योगी सरकार के सौ दिनः फैसले लेने वाली सरकार,पर अभी चलना कदम हजार
इस बात से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता कि यह फैसला लेने वाली सरकार है। यह अलग बात है कि समय कम होने की वजह से अभी कई फैसलों के क्रियान्वयन में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है।
लखनऊ [आनन्द राय]। सौ दिन की कसौटी किसी सरकार की परख के लिए काफी नहीं होती लेकिन, इतने कम समय में ही सरकार की दशा और दिशा स्पष्ट हो गई है। चुनाव से पहले घोषित भाजपा के संकल्प पत्र को शीशे में उतारने की सरकारी पहल साफ दिख रही है। इस बात से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता कि यह फैसला लेने वाली सरकार है। यह अलग बात है कि समय कम होने की वजह से अभी कई फैसलों के क्रियान्वयन में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है।
सौ दिन के शासन में कानून-व्यवस्था और अपराध के मुद्दे पर भी लगातार चुनौतियां बनी रहीं। झांसी की प्रदेश कार्यसमिति में परिवर्तन का संकल्प और उत्तर प्रदेश में चार दिशाओं से निकली परिवर्तन यात्राओं के बाद भाजपा ने सत्ता हासिल की तो लोगों के मन में उसके द्वारा जगाई उम्मीदें भी जवान हो गईं। गुजरे 15 वर्षों के बसपा और सपा के शासन पर हमलावर भाजपा ने इस राज्य को शीर्ष प्रगतिशील राज्य बनाने का वादा किया। तब संकल्प पत्र में इस बात पर जोर था कि 'भाजपा की सरकार बनने के बाद पहले दिन से ही हमारा लक्ष्य राज्य को विकास और खुशहाली के मार्ग पर आगे ले जाना होगा।
19 मार्च को शपथ ग्रहण की शाम को ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रियों को समयबद्धता, स्वच्छता और पारदर्शिता का पाठ पढ़ाया। पहले ही दिन उन्होंने आचरण और व्यवहार की एक लक्ष्मण रेखा खींच दी। फिर शास्त्री भवन के मुख्यमंत्री सचिवालय में उनके कदम पड़े तो एक नई क्रांति हुई। सीढिय़ों से लेकर अनुभागों तक भरी पड़ी गंदगी अगले दिन साफ नजर आई। दफ्तरों में साढ़े नौ बजे से दस बजे तक मंत्री, अफसर और कर्मचारी पहुंचने लगे। यह सरकार में संस्कारों की शुरुआत थी।
अन्नदाता को तोहफा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी सभाओं में लगातार वादा कर रहे थे कि सरकार बनने पर पहली कैबिनेट में किसानों के ऋण माफ कर दिए जाएंगे। चार अप्रैल को योगी सरकार की पहली कैबिनेट में 86 लाख किसानों के फसली ऋण माफ करने का एलान हुआ तो अन्नदाता के घरों में मुस्कान लौट आई। हालांकि अभी सरकार इस फैसले को क्रियान्वित करने के लिए संसाधन जुटाने में लगी है लेकिन, कर्ज से मुक्ति पाने का भरोसा घरों की दहलीज के अंदर तक पैठ बना चुका है।
विकास की नई परिभाषा
-गेहूं खरीद, आलू उत्पादक किसानों को राहत
-पावर आफ आल योजना का क्रियान्वयन
-20 नए कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना के लिए जमीन
-गन्ना किसानों का बकाया भुगतान
-शिक्षा सत्र के प्रारंभ में किताब और ड्रेस का वितरण
-हर जिले में एंटी भू माफिया टास्क फोर्स का गठन
-नई खनन नीति, तबादला नीति
-अयोध्या और मथुरा-वृंदावन को नगर निगम बनाने का दर्जा
-इलाहाबाद, मेरठ, आगरा, गोरखपुर तथा झांसी में मेट्रो रेल परियोजना की संस्तुति
- 2017 को गरीब कल्याण वर्ष मनाने का फैसला
- पूर्वांचल के विकास के लिए 234 करोड़ की योजना का शिलान्यास
