पहले उभरा, फिर घट गई अपना दल की ताकत
विधानसभा चुनाव में चार बार किस्मत आजमाने वाले इस दल ने एक बार भाजपा और एक बार पीस पार्टी से गठबंधन किया लेकिन दोनों बार चुनाव बीतते ही रिश्ते टूट गए।
लखनऊ (राज्य ब्यूरो )। अपना दल समझौते की सियासत में लंबे समय तक किसी से निभा नहीं सका। विधानसभा चुनाव में चार बार किस्मत आजमाने वाले इस दल ने एक बार भाजपा और एक बार पीस पार्टी से गठबंधन किया लेकिन दोनों बार चुनाव बीतते ही रिश्ते टूट गए। उभार के बाद हर बार इस दल की ताकत घटती गई।
करीब 21 वर्ष पहले बसपा से बगावत कर डॉ. सोनेलाल पटेल ने अपना दल की स्थापना की। 1996 के चुनाव में वह 155 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। तब जीत एक भी सीट पर नहीं मिली लेकिन 0.77 प्रतिशत मत पाकर लोगों को चौंका दिया। 2002 के चुनाव में अपना दल की किस्मत का ताला खुला और 227 सीटों पर लड़कर तीन सीटें जीत लीं। इस बार अपना दल को 2.16 प्रतिशत वोट मिला। तब पहली बार भाजपा को अपना दल के वोटों का अंदाजा लगा। 2007 में भाजपा ने इस दल से समझौता किया और अपना दल ने समझौते के तहत 39 सीटों पर चुनाव लड़ा। 2007 में अपना दल का वोट घटकर 1.06 प्रतिशत हो गया और कोई सीट भी नहीं जीत पाए। 2012 में पीस पार्टी से समझौते में 76 सीटों पर लडऩे के बावजूद सिर्फ अनुप्रिया पटेल ही रोहनियां से चुनाव जीतीं। इस बार वोट का ग्राफ और कम हो गया। अपना दल को सिर्फ 0.90 प्रतिशत मत ही मिले।
अगले चुनाव में ही पता चलेगी दोनों की ताकत
भाजपा गठबंधन से अलग होने का एलान करने के बाद अपना दल (कृष्णा पटेल) को मजबूत विकल्प की जरूरत है। अभी कृष्णा गुट अपना पत्ता खोलने से बच रहा है। संकेत दे दिया है कि नीतीश के साथ नहीं जाएंगे लेकिन सपा और कांग्रेस में विकल्प तलाशे जा रहे हैं। उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुप्रिया को केंद्र सरकार में मंत्री बनाकर उनका प्रभाव बढ़ा दिया है। अनुप्रिया के मंत्री बनने से कार्यकर्ताओं का झुकाव उनकी ओर देखने को मिला है। गुरुवार को एक धड़े की राष्ट्रीय कार्यसमिति के जवाब में उतनी ही संख्या में दूसरे धड़े ने अपनी उपस्थित दर्शाकर इसे साबित करने का प्रयास किया। अब दोनों की असली ताकत 2017 के विधानसभा चुनाव में ही पता चलेगी।
सक्रियता की वजह से अनुप्रिया को भाजपा की शह
कृष्णा पटेल और पल्लवी पटेल अनुप्रिया के मंत्री बनाये जाने को भाजपा का सियासी स्टंट करार दे रही हैं लेकिन इस सच से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पिता डॉ. सोनेलाल पटेल के निधन के बाद से ही सियासत में सक्रिय भागीदारी के चलते भाजपा ने अनुप्रिया को शह दिया है। अनुप्रिया ही शुरुआती दौर में कृष्णा पटेल का सहारा रहीं और विधायक व सांसद बनने से उनके अनुभव भी बढ़े हैं। उनकी बहन पल्लवी पटेल भी तेज तर्रार हैं लेकिन राजनीति में वह घरेलू विवाद के बाद सक्रिय हुई।
दूसरों को मिल सकता लाभ
फतेहपुर, कौशांबी, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, वाराणसी, मीरजापुर, फैजाबाद, बाराबंकी, सुलतानपुर, अंबेडकरनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर और गोंडा आदि जिलों में कुर्मी बिरादरी में अपना दल की पहचान बनी है। मीरजापुर, वाराणसी, इलाहाबाद और प्रतापगढ़ में पकड़ भी मजबूत है लेकिन मां-बेटी की रार में तीसरा भी फायदा ले सकता है। सपा में बेनी प्रसाद वर्मा और नरेश उत्तम, बसपा के लालजी वर्मा और भाजपा के दर्जन भर वरिष्ठ नेताओं का भी इन क्षेत्रों के कुर्मी बिरादरी में अपना अलग प्रभाव है। सोनेलाल पटेल के समय से अपना दल में सक्रिय रहे बहुत से नेता इस लड़ाई से नुकसान मान रहे हैं लेकिन वह भी कृष्णा और अनुप्रिया के बीच बंटे हैं। आरबी पटेल जैसे लोग कृष्णा के साथ हैं तो आरके वर्मा अनुप्रिया के साथ।