लखनऊ के निजी अस्पतालों में वेंटीलेटर ऑफ पर वसूली का मीटर ऑन
लखनऊ के ऐसे कई निजी अस्पताल हैं जहां मरीजों को बिना वजह क्रिटिकल केयर में रखा जाता है और वेंटीलेटर का इस्तेमाल नहीं होने पर भी शुल्क वसूला जाता है।
लखनऊ (रूमा सिन्हा/संदीप पांडेय)। निजी अस्पतालों में आइसीयू का गोरखधंधा चल रहा है। क्रिटिकल केयर का हवाला देकर जरूरत न होने पर भी मरीज को यूनिट में शिफ्ट कर दिया जाता है। वहीं वेंटीलेटर ऑफ होने पर भी जमकर शुल्क चार्ज किया जा रहा है। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि यह कारनामे निजी अस्पतालों में गत दिनों हुईं घटनाओं में उजागर हुए।
गत वर्ष गोमती नगर के एक निजी अस्पताल में मरीज की मौत के बाद भी दो दिन तक वेंटीलेटर पर रखकर शुल्क वसूलने के आरोप लगे। तीमारदारों ने अस्पताल में जमकर तोड़फोड़ की थी। वहीं गत माह इंदिरा नगर के एक अस्पताल पर तीमारदारों ने बेवजह मरीज को वेंटीलेटर पर शिफ्ट कर चार्ज वसूलने का आरोप लगाया। आलम यह है कि आइसीयू में कार्डियक मॉनीटर सपोर्ट पर होने के बावजूद अस्पताल वेंटीलेटर के हजारों रुपये चार्ज कर रहे हैं। वहीं क्रिटिकल केयर के नाम पर निजी अस्पतालों के आइसीयू में चल रहे इस गोरखधंधे पर अधिकारी खामोश हैं।
अस्पतालों में गैर जनपद के मरीजों को रडार पर रखा जाता है। स्थानीय डॉक्टर से रेफर हो कर आए मरीज को हालत गंभीर बताकर आइसीयू में शिफ्ट कर देते हैं, जबकि उनका वॉर्ड में ही ऑक्सीजन सपोर्ट पर इलाज मुमकिन होता है। मगर भारी-भरकम बिल बनाने के लिए ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर को आइसीयू में मरीज शिफ्ट करने के लिए प्रबंधन का दबाव होता है।
दवाओं का होता है खेल: आइसीयू में भर्ती मरीज को गंभीर बताकर तीमारदारों को बार-बार पर्ची थमाई जाती है। हजारों रुपये की दवाएं मंगवाकर स्टाफ रख लेता है। वहीं शिफ्ट बदलते ही संबंधित स्टाफ अस्पताल की ही फार्मेसी पर दवा वापस कर जेब भरता है।
सरकारी अस्पतालों में जहां वेंटीलेटर का कोई शुल्क नहीं है। यहां की यूनिट में अति गंभीर मरीज पर दवा का 10 हजार रुपये के करीब खर्च आता है। वहीं निजी अस्पतालों में एक दिन का 20 से 25 हजार का बिल आमतौर पर काटा जाता है।
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पैरामेडिकल के भरोसे यूनिट: देश में एनेस्थेटिस्ट और टेंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विशेषज्ञों का भी संकट है। आलम यह है कि तमाम अस्पतालों में संचालित क्रिटिकल केयर यूनिट में संबंधित ट्रेंड चिकित्सक ही नहीं है। नर्स व पैरामेडिकल स्टाफ के सहारे ही यूनिट रन की जा रही हैं। सरकारी अस्पतालों में वेंटीलेटर का संकट है। ट्रॉमा सेंटर, पीजीआइ हो या लोहिया संस्थान यहां की यूनिट अक्सर फुल रहती हैं। ऐसे में निजी अस्पतालों के दलाल सरकारी अस्पतालों में सक्रिय रहते हैं। यह कर्मचारियों को कमीशन का झांसा देकर मरीज को चुंगल में फंसाकर अपने अस्पतालों में शिफ्ट करते हैं।
इन्हें चाहिए वेंटीलेटर: हेडइंजरी, फ्रैक्चर, गंभीर सांस रोगी, मल्टीपल इंजरी, मल्टीऑर्गन फेल्योर, सेप्टीसीमिया, सेप्टिक शॉक, सांस व हाई बीपी सहित अन्य गंभीर मरीजों को वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है।
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