इल्म बांटने का अनोखा सफर
कभी मां के साथ दूसरे घरों में बर्तन मांजने के लिए जाने वाली अंजना को संदीप भटनागर और उनकी पत्नी सुनीता ने हाथ पकड़कर ए,बी,सी,डी... लिखना सिखाया था और आज वह राजधानी के एक निजी अस्पताल में कंप्यूटर आपरेटर होने के साथ अपने परिवार का संबल भी है।
लखनऊ (राजीव दीक्षित)। कभी मां के साथ दूसरे घरों में बर्तन मांजने के लिए जाने वाली अंजना को संदीप भटनागर और उनकी पत्नी सुनीता ने हाथ पकड़कर ए,बी,सी,डी... लिखना सिखाया था और आज वह राजधानी के एक निजी अस्पताल में कंप्यूटर आपरेटर होने के साथ अपने परिवार का संबल भी है।
लखनऊ के इंदिरानगर इलाके के एक सरकारी स्कूल में पढऩे वाली छात्रा गीता को भटनागर दंपत्ति ने वर्षों तक शाम को पढ़ाया। दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाले श्रमिक की यह बेटी अब नर्सिंग का कोर्स कर रही है। इंदिरा नगर इलाके में सब्जी और मूंगफली का ठेका लगाने वाले शख्स की बेटी कविता को तकरोही में भटनागर दंपत्ति के संचालित ज्यूपिटर एकेडमी स्कूल की छांव क्या मिली, गरीब घर की इस बेटी के जीवन की दिशा बदल गई। यह होनहार लड़की लखनऊ के एक शिक्षण संस्थान में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है।
संदीप व सुनीता 16 वर्ष पहले तक खुद नहीं जानते थे कि एक दिन वे अभाव में पलने वाले बचपन में ज्ञानोदय का सशक्त माध्यम बन जाएंगे। यह भी दुर्लभ संयोग है कि शिक्षा के जरिये गरीब बच्चों के सपनों को तराशने वाले भटनागर दंपत्ति की इस मुहिम की बुनियाद इंदिरानगर के बी-ब्लॉक में जैन मंदिर के सामने स्थित ड्रीम हाउस नामक वेल्डिंग व फैब्रिकेशन के कारखाने में पड़ी। शुरुआत जुलाई 1998 में हुई जब पड़ोस में रहने वाला बिजली मिस्त्री गजोधर अपने दो बच्चों को पढ़ाने का अनुरोध करने संदीप के इस कारखाने में पहुंचा। गजोधर के बच्चों को शौकिया पढ़ाकर स्कूल में उनका दाखिला कराने वाले भटनागर दंपत्ति के पास आसपड़ोस की मलिन बस्तियों के गरीब बच्चे अपनी ज्ञान पिपासा को तृप्त करने के लिए रोज शाम को पहुंचने लगे। दिन भर खटर-पटर से गूंजने वाला यह कारखाना शाम ढलते ही भरे-पूरे स्कूल में तब्दील हो जाता। वेल्डिंग का सामान हटा-बढ़ाकर चटाइयां बिछायी जातीं और जगह-जगह ब्लैकबोर्ड लगा दिये जाते। संदीप और सुनीता अलग-अलग समूहों में बैठाये गए बच्चों को नि:शुल्क ज्ञान बांटते।
कभी तकरोही इलाके में आशियाना बनाने के मकसद से खरीदी गई जमीन पर 2004 में चंद दीवारें खड़ी कर उन पर टिन शेड डालकर भटनागर दंपत्ति ने ज्यूपिटर एकेडमी नामक स्कूल खोला। मकसद था आसपास के मजदूरों के बच्चों को पढऩे का जरिया सुलभ कराना। भटनागर दंपत्ति के समर्पण का ही यह नतीजा था कि कुछ ही दिनों में यहां आने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर दो सौ जा पहुंची। शुरुआत में तो भटनागर दंपत्ति इन बच्चों को नि:शुल्क ही पढ़ाते रहे लेकिन कुछ ही दिनों में उनकी ख्याति से प्रभावित होकर स्माइल फाउंडेशन ने उन्हें आथिक मदद देनी शुरू कर दी। अब यहां पर तीन मंजिले भवन में प्री-नर्सरी से लेकर कक्षा आठ तक का स्कूल संचालित हो रहा है जिनमें भटनागर दंपत्ति अपने समर्पित स्टाफ की मदद से गरीब परिवारों के 400 बच्चों का भविष्य संवार रहे हैं। स्माइल फाउंडेशन के सहयोग से स्कूल में हर माह लगने वाले चिकित्सा शिविर में बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण भी होता है। शाम को स्कूल में हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के बच्चों के लिए कोचिंग क्लास भी चलती है। हाल ही में स्कूल में स्माइल फाउंडेशन और माइक्रोसाफ्ट के सहयोग से 18 से 25 वर्ष तक के युवाओं के लिए छह महीने की कंप्यूटर ट्रेनिंग की व्यवस्था भी की गई है।