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World digestive health day 2020: सोंंधी माटी में छिपे पेट की सेहत के राज

शाकाहारी और ग्राम्य जीवन में रहने वाले लोगों का गट-माइक्रोबायोटा शहरियों के मुकाबले बेहतर।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 08:27 AM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 05:45 PM (IST)
World digestive health day 2020: सोंंधी माटी में छिपे पेट की सेहत के राज
World digestive health day 2020: सोंंधी माटी में छिपे पेट की सेहत के राज

लखनऊ, (पवन तिवारी)। World digestive health day 2020 हमारे गांव-गिरांव की माटी...। सिर्फ सोंधी ही नहीं होती। सिर्फ अन्न ही नहीं उपजाती। हमें भीतर से मजबूत भी करती है। इतना मजबूत कि हमारी आंतें सुदृढ़ होकर पाचन तंत्र को सुगठित कर देतीं हैं। इसका अंतर साफ है। जिनका बचपन गांवों की गलियों, खेतों-खलिहानों की धूल फांकते बीता है, उनका हाजमा फ्लैट संस्कृति में पले-बढ़े लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत होता है। ये तथ्य कई अध्ययनों में साबित हो चुका है। इसकी वजह है गट-माइक्रोबायोटा यानी आंतों में पाया जाने वाला बैक्टीरिया। जो कि शाकाहारी और ग्राम्य जीवन में रहने वाले लोगों का अन्य की तुलना में बेहतर होता है। बेहतर पाचन स्वास्थ्य (डाइजेस्टिव हेल्थ) की दिशा में काम कर रहे दुनिया भर के डॉक्टर इसीलिए शाकाहार के साथ ही माटी से जुड़ाव और थोड़ी रफ-टफ जीवनशैली की सलाह देते हैं।

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गट- माइक्रोबायोटा न केवल हमारे पाचन तंत्र को सेहतमंद रखते हैैं, बल्कि पूरे शरीर के स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाते हैैं। वहीं, इनके असामान्य होने पर पाचन व अन्य गंभीर रोग उत्पन्न होने लगते हैैं। चरक संहिता में भी कहा गया है कि मानव ब्रह्मड की सूक्ष्म प्रतिकृति हैै और प्रमुख रूप से तीन तत्व- वात यानी वायु (गैस), कफ और पित्त सभी बीमारियों के लिए जिम्मेदार होते हैैं। तीनों का संबंध माइक्रोबायोटा से है।

प्रकृति ने बनाया है मिट्टी से जुड़े रहने का सिस्टम

संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्व‍िज्ञान संस्थान (पीजीआइ), लखनऊ के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर उदय सी. घोषाल कहते हैैं कि प्रकृति ने ऐसा सिस्टम बनाया है कि नैसर्गिक वातावरण व मिट्टी से जुड़ाव सभी जीवों के लिए बेहतर है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि गांवों में रहने वाले लोग, खासतौर पर वे, जो बचपन से वहां रहे हैैं, उनका गट-माइक्रोबायोटा शहरों में पले-बढ़े लोगों की तुलना मे अधिक मजबूत होता है। क्योंकि अंधाधुंध शहरीकरण की वजह से शहरों में रहने वाले लोग बेहद हाईजीनिक यानी सफाईपसंद बनकर रह गए हैैं। जिसकी अति का दुष्परिणाम सामने है-हम और एलर्ज‍िक हो गए। आटोइम्यून डिसऑर्डर्स (स्व-प्रतिरक्षी बीमारियों) ने हमारे शरीर में अपना घर बना लिया। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में इसे हाईजीनिक हाइपोथिसिस कहते हैैं।

क्या है गट-माइक्रोबायोटा

पेट (आंत) में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को गट-माइक्रो बैक्टीरिया कहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह इंसानी शरीर के भीतर का सबसे बड़ा अंग है। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैैं कि एक व्यक्ति के शरीर में जितने ह्यूमन सेल्स होते हैैं, उसके 10 गुने से ज्यादा माइक्रोबियल सेल्स आतों में होते हैैं।

प्रकृति ने ऐसा सिस्टम बनाया है कि थोड़ी रफ-टफ जीवनशैली व माटी से जुड़ाव सभी जीवों के लिए आवश्यक है। इसके अलावा एक्सेसिव हाईजीन यानी स्वच्छता की अति नहीं करनी चाहिए। इससे माइक्रोबायोटा स्वस्थ रहता है। -प्रो. उदय सी. घोषाल, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग, एसजीपीजीआइ, लखनऊ

अच्छे हाजमे के लिए कैसा हो खान-पान

  • संतुलित आहार
  • भारतीय शाकाहारी भोजन
  • तरल पदार्थों का पर्याप्त सेवन
  • समय पर भोजन
  • एल्कोहल, तंबाकू, ज्यादा चाय-कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स से परहेज
  • ओवरईटिंग यानी अधिक खाने से बचें
  • एनिमल प्रोटीन का नाम मात्र सेवन 

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