पहले दिन से असर, स्लाटर हाउसों पर लटकने लगे ताले
प्रदेश में बेतहासा पशु कटान में भाजपा सरकार के सत्तासीन होने के बाद पहले दिन से ही असर दिखने लगा। कुछ जिलों में कार्रवाई का खौफ साफ तौर पर नजर आया।
लखनऊ (जेएनएन)। प्रदेश में पशु कटान में भाजपा सरकार के सत्तासीन होने के बाद पहले दिन से ही असर दिखने लगा। सोमवार को कुछ जिलों में कार्रवाई का खौफ साफ तौर पर नजर आया। कई जिलों में कटान नहीं हुआ। पिछले दो दिनों से मेरठ में बूचडख़ाने के आसपास सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं जबकि इलाहाबाद में प्रशासनिक सख्ती के बाद तीन बूचडख़ाने सीज कर दिए गए। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश के बाद जिन जिलों में बूचडख़ाने पूर्ण रूप से बंद हैं वहां चोरी-छिपे कटान बदस्तूर है, जबकि विभिन्न जिलों में हजारों मकान-दुकान में यह कार्य कुटीर उद्योग की तरह बना हुआ है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ और सहारनपुर मंडल में पशुओं का अवैध कटान बड़े पैमाने अनवरत चल रहा है। मेरठ जनपद में सात मीट फैक्टरियां हैं लेकिन, इनमें निर्धारित संख्या से ज्यादा पशु काटे जाते रहे हैं। सहारनपुर में 28 कमेले अवैध रूप से चल रहे हैं। 32 गांव भी मीट की मंडी के रूप में बदनाम हैं। बागपत के रटौल में बूचडख़ाना बंद है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मानक पूरा न होने पर मुजफ्फरनगर में सील कर कर दिया गया था। यहां पिछले दो-तीन दिन से शहर में पशुओं से लदे ट्रक नहीं देखे जा रहे। शामली, बिजनौर व बुलंदशहर में भी अवैध रूप से पशु कटान जारी है। आगरा में दो बूचडख़ानों के पास ही लाइसेंस हैं। जबकि तीन सौ अवैध कïट्टीखाने संचालित हैं। फीरोजाबाद जिले में लाइसेंसशुदा एक भी बूचडख़ाना नहीं है। मैनपुरी और एटा में आधा सैकड़ा अवैध कट्टीखाने हैं।
लखनऊ में यूं तो चार बूचडख़ाने हैं। हाईकोर्ट की सख्ती के बाद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आबादी के बीचोंबीच संचालित किए जा रहे इन बूचडख़ानों को बंद कर दिया था। हकीकत यह है कि स्लाटर हाउस की बंदी के बाद भी चोरी छिपे जानवर काटे जा रहे हैं।
इलाहाबाद में सत्ता बदलने के बाद शहर के तीन स्लाटर हाउस सीज कर दिए गए हैं। एनजीटी की आपत्ति के चलते इन्हें मई 2016 में ही बंद कर दिया गया था, लेकिन चोरी छिपे पशु कटान हो रहा था। रविवार रात से सोमवार दोपहर तक हुई कार्रवाई में नगर निगम के अमले ने इन्हें बंद करा दिया। गंगा और यमुना में प्रदूषित होने पर एनजीटी कहा था कि इन बूचडख़ानों को मार्डन बनाने के बाद संचालित किया जाए, लेकिन यहां चोरी छिपे पशुओं की कटान होती रही। इसे भी बंद करा दिया गया है। प्रतापगढ़ -कौशांबी में बूचडख़ाना नहीं पर चोरी छिपे पशु काटे जाते हैं।
कानपुर नगर समेत आसपास के 15 जिलों में नई सरकार के गठन के बाद भी पशु कटान धड़ल्ले से हो रहा है। प्रशासनिक अधिकारी इस पर बोलने से बच रहे हैं। हरदोई में संडीला के इमलियाबाग का बूचडख़ाना पंजीकृत है लेकिन कई क्षेत्रों में अवैध रूप से पशुवध होता है। महोबा में चार बूचडख़ानों का लाइसेंस है, वहीं अवैध रूप से डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर सोमवार को पशुवध होता रहा। कन्नौज में मोहल्ला शेखपुरा में बूचडख़ाना संचालित है। अवैध रूप से संचालित बूचड़खानों में सोमवार को काम बंद रहा। एसपी दिनेश कुमार पी. का दावा था कि लाइसेंसधारक के अलावा कोई भी बूचडख़ाना संचालित नहीं हो रहा है।
फर्रुखाबाद में लाइसेंसशुदा एक बूचडख़ाना है। सोमवार सुबह कुछ देर के लिए बूचडख़ाने का गेट खुला। इसके बाद ताला लगा दिया गया। मोहल्ला डबग्रान, जहानगंज थाना क्षेत्र के दो गांवों में वर्षों से अवैध बूचडख़ाने चल रहे है। सोमवार को सभी में पशुवध होते रहे।
इटावा में एक भी कट्टी खाना पंजीकृत नहीं है। बावजूद इसके पालिका क्षेत्र के दर्जन भर से अधिक स्थानों पर अवैध रूप से पशुवध किया जा रहा है। औरैया के खानपुर में दो बूचड़खाने का लाइसेंस है। फतेहपुर में किसी बूचड़खाने का लाइसेंस नहीं है। बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर और उरई के बूचड़खानों में सोमवार को काम होता रहा।
मुरादाबाद महानगर में प्रशासनिक ढिलाई और लापरवाही के चलते घरों में पशुओं का अवैध कटान जारी है। सम्भल में सरायतरीन और बेगम सराय स्थित बूचड़खाने को हाईकोर्ट के आदेश पर छह माह पहले बंद करा दिया गया था। दोनों जगहों पर अवैध कटान जारी है।
अमरोहा में शिकायत के बाद बछरायूं के एक और हसनपुर में पंजीकृत दो स्लाटर हाउस पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने रोक लगा दी है। फिर भी जिले में पशुओं का अवैध कटान धड़ल्ले से चल रहा है। रामपुर स्थित स्लाटर हाउस छह सालों से बंद है। मीट कारोबार के लिए प्रसिद्ध अलीगढ़ में इस कारोबार से जुड़े लोगों में सत्ता परिवर्तन के बाद से खलबली मची है। वैध कट्टीघरों में पशुओं के कटान में कमी आई है। जिले में वैध रूप से चल रहे छह यांत्रिक कत्लखाने हैं। इनकी पशु कटान की प्रतिदिन के हिसाब से क्षमता 7600 के करीब है। हालांकि, अबतक अवैध रूप से इन कत्लखानों में 10000 से भी अधिक पशुओं का कटान होता था। सत्ता परिवर्तन के बाद अवैध रूप से पशुओं के कटान पर एकदम रोक लग गई है।