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उत्तर प्रदेश में भाजपा का चौंकाने वाला बड़ा दांव

अल्पसंख्यकों में पैठ बनाना नई सरकार के लिए चुनौती होगी लेकिन, कहीं वह इस पर खरी उतर गई तो भाजपा को व्यापक स्वीकृति भी मिलेगी। तय समझिए कि यह फैसला भाजपा की 2019 की घोषणा है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 19 Mar 2017 11:31 AM (IST)Updated: Sun, 19 Mar 2017 01:40 PM (IST)
उत्तर प्रदेश में भाजपा का चौंकाने वाला बड़ा दांव
उत्तर प्रदेश में भाजपा का चौंकाने वाला बड़ा दांव
लखनऊ (आशुतोष शुक्ल)। जितना बड़ा जनादेश मिला था, उतना ही बड़ा दांव खेल दिया भारतीय जनता पार्टी ने। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भगवा की स्थापना करके उसने अपनी लकीर साफ और गाढ़ी कर दी है। 
स्पष्ट हो गया है कि प्रखर हिंदुत्व भाजपा का स्थायी एजेंडा है जिसके इर्द-गिर्द यूपी में सबका साथ-सबका विकास का तानाबाना बुना जाना है। अल्पसंख्यकों में पैठ बनाना नई सरकार के लिए चुनौती होगी लेकिन, कहीं वह इस पर खरी उतर गई तो भाजपा को व्यापक स्वीकृति भी मिलेगी। तय समझिए कि यह फैसला भाजपा की 2019 की घोषणा है।
भारी बहुमत से बनी सरकारें आमतौर पर नया प्रयोग करने से बचती हैं। 11 मार्च से जिस प्रतीक्षा में सारा देश भाजपा नेतृत्व की ओर टकटकी बांधे था, शनिवार को वह जब आया तो सब चौंके। यह कल्पना भी लोगों को नहीं थी कि सरकार में उप मुख्यमंत्री के दो पदों की भी आवश्यकता पड़ सकती है लेकिन, मोदी-शाह की टीम कुछ और ही सोच रही थी। इस निर्णय के द्वारा भाजपा ने मानो यह भी जता दिया है कि उसे मिले जनादेश में बहुतायत बहुसंख्यकों की थी। 
अल्पसंख्यकों ने अभी तक योगी आदित्यनाथ को हिंदुओं के लिए ललकारते देखा है। हिंदू भी उन्हें अपने पक्ष का मुखर वक्ता मानते आए हैं लेकिन, इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि अगर सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विषमताओं वाले प्रदेश में योगी का राज अल्पसंख्यकों का भय दूर कर ले गया तो यह संदेश देश में जाएगा और तब अल्पसंख्यकवाद की राजनीति कठिन होगी। भाजपा कहती रही है कि तुष्टीकरण की राजनीति ने मुस्लिमों को मुख्यधारा में नहीं आने दिया। योगी को आगे लाकर भाजपा ने अपने लिए यह दुर्लभ अवसर जुटाया है और जैसा कि मोदी के प्रतिनिधि व केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू ने लखनऊ में कहा भी...विकास, विकास, विकास और विकास। खुद योगी ने भी विधायकों को अपने संबोधन में विकास पर बल दिया।
योगी को आगे लाने के पीछे भाजपा की कोशिश विपक्ष के प्रस्तावित महागठबंधन से मुकाबले की भी दिखती है। भाजपा विरोधी दलों की एकजुटता की कोशिश परवान चढ़ी तो अल्पसंख्यक मत एक तरफ पड़ेंगे। ऐसी स्थिति में भाजपा लड़ाई को अस्सी बनाम बीस पर ले जाना चाहेगी। एक और बात-योगी आदित्यनाथ के चयन ने यदि क्षत्रियों को प्रसन्न किया है तो केशव मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा पिछड़ों और ब्राह्मणों के प्रतिनिधि चेहरे होंगे।
...लेकिन, इस बात में शक नहीं कि उत्तर प्रदेश अगले दो वर्ष देश में चर्चा में रहने वाला है।

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