डीजीपी को दो वर्ष से पहले हटाए जाने पर हाईकोर्ट सख्त
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए, प्रमुख सचिव गृह से पूछा है कि प्रदेश के पुलिस महानिदेशक का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष करने के लिए राज्य सरकार ने क्या कदम उठाए? न्यायालय ने इस संबंध में प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के
लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए, प्रमुख सचिव गृह से पूछा है कि प्रदेश के पुलिस महानिदेशक का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष करने के लिए राज्य सरकार ने क्या कदम उठाए? न्यायालय ने इस संबंध में प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के आदेश दिए हैं।
न्यायालय के समक्ष कामद प्रकाश निगम की ओर से जनहित याचिका दाखिल करते हुए कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों के पुलिस महानिदेशकों का न्यूनतम कार्यकाल दो वर्ष करने के आदेश दिए थे लेकिन उत्तर प्रदेश में शीर्ष अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं हो रहा है। याची के अधिवक्ता अविनाश चंद्रा ने कहा कि पूर्व में डीजीपी पद पर नियुक्त किए गए एसी शर्मा, देवराज नागर, रिजवान अहमद, आनंद लाल बनर्जी, अरुण कुमार गुप्ता और अरविंद जैन का कार्यकाल क्रमश: लगभग एक साल, साढ़े आठ महीने, दो महीने, दस महीने, एक महीने और पांच महीने का ही रहा। याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एसएन शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में शीर्ष अदालत ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिया था कि तीन सबसे वरिष्ठ अधिकारियों में से उनके रिकॉर्ड को देखते हुए डीजीपी का चयन किया जाए। डीजीपी के पद पर नियुक्त किए जाने के बाद उसका कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष का होना चाहिए। यदि दो वर्ष के पहले अधिकारी को सेवानिवृत होना है तो ऐसी स्थिति में उसे सेवा विस्तार दिया जाए ताकि वह दो वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर सके। न्यायालय ने कहा कि याचिका में शीर्ष अदालत के इस निर्देश का अनुपालन न होने की बात कही गई है। लिहाजा यह आवश्यक है कि प्रमुख सचिव (गृह) व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करके बताएं कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का अनुपालन करने के लिए राज्य सरकार ने क्या कदम उठाए। यदि इन मानदंडों का अब तक अनुपालन नहीं हो सका है तो आगे इसके अनुपालन के लिए सरकार का क्या कदम उठाने जा रही है। मामले की अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी।