28 साल से नहीं मिला वेतन तो राज्यपाल से लगायी इच्छा मृत्युु की गुहार
यह मामला थोड़ा हटकर है। बताता है कि सिस्टम किस तरह किसी की जिंदगी दांव पर लगा सकता है। स्वास्थ्य विभाग में संबद्ध किए एक कर्मचारी के तबादले दर तबादले किए गए।
लखनऊ। यह मामला थोड़ा हटकर है। बताता है कि सिस्टम किस तरह किसी की जिंदगी दांव पर लगा सकता है। स्वास्थ्य विभाग में संबद्ध किए एक कर्मचारी के तबादले दर तबादले किए गए। 28 साल पहले शुरू हुए इस दौर मेंं एक बार वेतन रुका, तो फिर कहीं नहीं दिया गया। नौकरी के ठिकाने और अफसर बदलते रहे, मगर मुसीबत ने ठौर न बदला। आखिर लैब टेक्नीशियन पद पर तैनात कर्मचारी इतना परेशान हो चुका है कि उसने राज्यपाल से इच्छा मृत्यु की इजाजत मांगी है।
गीता विहार कॉलोनी निवासी घनश्याम पाठक की नियुक्ति आगरा के टीबी डेमोस्ट्रेशन इंस्टीट्यूट में हुई। फिर 1985 में लखनऊ के टीबी सेंटर में तबादला कर दिया गया। तीन साल बाद मथुरा स्थानांतरित कर दिया। पाठक के मुताबिक उनको मांट में तैनाती दी गई, लेकिन स्थानीय अधिकारी ने चार माह के बाद उनको हाजिरी लगाने से रोक दिया। 1989 में तत्कालीन ऊर्जा राज्यमंत्री रविकांत गर्ग से मुलाकात की, तो उनका झांसी मेडिकल कॉलेज तबादला हो गया, मगर वहां भी टिकने नहीं दिया। कभी जालौन, कभी मेडिकल कॉलेज झांसी तो कभी लखनऊ तबादले होते रहे, मगर वेतन कहीं नहीं मिला। आखिरी तबादला 1992 में मथुरा हुआ, लेकिन यहां सीएमओ ने ज्वाइन नहीं करने दिया। तब से वह बेकार हैं। घनश्याम बताते हैं कि विभागीय अफसरों से मंत्री तक सबको व्यथा सुना चुके हैं, मगर किसी ने सुनवाई नहीं की।
56 साल के हो चुके पाठक ने 2014 और 2015 में सूचना अधिकार के तहत अपने बारे में जानकारी मांगी। जिसमें विभाग उन्हें कर्मचारी तो मान रहा है, मगर वेतन और तमाम भत्तों के नाम पर पल्ला झाड़ रहा है।
ऐसे जीवन से मरना अच्छा
तीन बेटियों के पिता घनश्याम पाठक कहते हैं कि अब मौत ही रास्ता बचा है। उन्होंने बताया कि बेटी दीपिका एक जगह काम करके घर का खर्च चलाती है। वह गोवर्धन के आश्रमों में गुजर बसर करते हैं। अब डीएम के माध्यम से राज्यपाल को पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की इजाजत मांगी है। उधर, डीएम ने पत्र सीएमओ को भेजकर उचित कार्रवाई को कहा है।