एक्ट के तहत पीडि़त मुआवजा कोष की स्थापना रानी लक्ष्मीबाई महिला सम्मान कोष 2015 के नाम से छह फरवरी 2015 को की गई है। इसमें दो करोड़ रुपये की धनराशि दी गई है। सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया गया है कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित कराएं। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि एक्ट के तहत ही पीडि़तों को मुआवजा देने का प्रावधान है जो कि अनुचित है। इसका दायरा बढ़ाकर अन्य पीडि़तों को भी मुआवजे के दायरे में शामिल किया जाए। कोर्ट ने सरकार को इस पर दो माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है।