गोरक्षपीठ जहां हिंदुओं के साथ काम में हाथ बंटाते मुस्लिम
गोरक्षपीठ की परंपरा में हिंदू-मुस्लिम एकता के सूत्र हैं। हिंदुत्व की पताका फहराने वाले योगी ने खुद भी एकता के इस सूत्र को टूटने नहीं दिया है।
By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 06:37 PM (IST)Updated: Tue, 21 Mar 2017 10:37 PM (IST)
गोरखपुर (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जिस गोरक्षपीठ के महंत हैं, उसकी परंपरा में हिंदू-मुस्लिम एकता के सूत्र हैं। हिंदुत्व की पताका फहराने वाले योगी ने खुद भी एकता के इस सूत्र को टूटने नहीं दिया है। गोरखनाथ मंदिर परिसर के कार्यों में जहां हिंदुओं के साथ मुसलमान भी हाथ बंटाते हैं, वहीं मंदिर एवं इमामबाड़ा के बीच भी सौहार्द का एक अनूठा रिश्ता है। काफी पुराने इस रिश्ते की डोर अब भी मजबूत है। आमतौर पर योगी के सियासी वक्तव्यों के आधार पर देश और दुनिया में यही यही धारणा बनी है कि गोरक्षपीठ घोर मुस्लिम विरोधी है, लेकिन इतिहास और परंपराएं इस धारणा को गलत साबित करती हैं। गोरक्षपीठ जिस नाथ पंथ की ध्वजवाहक है, उसमें जाति और संप्रदाय की वरीयता अर्थहीन है।
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मत्स्येंद्रनाथ एवं गुरु गोरखनाथ से लेकर अब तक के इतिहास पर गौर करें तो पंथ की परंपराओं में जितना महत्व हिंदू का है उतना ही मुस्लिम का। यही कारण है कि गोरक्षपीठ के सबसे बड़े केंद्र गोरखनाथ मंदिर में यह परंपरा अब भी जीवंत दिखती है। पीठ प्रबंधन के काम में यदि द्वारिका तिवारी एवं सेवा में परदेसी राम महत्वपूर्ण हैं तो निर्माण को गति देेने में मोहम्मद यासीन का महत्व भी कम नहीं है। परिसर में कैसे निर्माण होना है, यह यासीन ही तय करते हैं।
मंदिर की जिस गोशाला में योगी गोसेवा करने जाते हैं, वहां की व्यवस्था संभालने वालों में मुहम्मद मान की भूमिका बड़ी है। मुस्तकीम, मुल्ला जी, नूरजहां, सोनू, हजरत अली, अमानुल्लाह, मुस्तफा तीन दशक से बिसाता एवं चूड़ी की दुकानें लगाने के साथ परिसर की व्यवस्था में भी सहयोग करते हैं। यासीन बताते हैं कि महराज जी (योगी) सबको साथ लेकर चलते हैं। मंदिर से हमारा नाता तो काफी पुराना है। यहां जितना हिंदू खुश हैं उतना ही मुसलमान।
परदादा के समय से ही मजबूत हैं रिश्ते: मियां साहब
इमामबाड़ा एस्टेट मियां बाजार व गोरखनाथ मंदिर के बीच का संबंध भी सांप्रदायिक एकता की मिसाल है। इमामबाड़ा के सज्जादानशीन (मियां साहब)अदनान फर्रूख शाह ने बताते हैं कि उनके दादा यानी चौथे मियां साहब सैय्यद जव्वाद अली शाह व गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध थे। महंत जी का हमारे घर पर आना-जाना होता था। घर में वह दादा के साथ टेबल टेनिस खेलते थे। उनके बाद महंत अवेद्यनाथ जी महाराज और मेरे वालिद पांचवें मियां साहब सैयद मजहर अली शाह ने भी इस रिश्ते को बखूबी निभाया। 2002 में मेरे वालिद का इंतकाल हुआ तो लगातार तीन दिन तक महंत अवेद्यनाथ जी मुझे फोन कर सांत्वना देते रहे कि तुम्हारे पिता का इंतकाल जरूर हो गया है, लेकिन मैं अभी जिंदा हूं।
अखंड धूनी बुझने पर मंदिर एवं इमामबाड़ा से आती रही है आग
मंदिर व इमामबाड़ा दोनों जगह पर अखंड धूनी जलती है। कहा जाता है कि जब मंदिर की धूनी की आग बुझ जाती थी तो इमामबाड़ा की धूनी से वहां आग जाती थी और जब इमामबाड़ा की धूनी बुझ जाती थी तो मंदिर की धूनी से आग लायी जाती थी। मियां साहब कहते हैं कि मेरे होश में तो धूनी की आग कभी बुझी ही नहीं, लेकिन मैने भी सुना है कि यह परंपरा काफी पुरानी है।
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