चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती 'डिमेंशिया'
लखनऊ। 'डिमेंशिया' में मरीज को भूलने की बीमारी हो जाती है। हालांकि यह बढ़ती उम्र की बीमारी है, ल
लखनऊ। 'डिमेंशिया' में मरीज को भूलने की बीमारी हो जाती है। हालांकि यह बढ़ती उम्र की बीमारी है, लेकिन यदि लोग जीवन शैली ऐसी रखें जिसमें शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ-साथ मस्तिष्क से जुड़े व्यायाम करते रहें तो काफी हद तक इस समस्या से बचा जा सकता है। यह बीमारी चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस के कुलपति व निदेशक, बेंगलूर डा.पी. सतीश चंद्रा ने बेंगलुरु ने कल लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के नौवें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित किया। 'एजिंग एंड डिमेंशिया: कैन दिस बी प्रिवेंटेड' पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि रहन-सहन एवं खानपान में सुधार करने से डिमेंशिया से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि चिकित्सकों के लिए डिमेंशिया अभी भी चुनौती बना हुआ है। यही नहीं मरीजों की बढ़ती संख्या ने भी चिंता बढ़ा दी है। अमूमन लोग भूलने को बढ़ती उम्र से जोड़कर देखते हैं लेकिन यह सामान्य स्थिति कतई नहीं है। डिमेंशिया पर शोध के लिए बेंगलुरु निमहेंस में इस वर्ष के अंत तक पेट-एमआरआइ की शुरुआत हो जाएगी। डा.चंद्रा ने बताया कि मशीन की कीमत 60 करोड़ है। इससे न्यूरो, कार्डियक के साथ-साथ साइकाइट्री से जुड़े शोध में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि वृद्धावस्था में होने वाले न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। निमहेंस ने कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से एमओयू कर रखा है। इसी तर्ज पर केजीएमयू सहित देश के चुनिंदा संस्थानों को भी मिलकर काम करना चाहिए।
----------------------
बेंगलुरु में है साउथ एशिया का अकेला 'ब्रेन बैंक'
निमहेंस में साउथ एशिया का अकेला ब्रेन बैंक है। इसमें शोध के लिए कैडेवर से प्राप्त ब्रेन संरक्षित किए जाते हैं। सामान्य मस्तिष्क और डिमेंशिया या अन्य न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर से ग्रस्त मस्तिष्क में क्या-क्या बदलाव आते हैं इस पर अध्ययन में मदद मिलती है। डा.चंद्रा ने कहा कि केजीएमयू जैसे संस्थान चाहें तो शोध के लिए ब्रेन के स्लाइस प्राप्त कर सकते हैं।