कुलपति फोरमः शिक्षकों की कमी उच्च शिक्षा के लिए कैंसर
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त होने पर गंभीर चिंता जताते हुए राज्यपाल राम नाईक ने कहा है कि यह उच्च शिक्षा के लिए कैंसर जैसी स्थिति है।
लखनऊ (राज्य ब्यूरो)। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षकों के 45 से 50 प्रतिशत पद रिक्त होने पर गंभीर चिंता जताते हुए राज्यपाल राम नाईक ने कहा है कि यह उच्च शिक्षा के लिए कैंसर जैसी स्थिति है। वहीं मानकों को दरकिनार कर कॉलेजों को संबद्धता दिये जाने के व्यापार का जिक्र करते हुए उन्होंने दो टूक लहजे में कहा कि अक्सर नये महाविद्यालय की स्थापना का मकसद शिक्षा में सुधार नहीं बल्कि अनाप-शनाप तरीके से कमाई गई रकम को ठिकाने लगाना होता है।
शिक्षा में गुणवत्ता की कमी पर मंथन कर सुधार का संकल्प
आज इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित जागरण कुलपति फोरम का बतौर मुख्य अतिथि उद्घाटन करते हुए राज्यपाल ने उच्च शिक्षा की चुनौतियों का साफगोई से जिक्र किया। शिक्षाविदों के इस समागम में उन्होंने सवाल किया कि जब छात्रों को पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक नहीं होंगे तो उच्च शिक्षा की बदहाली कैसे सुधरेगी। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) से उच्च शिक्षण संस्थाओं के मूल्यांकन की दयनीय स्थिति को उन्होंने आंकड़ों के जरिये उजागर किया। जोर-जुगाड़ से संबद्धता हासिल करने की बढ़ती प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए विश्वविद्यालयों और उनकी कार्य परिषदों को नसीहत दी कि संबद्धता व्यापार नहीं बल्कि मिशन है। कुलपतियों को इन बीमारियों से निपटना होगा। ज्ञान-विज्ञान से लैस आतंकी युवाओं का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा कि भारत का युवा मानव संसाधन हमारी पूंजी है। इन युवाओं को सही दिशा देना ही शिक्षा की सबसे बड़ी चुनौती है वर्ना यह पूंजी हमारे लिए बोझ बन जाएगी।
चिंता, नसीहतें और सुझाव भी
- महिला सशक्तीकरण और पिछड़े क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से हो उच्च शिक्षा का विस्तार
- उप्र के सामने उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की चुनौती
- समय से नहीं जंचती हैं उत्तरपुस्तिकाएं
- देर से घोषित होते हैं रिजल्ट
- ई-गवर्नेंस अपनायें विश्वविद्यालय
- कोर्स में हो निरंतर बदलाव व सुधार
- राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का कार्यकाल पांच साल हो
- छात्रसंघ चुनाव करायें विश्वविद्यालय
राज्यपाल के बोल
- शोध और नवाचार विश्वविद्यालय शिक्षा की सबसे कमजोर कड़ी
- शिक्षा पर नहीं खर्च हो रहा जीडीपी का छह प्रतिशत
- तीन महीनों में अफसरों के तबादले का उप्र प्रशासन पर पड़ रहा है उल्टा असर
टीचर्स ट्रेनिंग के लिए बने एकेडमी
पूरे देश में शिक्षकों का एक डिजिटल डाटाबेस तैयार किया जाना चाहिए। इससे फायदा यह होगा कि विश्वविद्यालय व डिग्री कॉलेजों में कितने शिक्षक हैं और कितनों की जरूरत है, इसका ढंग से पता चल सकेगा। अभी शिक्षक एक संस्थान छोड़कर दूसरे संस्थान में चल जाता है और कोई जानकारी ही नहीं रहती। इससे पढ़ाई प्रभावित होती है। यह विचार डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक ने व्यक्त किए। विश्वविद्यालयों की केंद्र सरकार से अपेक्षाएं विषय पर बोलते हुए प्रो. विनय पाठक ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों को अधिक ग्रांट मिलनी चाहिए। अभी राज्य विश्वविद्यालयों के पास ग्रांट की कमी होने के कारण बेहतर संसाधन उपलब्ध करवाने में कठिनाई आती है। प्रो. विनय पाठक ने कहा कि टीचर्स ट्रेनिंग के लिए भी मजबूत व्यवस्था होनी चाहिए। टीचर्स ट्रेनिंग के लिए एकेडमी बनाए