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टॉप स्पीड से भाग रही दुरावल 'एक्सप्रेस', अब मंजिल तक पहुंचेंगे 'नन्हें यात्री'

सरकारी स्कूल के बारे में सोचा है जो ट्रेन के डिब्बों के रूप में नजर आए। कमरे बोगी के रूप में दिखें और उसमें जाने के लिए सीढिय़ां लगी हों। कमरों का नाम भी एस वन, एस टू हो।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sat, 18 Nov 2017 01:30 PM (IST)Updated: Sat, 18 Nov 2017 04:39 PM (IST)
टॉप स्पीड से भाग रही दुरावल 'एक्सप्रेस', अब मंजिल तक पहुंचेंगे 'नन्हें यात्री'
टॉप स्पीड से भाग रही दुरावल 'एक्सप्रेस', अब मंजिल तक पहुंचेंगे 'नन्हें यात्री'

सोनभद्र [आनंद स्वरूप चतुर्वेदी]। आपने कभी ऐसे सरकारी स्कूल के बारे में सोचा है जो ट्रेन के डिब्बों के रूप में नजर आए। कमरे बोगी के रूप में दिखें और उसमें जाने के लिए सीढिय़ां लगी हों। कमरों का नाम भी एस वन, एस टू हो। नहीं न ! पर पिछड़े जिलों में शुमार सोनभद्र में एक ऐसा स्कूल है जो अन्य सरकारी स्कूलों के लिए अब उदाहरण है। यहां बच्चों को वी फॉर वायलिन पढ़ाया जाता है। स्कूल का नाम है - दुरावल एक्सप्रेस क्योंकि यह दुरावल खुर्द इलाके में स्थित है।

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दूर से ही बच्चे और अभिभावक इस स्कूल को पहचान लेते हैं क्योंकि यह है ही सबसे अलग। स्कूल के प्रधानाध्यापक राजकुमार सिंह को स्कूल का कायाकल्प करने के लिए शिक्षा विभाग से थोड़ी बहुत मदद मिली लेकिन, उतना नहीं जितने की आवश्यकता थी। ऐसे में इन्होंने कहीं इधर-उधर हाथ फैलाने की बजाय अपने तनख्वाह का सहारा लिया और अपने वेतन से हर महीने निश्चित धनराशि इकट्ठा की और अव्यवस्था के शिकार इस स्कूल को मॉडल बना दिया। राजकुमार सिंह की इस सोच को सलाम करते हुए बच्चे स्कूल की तरफ आकर्षित भी हो रहे हैं।

जिला मुख्यालय राबट्र्सगंज से करीब 15 किमी दूर स्थित दुरावल खुर्द के प्राथमिक विद्यालय में तैनात प्रधानाध्यापक राजकुमार सिंह शुरू से ही परिषदीय स्कूल की स्थिति सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। जब वर्ष 2011 में यहां इनकी तैनाती हुई तो बच्चों की संख्या 80 थी। जब अभिभावकों से संपर्क किया तो ज्यादातर लोग अंग्रेजी नर्सरी स्कूलों में बच्चे का नामांकन कराने की बात कहते मिले। कहते थे सरकारी स्कूल में व्यवस्था ही नहीं है। फिर क्या !

वर्ष 2013 में इन्होंने ठाना कि सरकारी स्कूल में ही ऐसी व्यवस्था देंगे जो प्राइवेट स्कूल में मिलती है। उन्होंने स्कूल को आकर्षक बनाने के लिए ऐसी पेंटिंग कराई कि विद्यालय भवन ट्रेन जैसा दिखने लगा। अब जबकि पूरे ग्राम पंचायत में दो विद्यालय संचालित हैं उसके बाद भी इनके यहां बच्चों की संख्या 90 से अधिक है। बच्चों के लिए पहले ट्रेन का आकर्षण काम आता है और फिर अच्छी पढ़ाई। प्रधानाध्यापक ने एक अतिरिक्त कक्ष बनवाकर उसे क्वालिटी एक्सप्रेस का नाम दिया है, जहां कमजोर बच्चों को अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर पढ़ाया जाता है।

जल्द ही अंग्रेजी में होगी पढ़ाई

राजकुमार सिंह ने बताया कि बच्चों के सीखने का स्तर बढ़ाने और परिषदीय स्कूल को प्राइवेट स्कूलों की बराबरी में लाया जा सके, बच्चों का रुझान भी बढ़े इसके लिए इस तरह की हमने कोशिश की। जब से कोशिश हुई है तब से बच्चों की संख्या में काफी सुधार हुआ है। आने वाले दिनों में स्कूल को अंग्रेजी माध्यम से संचालित करने की तैयारी है। 


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