National Tourism Day : स्मार्टफोन से चिपके तो नहीं आएगा पर्यटन का मजा, ऐसे बनाएं घूमने का प्लान
राष्ट्रीय पर्यटन दिवस (25 जनवरी) जहां भी जाएं सबसे पहले उस पर्यटन स्थल के बारे में विस्तार से जानकारी ले लें। पत्रिकाओं और पर्यटन विभाग से भी जानकारी ले सकते हैं।
लखनऊ, (जितेंद्र उपाध्याय)। सोशल मीडिया के बूम के बीच भी हम तमाम पर्यटन स्थलों की सैर को जाते हैं। इस सैर-सपाटे में का आनंद कहीं न कहीं हम सेल्फी लेकर फेसबुक पर अपलोड करने और फिर लाइक की गिनती करने में गवां देते हैं। हम उन नजारों की खूबसूरती को भूल जाते हैं, जिसे निहारने के लिए हम खुद या परिवार को लेकर वहां गए हैं। इस तरह हम सोशल मीडिया के भंवर में फंस कर पर्यटन स्थलों को आधा अधूरा जानकर वापस आ जाते हैं। 25 जनवरी को विश्व पर्यटन दिवस पर हम आपको पर्यटन स्थल पर बरती जाने वाली सावधानियों और लुत्फ उठाने के तरीकों के बारे में बता रहे हैं।
नए साल से लेकर अवकाश के दिनों में आप घूमने का प्लान बनाते हैं तो आप जहां भी जाएं सबसे पहले उस पर्यटन स्थल के बारे में विस्तार से जानकारी ले लें। पत्रिकाओं और पर्यटन विभाग से भी जानकारी बढ़ा सकते हैं। राजधानी ही नहीं आसपास के क्षेत्रों में मौजूद पर्यटन स्थल आपकी समझ से काफी खूबसूरत दिखने लगेंगे। पर्यटन स्थल गए और सेल्फी लेने, फेसबुक पर फोटो अपलोड करने और वॉट्सएप पर व्यस्त रहे तो आप वहां जाकर उसकी खूबसूरती को समझने से चूक जाते हैं।
गाइड से न करें परहेज
किसी भी पर्यटन स्थल को जानने के लिए आपको वहां लगी सूचनाओं को जरूर पढऩा चाहिए। कोशिश करें कि वहां के जानकार गाइड को अपने साथ जरूर ले लें। वह न केवल आपको वहां खासियत से परिचित कराता है बल्कि आपको उसकी बारीकियों की जानकारी भी देता है। ऐसी जानकारियों को साझा करके आप खुद के साथ अपने साथियों को भी उस पर्यटन स्थल के बारे में बताकर उसके प्रति लगाव तो पैदा ही कर सकते हैं वहीं अपनी जानकारी भी बढ़ा सकते हैं।
ऐसे करें इंज्वाय
पर्यटन स्थल पर जाने पर आप पैदल घूमने की कोशिश करें। पर्यटन विभाग के पूर्व अधिकारी जीवन शर्मा ने बताया कि आप यदि बड़ा इमामबाड़ा घूमने जा रहे हैं तो आपको सबसे पहले उसके निर्माण और उसकी खासियत के बारे में जानकारी जरूर करें। फिर उस जानकारी का अनुभव करें। उदाहरण के तौर पर जैसे बड़े इमामबाड़े में एक किनारे पर माचिस की तीली जलाने पर उसकी आवाज दूसरी तरफ सुनाई पड़ती है। तो आप वहां जाकर ऐसा करके अनुभव कर सकते हैं। भवन की बनावट और इतिहास की जानकारी के लिए आप गाइड की मदद भी ले सकते हैं। पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी के लिए वहां मिलने वाली ऐतिहासिक पुस्तकों को भी खरीद सकते हैं।
क्या करें
पर्यटन स्थल पर जाएं तो कोशिश करें कि आप सोशल मीडिया से दूर रहें। पर्यटन विभाग के अतुल ने बताया कि उस स्थान को जानने के साथ ही कुछ ऐसा अलग ढूढ़े जो आपको दोबारा आने को प्रेरित करे। पर्यटन स्थल के आसपास के इलाकों के बारे में भी जानकारी अवश्य करें। किसी भी पर्यटन स्थल की बारीकियों के बारे में खुद से सवाल करें और फिर उसके बारे में जानकारी हासिल करें। गाइड को लेकर जाने पर आप उससे मनचाहे सवालों के जवाब तो पूछ सकते हैं, लेकिन उसकी सत्यता के लिए उससे उदाहरण की जानकारी जरूर लें। किसी भी पर्यटन स्थल की खूबसूरती को निहारने के साथ ही उसे बचाने का प्रयास भी करना चाहिए।
ऐसा न करें
- मोबाइल फोन का प्रयोग तब करें जब बहुत आवश्यक हो।
- पर्यटन स्थल पर किसी भी तरह का निशान या नाम न लिखें, जिससे उसकी खूबसूरती बनी रहे।
- जहां भी जाएं परिवार के साथ जाएं और बच्चों से उस स्थल के बारे में सवाल-जवाब जरूर करें।
- धार्मिक और जंगली क्षेत्र में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। एक जहां वह आस्था का केंद्र होता है तो दूसरी जगह पर असावधानी जान जोखिम में डाल सकती है।
- हिल स्टेशन पर जाने पर आप सेल्फी से दूर रहें और सावधानियों को जरूर पढ़ें।
- पहाड़ की चोटी पर चढऩे तो विशेष सावधानी बरतें। कोशिश करें की खतरनाक चोटियों पर न चढ़ें।
लखनऊ के मशहूर पर्यटन स्थल
बड़ा इमामबाड़ा : बड़े इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसिफुद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अंतर्गत करवाया था। यह विशाल गुंबदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। यहां एक अनोखी भूल भुलैया है। इस इमामबाड़े में एक आसफी मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों के प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं।
छोटा इमामबाड़ा : छोटा इमामबाड़ा है, जिसका असली नाम हुसैनाबाद इमामबाड़ा है। यह मोहम्मद अली शाह की रचना है जिसका निर्माण 1837 ई. में किया गया था। आमतौर पर इसे छोटा इमामबाड़ा ही कहा जाता है। सआदत अली का मकबरा बेगम हजरत महल पार्क के समीप है। इसके साथ ही खुर्शीद जैदी का मकबरा भी बना हुआ है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं। मकबरे की शानदार छत और गुंबद इसकी खासियत हैं। ये दोनों मकबरे जुड़वा लगते हैं।
रूमी दरवाजा : बड़े इमामबाड़े के बाहर ही रूमी दरवाजा बना हुआ है। यहां की सड़क इसके बीच से निकलती है। इस द्वार का निर्माण भी अकाल राहत परियोजना के अंतर्गत किया गया था। नवाब आसिफुद््दौला ने यह दरवाजा 1782 में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।
रेजीडेंसी और घंटाघर : लखनऊ रेजीडेंसी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर दिखाते हैं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय यह रेजीडेंसी ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंट का भवन था। लखनऊ का घंटाघर भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है। हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप ही 19वीं शताब्दी में बनी एक पिक्चर गैलरी भी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं।
जामा मस्जिद : जामा मस्जिद हुसैनाबाद इमामबाड़े के पश्चिम दिशा में स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था, लेकिन 1840 ई. में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया। मोती महल गोमती नदी की सीमा पर बनी तीन इमारतों में से प्रमुख है। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था।