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तो क्या एक बार फिर पलटे जाएंगे मुख्यमंत्री अखिलेश के फैसले

सुलह के लिए क्या अब फिर मुख्यमंत्री अपने फैसले पलटेंगे, पिछली बार कलह को सुलह में बदलने की कोशिश हुई तो सीएम को अपने फैसलों को पलटना पड़ा। इसे मुलायम का सीधा दबाव माना गया था।

By Ashish MishraEdited By: Published: Wed, 26 Oct 2016 08:58 AM (IST)Updated: Wed, 26 Oct 2016 11:47 AM (IST)
तो क्या एक बार फिर पलटे जाएंगे मुख्यमंत्री अखिलेश के फैसले

लखनऊ (जेएनएन)। समाजवादी कुनबे के कलह की धधकती आग मंगलवार को कुछ ठंडी होती नजर आई। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने प्रो. रामगोपाल के प्रति नाराजगी दिखाते हुए बाकी सबके प्रति अपना नरम रुख दिखाया। ऐसे में यह सवाल लाजिमी था कि सुलह के लिए क्या अब फिर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने फैसले पलटेंगे। दरअसल, जब पिछली बार कलह को सुलह में बदलने की कोशिश हुई तो सीएम को अपने फैसलों को पलटना पड़ा। इसे मुलायम का सीधा दबाव माना गया था।

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पढ़ें- मुलायम ने अखिलेश से कहा, तुम्हारी क्या हैसियत - अकेले चुनाव जीत सकते हो मुख्यमंत्री ने 12 सितंबर को समाजवादी परिवार के खास मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया तो उसी दिन से कुनबे की कलह को हवा मिली। गायत्री प्रजापति और राजकिशोर प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के करीबी माने जाते थे। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे गायत्री और राजकिशोर की बर्खास्तगी से मुख्यमंत्री ने कई संदेश देने की कोशिश की। इसके ठीक अगले दिन मुख्यमंत्री ने बड़ा कदम उठाते हुए शिवपाल से लोक निर्माण, सहकारिता, सिंचाई और राजस्व जैसे महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए। इतना ही नहीं, शिवपाल के करीबी कहे जाने वाले मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटाकर राहुल भटनागर को मुख्य सचिव बना दिया।

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कुनबे की कलह को दूर करने की पहल हुई तो फिर अखिलेश के सारे फैसले पलट गए। राजकिशोर तो मंत्रिमंडल में वापस नहीं हो सके लेकिन गायत्री को दोबारा शपथ दिलाई गई। इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ संदेश देने की मुख्यमंत्री की कोशिश लटक गई। पीडब्लूडी छोड़कर शिवपाल के सारे विभाग मुख्यमंत्री को लौटाने पड़े। इसके पहले अखिलेश यादव ने कौमी एकता दल के सपा में विलय को निरस्त करा दिया था। प्रतिक्रिया में कौमी एकता दल के अध्यक्ष अफजाल अंसारी ने मुलायम और अखिलेश दोनों को ही को चुनौती दी थी। शिवपाल जब प्रदेश अध्यक्ष बने तो उन्होंने कौमी एकता दल के विलय पर मोहर लगा दी। अब जबकि शिवपाल को अखिलेश ने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया है और साथ में शिवपाल के चहेते ओमप्रकाश सिंह, शादाब फातिमा और नारद राय की भी बर्खास्तगी हुई है तो कयास लग रहे हैं कि क्या एक बार फिर इनकी वापसी होगी।

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पिछली बार अखिलेश को अपने फैसले भले वापस लेने पड़े लेकिन शिवपाल सिंह ने उस बीच जो फैसले किए सब बने रहे। मसलन, अखिलेश यादव के करीबी एमएलसी आनंद सिंह भदौरिया और सुनील सिंह साजन समेत कई युवा नेताओं के साथ ही सभी फ्रंटल संगठनों के अध्यक्षों को बाहर कर दिया। शिवपाल ने मंत्री और प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी की जगह दूसरे प्रवक्ता चुन लिए जबकि लंबे समय से कार्यालय चला रहे एसआरएस यादव को भी सपा मुख्यालय से बाहर जाना पड़ा। शिवपाल ने उनकी जगह कमान वीरेंद्र सिंह को सौंपी। ये फैसले भी यथावत हैं। यहां तक कि शिवपाल ने अपनी पसंद के लोगों को प्रदेश कार्यकारिणी में जगह दी। ऐसे में अखिलेश के सामने यह नई चुनौती है कि क्या शिवपाल सिंह यादव के सभी फैसले लागू रहेंगे और अखिलेश यादव को फिर से अपना कदम समेटना पड़ेगा।
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पहले भी पलटे गए अखिलेश के फैसले
- मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने फैसला किया कि सभी मॉल को रात में जल्दी बंद करा दिया जाएगा। कैबिनेट में फैसले के बावजूद इसे वापस लेना पड़ा।
-गोंडा में सीएमओ के साथ अभद्रता के मामले में चर्चा में आए मंत्री विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह से अखिलेश यादव ने इस्तीफा ले लिया था लेकिन बाद में पंडित सिंह को मंत्रिमंडल में वापस करना पड़ा। फिर वह कैबिनेट मंत्री भी बनाए गए।

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-अखिलेश ने 2012 के विधानसभा चुनाव में इलाहाबाद के बाहुबली अतीक अहमद की राह रोकी लेकिन 2014 के चुनाव में अतीक को सपा से लोकसभा का टिकट मिल गया।
- अखिलेश कुंडा कांड के बाद रघुराज प्रताप सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल न करने के पक्षधर थे लेकिन मुलायम के दबाव में उन्हें मजबूर होना पड़ा।
- अखिलेश कैबिनेट का फैसला था कि विधायक अपनी निधि से 20 लाख रुपये तक की कार खरीद सकते हैं। इस फैसले का विरोध होने से इसे भी वापस लेना पड़ा।


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