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योगी की बात नहीं मान रहे 50 आइएएस, नहीं दिया संपत्ति का ब्यौरा

बार-बार घंटी बजाने के बावजूद करीब 50 आइएएस अफसरों ने अपनी चल और 20 से अधिक ने अचल संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 04 May 2017 04:10 PM (IST)Updated: Thu, 04 May 2017 05:53 PM (IST)
योगी की बात नहीं मान रहे 50 आइएएस, नहीं दिया संपत्ति का ब्यौरा
योगी की बात नहीं मान रहे 50 आइएएस, नहीं दिया संपत्ति का ब्यौरा

लखनऊ (जेएनएन)। सरकार पारदर्शिता और शुचिता पर जोर दे रही है लेकिन, उसके अफसर ही इसमें सबसे बड़ा रोड़ा बन रहे हैं। बार-बार घंटी बजाने के बावजूद करीब 50 आइएएस अफसरों ने अपनी चल और 20 से अधिक ने अचल संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। मुख्य सचिव ने इसी सिलसिले में बुधवार को सभी प्रमुख सचिवों की एक बैठक बुलाई थी पर वह उनकी ही व्यस्तता के चलते नहीं हो सकी। गुरुवार को फिर प्रमुख सचिवों को अपने-अपने महकमे और जिलों के अफसरों का ब्यौरा लेकर तलब किया गया है।

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प्रमुख सचिव नियुक्ति कामरान रिजवी ने 25 अप्रैल को सभी प्रमुख सचिवों को मुख्य सचिव के हवाले से एक पत्र भेजकर बुधवार को होने वाली बैठक के लिए सूचित किया था। दरअसल, 15 मार्च को एक सर्कुलर जारी कर अफसरों से उनकी चल और अचल संपत्ति का विवरण तत्काल प्राप्त किए जाने का निर्णय लिया गया था। 19 मार्च को शपथ ग्रहण के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहली बैठक में यही व्यवस्था अपने मंत्रियों पर भी लागू की और सबको 15 दिन के भीतर ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

इन निर्देशों के बावजूद 25 अप्रैल तक कार्मिक विभाग को सचिवालय प्रशासन, नागरिक सुरक्षा, कृषि तथा कृषि विपणन एवं कृषि विदेश व्यापार विभाग द्वारा सूचनाएं उपलब्ध कराई गई। इसमें भी समूह क एवं समूह ख के सभी कार्मिकों की सूचना नहीं दी गई। यानी आइएएस और पीसीएस अफसर ही इसमें पीछे रह गए। बुधवार को इसी सिलसिले में बैठक होनी थी लेकिन, यह गुरुवार के लिए टाल दी गई। नियुक्ति और कार्मिक विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर ब्यौरा बाहर तैनात आइएएस अफसरों का ही नहीं मिला है।

केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात अफसरों का ब्यौरा धीरे-धीरे आ रहा है। 21 अप्रैल तक 140 अफसरों का चल संपत्ति का ब्यौरा नहीं मिला था। दबाव के बाद 25 अप्रैल तक सिर्फ 20 अफसर अपना ब्यौरा दे सके थे। अब संकेत मिल रहे हैं कि बार-बार निर्देश के बावजूद ब्यौरा न देने वाले अफसरों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ऐसे लोगों की वार्षिक प्रविष्टि रोकी जा सकती है। इससे इंक्रीमेंट और पदोन्नति भी प्रभावित हो सकती है।
 


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