जाने की जरूरत है और उसका बेहतर ढंग से उपयोग हो ताकि शिक्षक पढ़ाई में नव प्रयोग कर सकें। आज बात गुणवत्ता की होती है लेकिन सेल्फ फाइनेंस कोर्सेज में पढ़ाने वाले शिक्षक व निजी कॉलेजों के शिक्षकों को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल पाता है। ऐसे में इसकी व्यवस्था की जानी चाहिए। प्रो. पाठक ने कहा कि शिक्षा में तकनीक का भरपूर प्रयोग होना चाहिए और पढ़ाई ऐसी हो जो उन्हें आराम से रोजगार उपलब्ध करवा सके। ग्रेजुएट बेरोजगारों की बढ़ती संख्या इस ओर इशारा करती है शिक्षा में गुणवत्ता की कमी है। ऐसे में गुणवत्तापरक शिक्षा देने के लिए हम सभी को एकजुट प्रयास करना होगा। 'स्वयं' अभियान में शामिल होंगे दो हजार पाठ्यक्रम केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि जिस तरह एटीएम से कहीं भी कभी भी धन निकासी की सुविधा होती है, उसी तरह एटीएल यानी एनीटाइम लर्निंग से कहीं भी कभी भी पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध होगी। इसके लिए 'स्वयं अभियान की शुरुआत हुई है, जिसमें दो हजार पाठ्यक्रम शामिल किये जाएंगे। ये पाठ्यक्रम हिंदी व प्रादेशिक भाषाओं में भी होंगे। टेलीविजन चैनलों पर तो इनका प्रसारण होगा ही, ये मॉड्यूल ऑनलाइन भी उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा कि दुनिया का सबसे युवा देश भारत है और हम अच्छी शिक्षा के माध्यम से इसका लाभ उठा सकते हैं। एटीएल के माध्यम से सुनिश्चित किया जाएगा कि हम रोज सीखें और रोज सुधार करें। इसके अलावा अच्छे विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे आसपास के दो-तीन स्कूलों के अभिभावक की भूमिका में आएं, उनके साथ संवाद बनाएं। संवाद व सुझावों पर जोर देते हुए उन्होंने कार्यक्रम में आए कुलपतियों व अन्य शिक्षाविदों से सुझाव मांगे। अच्छे सुझावों का स्वागत करते हुए कहा कि शिक्षा राजनीति का विषय नहीं है, यह राष्ट्रीय एंजेंडा है। तब हम थे शिक्षा में अव्वल केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एक दौर था, जब पूरी दुनिया के व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 35 फीसद थी। अब एक फीसद भी नहीं है। आक्रमणकारियों ने हमारे तंत्र को तहस-नहस कर दिया और हम पिछड़ गए। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला व मगध जैसे विश्वविद्यालय हमारी थाती थे। उस समय आज की तरह रेटिंग होती, तो दुनिया में एक से दस रैंक तक सभी विश्वविद्यालय भारत के ही होते। तब पूरी दुनिया से मेधावी छात्र भारत में आते थे। शिक्षकों की जवाबदेही जरूरी जावड़ेकर ने कहा कि पाठ्यक्रम में आवश्यकतानुरूप बदलाव के साथ शिक्षकों की जवाबदेही भी जरूरी है। विदेशी विश्वविद्यालयों में पहले तो शिक्षकों को कन्फर्म होने में ही 10-12 साल लग जाते हैं। अच्छे शिक्षक हमेशा प्रेरणा देते हैं। शिक्षकों की प्रतिष्ठा से ही संस्था की प्रतिष्ठा होती है। उन्होंने संवाद के दौरान आए टीचर्स ट्रेनिंग एकेडमी के सुझाव का स्वागत करते हुए कहा कि सेवा के दौरान भी प्रशिक्षण होने चाहिए। सैनिक की तरह समझें ड्यूटी केंद्रीय मंत्री ने उड़ी में शहीद हुए उत्तर प्रदेश के एक सैनिक का जिक्र करते हुए कहा कि उस शहीद की मां ने कहा कि वह लड़ते हुए मरता तो और अच्छा लगता। शिक्षकों को भी सैनिक की तरह अपनी ड्यूटी समझनी चाहिए। उन्होंने बताया कि 2013-14 सत्र में मध्यप्रदेश के चित्रकूट के पालदेव गांव के एक विद्यालय में दसवीं का परीक्षाफल 11 फीसद व बारहवीं का 25 फीसद था। हमने शिक्षकों से बात कर परिणाम बढ़ाकर 35 व 50 फीसद करने का लक्ष्य रखा। लक्ष्य निर्धारण के आठ माह बाद यह चौंकाने वाले परिणाम आए और दसवीं का परीक्षाफल 51 फीसद व बारहवीं का 82 फीसद हो गया। यह वहां संभव है, तो कहीं भी संभव है।