-ठेके पट्टे में ई-टेंडरिंग जैसे कई महत्वपूर्ण कदम
सरकार का इकबाल
राज्य सरकार ने अवैध पशुवधशालाओं पर रोक लगाते हुए अवैध खनन पर भी अंकुश लगाया। हर जिले में एंटी भू माफिया टास्क फोर्स के गठन और उससे पहले एंटी रोमियो स्क्वाड गठन कर सरकार ने अपना इकबाल कायम करने का प्रयास किया। इतनाा जरूर है कि सत्ता पक्ष के ही कुछ लोगों ने जगह-जगह पुलिस से पंगा लेकर कानून-व्यवस्था के लिए मुश्किलें खड़ी की।
वीआइपी कल्चर पर रोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीआइपी कल्चर खत्म करने के लिए देश की सबसे बड़ी पंचायत में प्रस्ताव पारित किया। योगी सरकार भी पीछे नहीं रही। वीआइपी कल्चर को समाप्त करने के लिए आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर राज्य में लाल एवं नीली बत्ती के प्रयोग को पूरी तरह समाप्त कर दिया। सरकार ने समाजवादी पेंशन से लेकर कई बड़ी योजनाओं से समाजवादी शब्द हटाकर उसे मुख्यमंत्री योजना का नाम दिया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम
संकल्प पत्र में यह वादा था कि 15 वर्षों के भ्रष्टाचार की सरकार जांच कराएगी। मायावती के शासन में बिकी चीनी मिलों से लेकर समाजवादी पेंशन की जांच के लिए सरकार ने हरी झंडी दी। गोमती रिवर फ्रंट परियोजना की जांच से पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया। इसके अलावा जनहित से जुड़े मामलों में भी सरकार ने जांच कराने का वादा किया। कई मामलों के लिए सरकार ने सीबीआइ जांच की भी संस्तुति की है।
सवाल बनीं कुछ बड़ी घटनाएं
योगी सरकार के फैसलों ने आमजन के बीच उम्मीद जगाई तो कुछ बड़ी घटनाओं ने कामकाज पर सवाल भी उठाए। सहारनपुर में सड़क दूधली से शुरू होकर शब्बीरपुर तक पहुंचे विवाद ने वर्ग संघर्ष की नींव डाली। एसएसपी आवास में सत्ता पक्ष के लोगों द्वारा घुसकर बवाल करने से पिछली सरकारों के वाकये लोगों की जेहन में ताजा हो गए। इस जातीय टकराव ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी की। कभी मंत्री स्वाती सिंह के रेस्टोरेंट उद्घाटन प्रकरण ने मुश्किल खड़ी की तो कभी दिव्यांग पर मंत्री सत्यदेव पचौरी की टिप्पणी ने शर्मसार किया।
गोरखपुर के विधायक डॉ. राधामोहन दास अग्रवाल ने भी पुलिस अफसर से मोर्चा खोलकर सरकार के लिए संकट की स्थिति ला दी। दिलचस्प यह कि विपक्ष अग्रवाल के समर्थन में खड़ा हो गया और सत्तापक्ष को ऐसे सवालों को प्रकारांतर से टालना पड़ा। सूबे में अपराध खूब बढ़े। एंटी रोमियों दस्ता से जहां बहुत से लोगों को राहत मिली वहीं कुछ पुलिसकर्मी आम जोड़ों को भी परेशान करते नजर आए। पेट्रोल पंप में चोरी के मामले में भी सरकार वाजिब कदम नहीं उठा सकी। ज्यादातर पंप रसूखदारों के होने की वजह से अपेक्षित कार्रवाई नहीं हो सकी।
समय पर नहीं हो सके तबादले
सरकार ने तबादले तो खूब किए लेकिन जिस समय तबादलों से संदेश की जरूरत थी, उस समय पिछली सरकार के ही अफसर काबिज रहे। जिस मुख्य सचिव और डीजीपी को हटाने के लिए भाजपा लगातार चुनाव आयोग से मांग कर रही थी, सरकार बनने के बाद अपनी मांग भूल गई। जिलों में डीएम और एसपी का तबादला काफी दिनों तक नहीं हो सका। इससे सत्तापक्ष के जनप्रतिनिधियों और अफसरों के बीच सामंजस्य नहीं बन सका और कई तरह की चुनौतियां सामने आईं।