...बिन पैसे का प्यार यानी सीएसआर
लव इज ब्लाइंड नो मोर-प्यार अब अंधा नहीं होता। लव का अपना विजन होता है। अगर मेरी बेटी किसी गरीब से प्यार करे तो मैं कहूंगा-ठीक है, सोशल स्टेटस के लिए, लेकिन ..इससे ज्यादा नहीं। बिन पैसे का प्यार यानी सीएसआर है।
लखनऊ(अजय शुक्ला)। लव इज ब्लाइंड नो मोर-प्यार अब अंधा नहीं होता। लव का अपना विजन होता है। अगर मेरी बेटी किसी गरीब से प्यार करे तो मैं कहूंगा-ठीक है, सोशल स्टेटस के लिए, लेकिन ..इससे ज्यादा नहीं। बिन पैसे का प्यार यानी सीएसआर है।
'संवादी' के पहले दिन के दूसरे सत्र 'लव एंड राइटिंग इन डिजिटल एरा' में ऐसी बेबाकियां युवा मस्तिष्क व विचारों से ही निकल सकती थीं और निकलीं भी। वैशाली माथुर ने सवाल उठाया कि आज प्यार में पैसे की क्या अहमियत है। इस पर हिंदी और अंग्रेजी में समान रूप से चर्चित 37 वर्षीय युवा लेखक पंकज दुबे ने साफगोई से स्वीकारा कि अरबन सिटी में अब प्यार अंधा नहीं होता। कॉलेज स्टूडेंट्स को लेखनी से सम्मोहित कर चुके दुर्जाय दत्ता भी इससे सहमत नजर आए। स्वभाव से शर्मीले दुर्जाय भी पंकज की तरह प्यार में पैसे की अहमियत नजरअंदाज नहीं कर सके। कहा, पैसा मायने रखता है। निश्चित रखता है, लेकिन इसमें आपके स्वभाव की भी अहमियत है। यदि आप रूड और एरोगेंट हैं तो यहां पैसा पीछे हो जाता है।
पठनीयता के संकट के दौर की गूंज के बीच दोनों लेखकों की लेखकीय यात्र परंपरा से विपरीत ध्रुवी लगती है। उनके अनुभव अलहदा हैं। दुर्जाय बंगाली परिवार से ताल्लुक रखते हैं। गुजरात में पैदा हुए और दिल्ली में पढ़ाई की और इसी दौरान युवा साथियों के जीवन में आ रहे बदलावों को महसूस कर ब्लॉग लिखने लगे। 20-30 हजार शब्द लिखने के बाद लगा कि यह पुस्तक के रूप में आए तो पेंग्विन से संपर्क किया और लेखकीय यात्रा की शुरुआत हो गई। यह चस्का आगे बढ़ा हर साल एक किताब आने लगी। इस बीच टीवी शो 'साडा हक-माई लाइफ' और 'ग्रैपवाइन' के नाम से पब्लिशिंग हाउस शुरू किया।
पंकज दुबे की लेखन यात्रा भी काफी दिलचस्प है। वह बीबीसी वल्र्ड के लिए लंदन में काम कर रहे थे। एक रात देखा कि एक जगह किसी भारतीय शहर की तरह कतार लगी है। रुके, देखा तो पता चला, जेके रॉलिंग की हैरी पॉटर सीरीज की किताब लांच होने वाली है और कहीं सुबह तक सारी प्रतियां बिक न जाएं इसलिए कतार लगी है। यह बात पंकज के जीवन में लेखकीय टर्न लेकर आई। साथ ही मस्तिष्क को झिंझोड़ा। सवाल उठा, भारत में लेखकों के प्रति इतना उभार क्यों नहीं। समझ आया कि यहां रीडर की ग्रोथ, राइटर की ग्रोथ से आगे है। रीडर का ज्ञान, जरूरतें और विषय बदल गए हैं, लेकिन लेखक अभी उन्हीं पुरानी चिंताओं में व्यस्त हैं। खिलंदड़ी भाषा में संवाद कर रहे पंकज ने लेखन की शुरुआत के लिए बचपन में लिखे लव लेटर का शुक्रिया करते हुए बताया कि लंदन के अनुभव तक यह बालपन ग्रेजुएशन हासिल कर चुका था और इसी के बाद लिखना शुरू कर दिया। हाल में इनकी किताब इश्कियापा रिलीज हुई है।
संवादी का यह सत्र युवपन से भरपूर रहा। इसलिए बातें भी युवाओं की रूमानी चिंताओं के इर्द-गिर्द सिमटी रहीं। दोनों लेखकों की खास बात है वह लव एंड रिलेशनशिप पर लिखते हैं, लेकिन स्टाइल अलग-अलग है। दुर्जाय लिखते समय अपना लैपटॉप शिफ्ट नहीं करते तो पंकज जब तक कागज और कलम न पकड़ें लिखना संभव नहीं हो पाता। कहते हैं, मन चंचल है लैपटॉप पकड़ते ही फेसबुक व पॉपप पर रिएक्ट करने लग जाता है। वैशाली ने पूछ लिया कि अपने उपन्यासों के टाइटल क्या सोचकर रखते हैं। दुर्जाय का जवाब दिलचस्प था-प्रकाशक ने कहा कि टाइटल 19 कैरेक्टर का होना चाहिए, इसलिए 'ऑफकोर्स ! आइ लव यू' कर दिया। फिर प्रकाशक ने इसे ही यूएसपी मानकर हर सीक्वल के लिए यही जिद कर दी। पंकज ने माना कि टाइटल मार्केटिंग सेंटिक है, क्योंकि मार्केटिंग ही अवेयरनेस का माध्यम है। सत्र के समापन पर लेखकों ने लड़के-लड़कियोंको इम्प्रेस करने के अनोखे टिप्स दिये और युवा लेखकों को प्रेरणा भी।