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चुनावी चौपाल : राजनीतिक सोच और सरकार की नीति से ही सुधरेगी गोमती

दैनिक जागरण के चुनावी चौपाल कार्यक्रम में गोमती को प्रदूषणमुक्त करने को लेकर विशेषज्ञों की राय जानी।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 11:57 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 11:57 AM (IST)
चुनावी चौपाल : राजनीतिक सोच और सरकार की नीति से ही सुधरेगी गोमती
चुनावी चौपाल : राजनीतिक सोच और सरकार की नीति से ही सुधरेगी गोमती

लखनऊ, जेएनएन। जीवनदायिनी आदि गंगा गोमती को लेकर बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन इसकी हालत को लेकर कोई ठोस रणनीति अभी तक नजर नहीं आई। राजनीतिज्ञों की नीति इसे लेकर साफ नहीं। सरकार भी गोमती के किनारे पर्यटन को लेकर तो गंभीर दिखती है, लेकिन उसे प्रदूषणमुक्त करने को लेकर चिंतित नजर नहीं आती। पिछले तीन दशकों से भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने और गोमती के संरक्षण को लेकर मुहिम तो शुरू हुई, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं नजर आया जिस पर हम सबको गर्व हो सके।

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नालों को रोकने की मुहिम शुरू हुई, लेकिन इस पर विराम नहीं लगा। नदी यदि जीवन देने वाली है तो इसे लेकर राजनीतिक पार्टियां गंभीर क्यों नहीं हैं। किसी के एजेंडे में गोमती को निर्मल बनाने और बचाने का संकल्प क्यों नहीं लिया जाता। आम जनता के इन सवालों से राजनीतिज्ञों तक पहुंचाने के लिए 'दैनिक जागरण' की ओर से शुक्रवार को चुनाव चौपाल का आयोजन किया गया। गोमती को बचाने को लेकर समाजसेवियों और विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी और राजनीतिक एजेंडे में शामिल करने की वकालत भी की।

