महापौरों पर से हटेगी अविश्वास की तलवार!
राज्य सरकार ने वित्त आयोग की सिफारिश मानी तो नगर निगमों के पार्षद (सदस्य) अब महापौरों को ब्लैक-मेल नहीं कर सकेंगे। अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से महापौरों को पद से नहीं हटाया जा सकेगा। ऐसे में महापौर भी जन आकांक्षाओं के प्रति अपने दायित्वों को स्वतंत्र रूप से निभा सकेंगे।
लखनऊ (अजय जायसवाल)। राज्य सरकार ने वित्त आयोग की सिफारिश मानी तो नगर निगमों के पार्षद (सदस्य) अब महापौरों को ब्लैक-मेल नहीं कर सकेंगे। अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से महापौरों को पद से नहीं हटाया जा सकेगा। ऐसे में महापौर भी जन आकांक्षाओं के प्रति अपने दायित्वों को स्वतंत्र रूप से निभा सकेंगे।
अभी नगर निगमों के महापौरों पर सदैव अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटाए जाने की तलवार लटकती रहती है। नगर निगमों के सदस्य चाह लें तो महापौरों को पद गंवाना पड़ सकता है। ऐसे में महापौरों का यही कहना रहता है कि अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सदस्य उन्हें एक तरह से ब्लैक-मेल करने की कोशिश करते रहते हैं। सदस्य, अनुचित दबाव डालते हैं और आपत्तिजनक कृत्यों के लिए संरक्षण प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
ऐसे में चतुर्थ राज्य वित्त आयोग के समक्ष महापौरों ने तर्कों के साथ पूरी बात रखी तो आयोग भी उनके पक्ष में खड़ा हो गया है। सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल के माध्यम से राज्य सरकार को सौंपी गई गोपनीय रिपोर्ट में आयोग ने सरकार से महापौरों को नगर निगम के सदस्यों के अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से पद से हटाने की व्यवस्था को समाप्त करने की सिफारिश की है। आयोग का कहना है कि 'अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति उसी स्थिति में बनती है जब तैनाती या पद धारण विश्वास के आधार पर हुआ हो। मसलन, केंद्र व राज्य सरकारें लोकसभा या विधानसभा के विश्वास के आधार पर गठित होती हैं। इन सदनों के विश्वास के आधार पर वे बनी रहती हैं, इसलिए स्वाभाविक ही है कि यदि वे इन सदनों का विश्वास खो दें तो अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से उन्हें हटाये जाने की व्यवस्था हो, परन्तु महापौरों का पदधारण नगर निगम के सदन के विश्वास पर आधारित नहीं होता है, बल्कि वह जनता द्वारा सीधे चुना जाता है इसलिए सदन के विश्वास या अविश्वास का कोई प्रभाव महापौर के पद पर बने रहने पर नहीं होना चाहिए।
आयोग का मानना है कि अविश्वास प्रस्ताव की व्यवस्था समाप्त करने से निश्चित रूप से महापौर स्वतंत्र रूप से जन आकांक्षाओं के प्रति अपने दायित्वों के अनुसार कार्यवाही करने में सक्षम होंगे। सूत्र बताते हैं कि सरकार भी आयोग की संस्तुति मान सकती है क्योंकि नगर पालिक परिषद व नगर पंचायत के सीधे जनता से चुने जाने वाले अध्यक्षों को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटाने जाने की व्यवस्था पहले ही खत्म की जा चुकी है।
महापौरों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की यह है व्यवस्था
उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 16 के तहत महापौरों को पद से हटाने की व्यवस्था है। इसके तहत चुने जाने के दो वर्ष बाद महापौर को पद से हटाने के लिए पहले-पहल नगर निगम के न्यूनतम 50 फीसद सदस्यों को अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस संबंधित मंडलायुक्त को देनी होगी। नोटिस से 30-35 दिनों के दरमियान जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में बुलाए गए अधिवेशन में तीन-चौथाई सदस्यों के पारित अविश्वास प्रस्ताव को मंडलायुक्त के माध्यम से सरकार को भेजा जाएगा। सरकार द्वारा प्रस्ताव स्वीकृत करने पर महापौर को पद छोडऩा पड़ जाएगा।