खेत में ही कृषि अवशेष दबाएं और पैसे भी कमाएं
लखनऊ : पराली या कृषि अवशेष अब किसानों के लिए समस्या नहीं रहेगी। इनसे किसान कंपोस्ट तैयार करेंगे। ज
लखनऊ :
पराली या कृषि अवशेष अब किसानों के लिए समस्या नहीं रहेगी। इनसे किसान कंपोस्ट तैयार करेंगे। जो खेत को तो ताकत देगा, साथ ही किसानों की अतिरिक्त आय भी होगी। यह कंपोस्ट तैयार करने को प्रदेश सरकार ने मनरेगा में शामिल कर लिया है।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा व पंजाब में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली से दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है। लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाता है, वहीं धुंध के चलते फ्लाइट तक कैंसिल करनी पड़ती हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने वर्धमान बनाम कौशिक व विक्रांत तोंगड बनाम एनवायरमेंट पॉल्यूशन (प्रिवेंशन कंट्रोल) अथॉरिटी व अन्य द्वारा की गई याचिका पर फैसला देते हुए प्रदेश सरकार को इस समस्या से निपटने के निर्देश दिए थे। इस संदर्भ में शासन ने बीते वर्ष शासनादेश कर पराली या कृषि अवशेष जलाने पर जुर्माने का आदेश दिया था।
मुख्य सचिव राहुल भटनागर के आदेश के अनुपालन में सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिया गया कि वह किसानों को खेत में गड्ढा बनाकर कृषि अवशेष दबाकर उससे कंपोस्ट बनाने के लिए प्रेरित करें। किसानों को प्रेरित करने के लिए इसे मनरेगा में शामिल किया जाए, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय भी हो सके। शासन का कहना है कि गांव में ग्राम समाज की भूमि बहुत कम रह गई है, वहां कृषि अवशेष एकत्र करना ठीक नहीं रहेगा। किसानों को मनरेगा के तहत उन्हीं के खेत में कंपोस्ट बनाने के लिए प्रेरित किया जाए।
याचिका करने वाले विक्रांत तोंगड़ का कहना है कि देश में 400 हजार किलो कृषि अवशेष हर साल निकलता है। इतनी बड़ी मात्रा में होने वाले बायोमास को अनजाने में किसान जला देते हैं। इससे वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम हो रही है। साथ ही मित्र जीवाणु व जीवाश्म पदार्थ समाप्त हो रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि कृषि अवशेष को जलाने पर सख्त कार्रवाई हो।
बुलंदशहर बनेगा मॉडल शहर
एनजीटी के आदेश के अनुपालन में मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने जिलाधिकारी बुलंदशहर को आदेश दिया है कि कॉरपोरेट सोशल रिसपांसेबिलिटी (सीएसआर) के तहत शहर को कृषि अवशेष के संदर्भ में मॉडल शहर बनाएं। इसके लिए डीएम बुलंदशहर की अध्यक्षता में गति कमेटी हर माह बैठक करेगी।
इंडस्ट्री बनाने का प्रयास
कम लोग जानते होंगे कि राइस हस्क, धान, बगास व अन्य कृषि अवशेष से प्लाईवुड बनाई जाती है। चूंकि राइस हस्क में सिलिका होता है, इससे बोर्ड तो मजबूत होता है साथ ही आग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी होती है। ऐसे बोर्ड से नोएडा के गांव में टॉयलेट बनाए गए हैं। प्रशासन की कोशिश है कि इस तरह की प्लाइवुड फैक्ट्री सीएसआर के तहत लगवाई जाए। इससे रोजगार सृजित होने के साथ प्लाईवुड बनाने के लिए पेड़ों की कटान भी कुछ हद तक रुकेगी।