बर्खास्त विधायक कोर्ट में देंगे फैसले को चुनौती
लोकायुक्त जांच के बाद चुनाव आयोग की संस्तुति पर कल राज्यपाल राम नाईक के आदेश पर बर्खास्त बसपा विधायकउमाशंकर सिंह और भाजपा विधायक बजरंग बहादुर सिंह फैसले को कोर्ट में चुनौती देंगे। दोनों विधायकों ने कहा है कि उनकी दलीलों को ठीक से नहीं सुना गया। विधायकों के पक्ष में
लखनऊ। लोकायुक्त जांच के बाद चुनाव आयोग की संस्तुति पर कल राज्यपाल राम नाईक के आदेश पर बर्खास्त बसपा विधायकउमाशंकर सिंह और भाजपा विधायक बजरंग बहादुर सिंह फैसले को कोर्ट में चुनौती देंगे। दोनों विधायकों ने कहा है कि उनकी दलीलों को ठीक से नहीं सुना गया। विधायकों के पक्ष में उनकी पार्टियां भाजपा व बसपा भी हैं।
बसपा ने बर्खास्तगी को संविधान और जनभावना विरोधी करार दिया तो भाजपा ने लोकायुक्त की मंशा पूर्वाग्रह भरी होने का आरोप लगाया। कल बसपा विधायक उमा शंकर सिंह के बर्खास्त होने की सूचना जारी होते ही पत्रकार वार्ता में बसपा के विधानमंडल दलनेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने फैसले की भत्र्सना की। उन्होंने फैसले को अलोकतांत्रिक और जनभावना के विपरित बताते हुए कहा कि इससे नैसर्गिक न्याय समाप्त होगा। मौर्य ने लोकायुक्त, निर्वाचन आयोग व राज्यपाल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि संवैधानिक व्यवस्था व परंपराओं का सही अनुपालन होना चाहिए। इस अवसर पर उमाशंकर ने कहा कि फैसले की कापी मिलने के बाद विधि परामर्श लेंगे और कोर्ट जाएंगे। उनकी नाराजगी लोकायुक्त व निर्वाचन आयोग को लेकर अधिक थी। उन्होंने अपने पक्ष में कई तर्क भी प्रस्तुत किए, कहा कि ऐसे मामलों में सुनवाई करने का हक केवल कोर्ट को ही है और वो भी विधायक निर्वाचित होने के 45 दिन के भीतर। उमाशंकर का कहना था कि लोकायुक्त से लेकर राज्यपाल तक सुनवाई के दौरान उनका पक्ष गंभीरता से नहीं सुना गया। ठेकेदारी के बारे में तमाम तथ्य प्रस्तुत किए लेकिन उन्हें न्याय से वंचित किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकायुक्त ने उनसे व्यक्तिगत वार्ता में उनके तर्कों को स्वीकार भी किया था लेकिन सिफारिश प्रतिकूल की।
बजरंग बहादुर सिंह ने कहा किसी टेक्निकल फाल्ट के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई हुई। वह न्यायालय जाएंगे। अपने विधायक की बर्खास्तगी को लेकर भाजपा का रुख भी बसपा से अलग नहीं है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का कहना है कि फैसले का सम्मान है लेकिन लोकायुक्त की मंशा पूर्वाग्रह भरी है। निर्वाचन आयोग भी इस प्रकार के कई मामलों में विधायकों को चेतावनी देकर छोड़ चुका है। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकायुक्त भ्रष्टाचार के मगरमच्छों पर कार्रवाई से कतरा रहे हैं और मछलियों को पकड़ रहे हैं। कई पूर्व व वर्तमान मंत्रियों के भ्रष्टाचार की फाइलों पर गंभीरता से सुनवाई नहीं हो रही है।
चुनाव लड़ सकते हैं बशर्ते...
संविधान के अनुच्छेद 191 (ई) के तहत व लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के 9 (क) के जरिये अयोग्य विधायक दोबारा चुनाव लड़ सकता है बशर्ते वह सरकारी ठेका, पट्टा छोड़ दे या चुनाव घोषित होने से पहले कंपनियों से पूर्णत: अलग हो जाए।
कांस्ट्रक्शन प्राफिट व विधायक का वेतन लेने पर हुई कार्रवाई
भाजपा के बजरंग बहादुर सिंह को एक साथ दो सरकारी लाभ लेने पर अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी। 2007 में पहली बार विधायक बने बजरंग बहादुर सिंह को 2012 के चुनाव में भी क्षेत्र की जनता ने सिर आंखों पर बैठाया था, लेकिन दस फीसद कांस्ट्रक्शन प्राफिट और विधायक का वेतन, भत्ता एक साथ लेना उन्हें मंहगा पड़ गया।
गोरखपुर के मरहठा गांव के बजरंग बहादुर सिंह को भाजपा ने 2007 में चुनावी मैदान में उतारा और वह तत्कालीन मंत्री श्याम नरायन तिवारी को हराकर विधायक बन गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी वीरेंद्र चौधरी को लगभग 18 हजार मतों से हराया।
उमाशंकर ने छात्रसंघ से शुरू की राजनीति
सैनिक पिता के पुत्र उमाशंकर सिंह ने राजनीति की पहली सीढ़ी छात्र जीवन में चढ़ी। सतीश चंद्र कालेज छात्रसंघ के महामंत्री रहने के पश्चात उन्होंने जिला पंचायत चुनाव जीता। 2012 के विधान सभा चुनाव में वह रसड़ा से बसपा के टिकट पर जीते।
दोनों विधायकों से वसूले जाएंगे सभी भत्ते
