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योगी सरकार के सौ दिनः कानून का राज लाने में सख्ती की दरकार

प्रदेश सरकार ने इसी दिशा ने चलने का भाव प्रदर्शित करते हुए पुलिस के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव सहित तमाम कदम तो उठाए लेकिन कानून व्यवस्था की अपेक्षित मंजिल से काफी दूर है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 27 Jun 2017 04:01 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jun 2017 04:01 PM (IST)
योगी सरकार के सौ दिनः कानून का राज लाने में सख्ती की दरकार
योगी सरकार के सौ दिनः कानून का राज लाने में सख्ती की दरकार

लखनऊ [परवेज अहमद]। कानून का राज सभी स्थापित होगा, जब पुलिस की कार्रवाई निष्पक्ष होगी। यह स्थापित धारणा है। प्रदेश सरकार ने इसी दिशा ने चलने का भाव प्रदर्शित करते हुए पुलिस के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव सहित तमाम कदम तो उठाए लेकिन कानून व्यवस्था की अपेक्षित मंजिल से काफी दूर है। जातीय व धार्मिक विद्वेष की खाई चौड़ी हुई। सराफा व्यापारियों से लूट हुई। हत्या, महिला उत्पीडऩ बढ़ा। व्यापारी सड़क पर आये। विश्लेषक मानते हैैं कि कानून का राज आने में अभी थोड़ा समय लगेगा।

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मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही योगी आदित्यनाथ ने पुलिस को निष्पक्ष कार्रवाई का संदेश दिया। सबको न्याय के उनके संदेश से जनता में भरोसा जगा। अपराधियों की धर पकड़ शुरू हुई। माहौल बदलता प्रतीत हो रहा था, मगर एन्टी रोमियो स्क्वाड ने अभियान की आड़ में युवा जोड़ों से बदसलूकी, वसूली शुरू करनी शुरू कर दी। सजा सुनाने लगे। जिसके वीडियो वायरल हुए तो शासन को हस्तक्षेप करना पड़ा।

बेहतर प्रेक्षण के अभाव में अभियान शिथिल हो गया। इसी दौर में सहारनपुर के भाजपा सांसद ने कानून अंबेडकर शोभा यात्रा निकाली। दो संप्रदायों में टकराव हुआ तो वह समर्थकों के साथ एसएसपी के घर में घुस गए। तोडफ़ोड़ की गई। एफआइआर दर्ज हुई, मगर आगे की कार्रवाई से पुलिस पीछे हट गई। सरकार के 'इकबाल को धक्का लगा। सहानरपुर जातीय हिंसा की चपेट में आ गया और योगी सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई।


इन घटनाओं को देखते हुए योगी सरकार ने पुलिस की प्रशासनिक व्यवस्था में 'मायावती मॉडल लागू किया। रेंज में डीआइजी के स्थान पर आइजी, जोन में आइजी के स्थान पर एडीजी नियुक्त किए। मगर, कुछ खास अंतर न दिखाई पड़ा। चूक यह भी हुई कि कानून व्यवस्था की निगरानी का जिम्मा जिस आदित्य मिश्र को सौंपा गया, वह 1989 बैच के हैैं। जबकि उनके तीन सीनियर जोन के एडीजी हैैं। 'अनुशासित बल में जूनियर अधिकारी द्वारा सीनियर का जवाब तलब नहीं करने की परम्परा है।

यही नहीं कानपुर में एसएसपी पद पर डीआइजी को बैठा दिया गया। प्रशासनिक ढांचे के बदलाव में इस तरह की चूक से पुलिस की साख बेहतर करने के प्रयासों को धक्का लगा। ऊपर से समाजवादी सरकार में अलग-अलग कारणों से चर्चित रहे आधा दर्जन आइपीएस अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिलों की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिससे निचले स्तर पर व्यवस्था में बदलाव का संदेश नहीं गया। हालांकि सिर्फ सौ दिन से भविष्य का आकलन संभव नहीं हैैं लेकिन सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह कानून व्यवस्था पर फोकस बढ़ाए वरना आने वाले दिनों में चुनौती और बढ़ेगी।
 

बड़े अपराध
1-मथुरा में व्यापारियों की हत्या कर लाखों की लूट
2-इलाहाबाद में लड़कियों से दुष्कर्म के बाद हत्या
3-सहारनपुर में सांप्रदायिक फिर जातीय हिंसा, कई मरे
4-जेवर में महिलाओं से लूटपाट और सामूहिक दुष्कर्म
5-आगरा में भाजपा नेता की हत्या का बाद उपद्रव
6-आइएएस अनुराग तिवारी की लखनऊ में संदिग्ध मौत
7-अलग-अलग स्थानों पर तीन सिपाहियों की हत्या
8-सीतापुर में दंपति व बेटे की हत्या कर लाखों की लूट
9-चित्रकूट में परिवार की दो लड़कियों व मां शव मिला
10- सराफा व्यवसायियों से लूट की कई वारदातें, हत्याएं भी

डीजीपी के यहां पहुंची 36 हजार शिकायतें, सबसे अधिक शिकायतें राजधानी की( 25 जून तक)

अपराधी गठजोड़ के विरुद्ध अभियान
योगी आदित्यनाथ ने अब 'पुलिस-अपराधी गठजोड़ तोडऩे की दिशा में कदम बढ़ाया है। मथुरा में अपराधी की मौजूदगी मेें समारोह, हाथरस की लूट में पुलिस की संलिप्तता व गोंडा में रोडवेज कर्मियों से मारपीट के इल्जाम में तीन दारोगा निलंबित कर दिये गए। दो होमगार्ड जेल भेजे गए। कई सिपाही लाइन हाजिर किये गये हैैं। टूक कहा है कि अपराधियों से दोस्ती रखने वाले पुलिस कर्मियों से सख्ती से निपटा जाए।

पेट्रोल चोरी में सराहना भी, आलोचना भी
योगी सरकार के सौ दिन के कार्यकाल में अगर पुलिस को सर्वाधिक सराहना मिली तो वह पेट्रोल पम्पों पर घटतौली के विरुद्ध अभियान था। हालांकि पेट्रोल पंप मालिकों के खिलाफ कार्रवाई न होने से उसे आलोचना भी सहना पड़ी। स्पेशल टास्क फोर्स ने खुलासा किया कि घटतौली का रैकेट प्रदेशव्यापी है। शासन ने एसआइटी से जांच कराने का आदेश किया लेकिन एसआइटी उतनी कारगर नहीं रही जितनी एसटीएफ थी। हाईकोर्ट ने भी एसटीएफ के अभियान को सराहा था। 


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