समाजसेवियों और विशेषज्ञों ने दी अपनी राय 

  • भूगर्भ जल विशेषज्ञ आरएस सिन्हा के मुताबिक, भूगर्भ जल को बचाने को लेकर विश्व बैंक की ओर से 1986 से 2006 तक अभियान चला। उस समय से जमीन से दो से पांच मीटर के नीचे पानी मिल जाता था। धीरे-धीरे भूजल का स्तर नीचे गिरता गया और 2007 में यह 40 मीटर तक पहुंच गया। ऐसे में यह समझा जा सकता है राजनीतिक सोच इसे लेकर कैसी है। दैनिक जागरण का यह सराहनीय प्रयास भूगर्भ जल और आदि गंगा गोमती को बचाने में कारगर होगा।
  • वॉटर एड फार्रुख रहमान खान का कहना है कि गोमती को लेकर जो प्लान बनाया गया वह इंटरटेनमेंट को लेकर बनाया गया। गोमती के संरक्षण और जल स्तर को बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। जब तक गोमती के पानी को गंदा करने वालों के खिलाफ सख्त कानून नहीं बनेगा और लोगों के अंदर खुद जागरूकता नहीं आएगी तब तक गोमती को बचाना संभव नहीं। राजनीतिज्ञों को भी इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर गंभीरता दिखानी होगी।
  • शिक्षक डॉ.सुशील कुमार द्विवेदी ने बताया कि गोमती को प्रदूषित करने में प्लास्टिक ने भी अपनी भूमिका निभाई है। नदी के पास हरियाली की जगह प्लास्टिक कचरे ने ले ली। नदी के विकास को पत्थर की दीवारों से रोकने का प्रयास किया जा रहा है। प्राकृतिक संपदा को कम करने के साथ ही पेड़ों को काटा जा रहा है। इसे लेकर राजनीतिक सोच भी बदलनी होगी। सबसे महत्वपूर्ण इस विषय को लेकर उनका गंभीर न होना आने वाले समय के लिए बड़ा खतरा साबित होगा। 
  • पूर्व महाप्रबंधक जलकल विभाग राजीव वाजपेयी के मुताबिक, 1980 से मैं गोमती नदी से जुड़ा हूं। तब से लेकर अब तक जो कुछ गोमती को बचाने को लेकर हुआ उसका कोई परिणाम नजर नहीं आया। उस समय 70 से 80 फीट के नीचे पानी मिल जाता था जो वर्तमान समय में 250 फीट पहुुंच गया है। पांच वॉटर वक्र्स की जरूरत है जबकि वर्तमान में तीन काम कर रहे हैं। सबमर्सिबल पंप को रोकने की कोई ठोस रणनीति नहीं है। राजनीतिक एजेंडे में इसे तरजीह ही नहीं दी जाती।  
  • समाजसेवी पूर्व पार्षद रणजीत सिंह ने बताया कि केवल नीतियों को बनाने से नहीं, उनको धरातल पर उतारने का प्रयास करना पड़ेगा। गोमती को स्वच्छ बनाने का छोटा सा प्रयास पिछले डेढ़ दशक से जारी है। युवाओं के अंदर गोमती को प्रदूषणमुक्त करने और बचाने के प्रति जज्बा पैदा करने के लिए हर रविवार को स्वच्छता अभियान चलाया जाता है। जब तक नालों को गोमती में गिरने से नहीं रोका जाएगा गोमती को बचाने का संकल्प पूरा नहीं होगा। राजनीतिक सोच को भी बदलने की जरूरत है। 
  • महामंत्री शुभ संस्कार समिति ऋद्धि किशोर गौड़ के मुताबिक, भूगर्भ जल बचेगा तभी गोमती बचेगी। हम लोगों ने मिलकर कुओं को बचाने का अभियान शुरू किया और एक दर्जन से अधिक कुओं को फिर से पुरानी स्थिति में लाने में कामयाब हुए हैं। कुकरैल नाले का पानी सीधे गोमती में जा रहा है।  विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं और निर्माण को लेकर सरकार भी संवेदनहीन है। 
  • समाजसेवी चंद्रभूषण तिवारी ने बताया कि जीडीपी से देश के विकास को समझने वालों को यह तक नहीं पता कि बगैर जीवन के किसी का विकास कोई मायने नहीं रखता। आदि गंगा गोमती हमें जीवन देती है और हम विकास के नाम पर उनको समाप्त करने में जुटे हैं। पानी के बगैर कुछ भी संभव नहीं है। पौधों के बगैर जीवन की कल्पना करना बेमानी है। मैं तो बच्चों को 'प' से पानी और 'प' से पौधा बचाने की सीख देता हूं। पैसा बढ़ रहा है, लेकिन पानी की कमी को नजरअंदाज करने से जीवन ही नहीं बचेगा। राजनीतिज्ञों को भी अपनी सोच को बदलना होगा। 
  • पूर्व वैज्ञानिक भूजल विभाग बीबी त्रिवेदी के मुताबिक, 2010 में गोमती रिवर फ्रंट का काम शुरू हुआ और गोमती के प्राकृतिक सौंदर्य पर ग्रहण लगाने की भी शुरुआत हो गई। प्राकृतिक जल को बचाने के लिए भूगर्भ जल को बचाने की जरूरत तो है, लेकिन कोई भी दल इस ओर ध्यान नहीं दे रहा। 2050 तक पानी की मांग दो से तीन गुना बढ़ जाएगी और हमारे पास कोई विकल्प नहीं होगा। नदियों को लेकर हमारी प्राथमिकताएं तय करनी होंगी, तभी हम विकास के इस पथ पर चलकर जीवन को बचा सकते हैं। पानी के महत्व को खुद समझने के साथ ही दूसरों को भी समझाना होगा। जनप्रतिनिधियों को गोमती को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे। 
  • पर्यावरणविद् व प्रवक्ता डॉ. वेंकटेश दत्ता का कहना है कि आदि गंगा गोमती की प्राकृतिक छटा निराली है। 32 नदियों के पानी से जीवंत होने वाली गोमती के पानी को बचाने की चुनौती हमारे सामने है जिसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। गोमती में मिलने वाली नदियां सूख रही हैं। भूगर्भ से निकलने वाली गोमती नदी का स्तर बहुत तेजी से घट रहा है। गोमती के तटों पर हरियाली समाप्त हो रही है। सतही जल की कमी हो गई है। ऐसे में गोमती कब सूख जाए इसका कोई समय नहीं निर्धारित है। समाप्त होने की कगार पर खड़ी गोमती को बचाने की पहल राजनीतिक एजेंडे में नहीं है, यह बड़े शर्म की बात है। रिवर फ्रंट की दीवार को बनाने का विरोध हुआ तो छेद बनाकर मामले को किनारे कर दिया गया। नदी से दोगुने हिस्से में फैलाव होने से ही नदी प्राकृतिक रूप से विकसित हो सकेगी। इसकी अनदेखी की जा रही है।
  • संयोजक लोक भारती ब्रजेंद्र पाल सिंह ने बताया कि नदी को बचाने के लिए सिंचाई का पानी कम करना होगा, इसके लिए खेती के तरीकों को बदलने की जरूरत है। इसके लिए सिंचाई विभाग के साथ ही कृषि वैज्ञानिकों की भी भूमिका होती है। हमारी संस्था किसानों को जागरूक करने के साथ ही खेती के नए तरीके भी सुझा रहे हैं। कम पानी से अधिक उत्पादन के साथ ही जल दोहन रोकने के उपाय बताए जा रहे हैं। किसानों को वर्षा जल संचयन के प्रति जागरूक किया जा रहा है। पार्टियों को एजेंडे में शामिल करने की अपील के बाद ही नमामि गंगे की शुरुआत हुई है। समाज के बदलने के साथ ही राजनीतिक सोच में बदलाव होगा। 

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