राज्यपाल के 'बैक डेट' से दो विधायकों की सदस्यता समाप्त करने के बाद दोनों विधायकों द्वारा विधायक रहते हुए प्राप्त किए गए भत्ते व वेतन की उनसे वसूली की जाएगी। उन्हें मिले जहाज और रेल के कूपन के समतुल्य राशि भी वसूल की जाएगी। उनको मिलने वाली टेलीफोन की सुविधा पर आने वाला खर्च भी वसूला जाएगा। एक विधायक को वेतन भत्ते की मद में प्रतिमाह लगभग 55 से 60 हजार की राशि प्राप्त होती है। इसके अलावा यात्रा के लिए प्रति वर्ष दो लाख के कूपन मिलते हैं। बेसिक फोन व मोबाइल की सुविधा भी दी जाती है। बैक डेट से सदस्यता समाप्त करने का मामला एक असामान्य घटना है इसलिए विधान सभा सचिवालय के अधिकारी भी खुलकर बोलने से बच रहे हैं लेकिन उनका दावा यही है कि अगर इच्छा शक्ति हो तो विधायकों के वेतन, भत्ते व अन्य लाभ की वसूली भू राजस्व की वसूली की तर्ज पर हो सकती है।
बसपा के उमा शंकर सिंह को उनके निर्वाचन की तिथि छह मार्च 2012 तथा भाजपा के बजरंग बहादुर सिंह को 15 अक्टूबर 2012 की तिथि से अयोग्य घोषित किया गया है लेकिन इस दौरान दोनों ने राष्ट्रपति चुनाव व विधान परिषद चुनाव में मतदान किया है। सूत्रों का कहना है कि इस बारे में भारत निर्वाचन आयोग को सूचित कर दिया जाएगा और आयोग ही इस बारे में कोई अग्रेतर कदम उठाने के लिए सक्षम सांविधानिक संस्था है। वैसे व्यवहारिक कारणों से राष्ट्रपति चुनाव अथवा विधान परिषद चुनाव में मतदान को लेकर अब कुछ करने की गुंजायश नहीं बचती है।
यह है नियम
कोई भी जनप्रतिनिधि दो जगह से वेतन नहीं ले सकता। यानी अगर कोई व्यक्ति विधायक या सांसद हो गया है और किसी निजी कंपनी का निदेशक या प्रोपराइटर भी है तो सिर्फ एक ही स्थान से वेतन ले सकता है। दोनों जगह से वेतन लेने पर उसकी सदस्यता जा सकती है।
ये भी हुए विधायकी के लिए अयोग्य
- बसपा के टिकट पर 2002 में संत रविदास नगर की औराई विधान सभा सीट से निर्वाचित विधायक उदय भान सिंह उर्फ डाक्टर सिंह (बाद में सपा में शामिल) को तिहरे हत्याकांड में सजा मिलने के बाद 2005 में विधान सभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। हत्या के मामले में सजा के बाद सदस्यता से हाथ धोने का यह पहला प्रकरण था।
-विधान सभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने लोकतांत्रिक बहुजन दल छोड़कर बसपा में जाने वाले पांच विधायकों को दलबदल कानून के तहत 11 जून, 2006 को सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। इन विधायकों में मैनपुरी की घिरौर सीट के जयवीर सिंह, रायबरेली की सतांव सीट के सुरेन्द्र विक्रम सिंह, हापुड़ से धर्मपाल, औरैया से रामजी शुक्ला तथा सीतापुर की मछरेहटा सीट के राम कृष्ण शामिल थे।
- राज्य सभा चुनाव में पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने के आरोप में विधान सभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने 20 अगस्त, 2006 को सपा के चार विधायकों को अयोग्य घोषित किया। इनमें बिजनौर की बबीना सीट से ओमवती, उन्नाव की सफीपुर से सुन्दर लाल, कन्नौज से कल्याण सिंह दोहरे तथा झांसी की बबीना से रतन लाल अहिरवार शामिल थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति प्रदीपकांत व अरुण टंडन की बेंच ने विधान सभा अध्यक्ष के निर्देश पर अंतरिम स्थगन आदेश दिया लेकिन विधायकों पर विधान सभा में वोट देने पर पाबंदी लगा दी।
- बाहुबली डीपी यादव की पत्नी तथा बदायूं की बिल्सी सीट से विधायक उमलेश यादव को भारत निर्वाचन आयोग ने अक्टूबर 2011 में चुनाव का खर्च छुपाने व पेड न्यूज में लिप्त होने के कारण लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 10 (ए) के तहत विधान सभा की सदस्यता से तीन साल के लिए अयोग्य घोषित किया। इस प्रावधान के तहत सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित होने का यह पहला मामला था।
-तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने 14 अक्टूबर 2011 को दल बदल कानून के तहत बसपा के तीन विधायकों को अयोग्य घोषित किया। इनमें बुलंदशहर की डिबाई सीट से विधायक भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित, बाराबंकी की मसौली सीट के विधायक फरीद महफूज किदवई व अम्बेडकर नगरी सीट के विधायक शेर बहादुर सिंह थे।
- तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने 17 अक्टूबर को दलबदल कानून के तहत तीन बसपा विधायकों की सदस्यता समाप्त की। इनमें हरदोई की मल्लावां सीट के विधायक कृष्ण कुमार सिंह उर्फ सतीश वर्मा, संत कबीरनगर की हैसर बाजार सीट के विधायक दशरथ सिंह चौहान, फैजाबाद की बीकापुर सीट के विधायक जितेन्द्र कुमार सिंह उर्फ बबलू थे।
- हाल ही में ललितपुर जिले की चरखारी सीट से उपचुनाव में सपा विधायक के तौर पर निर्वाचित हुए कप्तान सिंह राजपूत को हत्या के मामले में उम्र कैद होने के बाद विधान सभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा।