अतिथि संपादक की भूमिका में मुख्यमंत्री ने खबर तंत्र को समझा
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खबरों के संसार को समझने के लिए आज दैनिक जागरण दफ्तर पहुंचे। अतिथि संपादक के तौर पर दैनिक जागरण, उर्दू दैनिक इंकलाब और आइनेक्स्ट के दफ्तरों के सभी सेक्शन में घूम-घूमकर उन्होंने अखबार निकालने की बारीकियां समझीं तो मौजूदा वक्त में सुर्खियों में छाये मुद्दों पर बेलौस
लखनऊ। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खबरों के संसार को समझने के लिए आज दैनिक जागरण दफ्तर पहुंचे। अतिथि संपादक के तौर पर दैनिक जागरण, उर्दू दैनिक इंकलाब और आइनेक्स्ट के दफ्तरों के सभी सेक्शन में घूम-घूमकर उन्होंने अखबार निकालने की बारीकियां समझीं तो मौजूदा वक्त में सुर्खियों में छाये मुद्दों पर बेलौस अंदाज में अपना नजरिया भी जाहिर किया।
शाम पौने छह बजे जागरण दफ्तर में अपनी सरकारी गाड़ी से उतरते ही अगवानी के लिए जमा अखबारनवीसों का उन्होंने अपने चिरपरिचित अंदाज में अभिवादन किया। फिर राज्य संपादक दिली अवस्थी के साथ अखबार की हर डेस्क पर जाकर उन्होंने पत्रकारों से गर्मजोशी से हाथ मिलाया। लोकल डेस्क पर जाकर उन्होंने पूछा कि कहां से आ रही हैं खबरें। खबर लिख रहे एक रिपोर्टर से जानना चाहा कि वह खबरें कैसे फाइल करते हैं। डाक डेस्क का परिचय उनसे यह कहते हुए कराया गया कि यहां लखनऊ प्रकाशन केंद्र से जुड़े जिलों की खबरें देखी जाती हैं। इस पर समाजवादी सरकार के मुखिया ने यह कहते हुए चुटकी ली कि अब हम मेट्रो से किसानों के बीच आ गए हैं। कार्टूनिस्ट के कंप्यूटर पर अपना कार्टून देखकर मुदित हुए, चुटकी भी ली कि आप लोग हमारी नाक कुछ ज्यादा लंबी कर देते हो। जब देखो हमें लाल टोपी पहनाकर साइकिल पर बैठा देते हो पर कार्टूनिस्ट और ग्राफिक डिजाइनर की डेस्क से विदा लेते समय उन्हें यह ताकीद करने से नहीं चूके कि हमारे सारे कार्टून हमें जरूर भेज दीजिएगा। फोटोग्राफरों की मंशा भांप कर उन्हें अपने साथ फोटो खिंचवाने का यह कहते हुए न्योता दिया कि आप रोज हमारी फोटो खींचते हैं, आज हम आपके साथ फोटो खिंचवाएंगे। 'इंकिलाब' के दफ्तर में उन्होंने उर्दू अखबारनवीसों से उनके काम करने के तौर-तरीकों के बारे में पूछा। फिर सीढिय़ां चढ़कर दूसरी मंजिल पर आइनेक्स्ट के दफ्तर पहुंचे। आइनेक्स्ट के एक युवा पत्रकार ने जब उन्हें अखबार थमाते हुए उसे 'यूथ का न्यूजपेपर' बताया तो पहले पेज पर अपने मंत्रिमंडल के बुजुर्ग सहयोगी अहमद हसन की फोटो देखकर उन्होंने तपाक से टिप्पणी की 'लेकिन इनकी उम्र तो हमसे दोगुनी है।' आइनेक्स्ट की संपादक शर्मिष्ठा शर्मा से उन्होंने अखबार की प्रसार संख्या और उसके डिजिटल संस्करणों व उनकी पाठक संख्या को लेकर अपनी जिज्ञासाएं व्यक्त कीं।
फिर दैनिक जागरण के विज्ञापन से जुड़े सेक्शन की ओर रुख करते हुए पूछा कि यहां क्या होता है। जब उन्हें बताया गया कि यह विज्ञापन का प्रभाग है तो अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ वह बोले 'अच्छा! तो यहां 'माल' आता है। विज्ञापन सेक्शन में कार्यरत एक कर्मचारी राजेंद्र पंडित का परिचय जब यह कहते हुए कराया गया कि यह अवधी के अच्छे कवि हैं तो मुख्यमंत्री ने उनसे फौरन पूछ लिया 'आप सैफई महोत्सव में कभी नहीं आये।' डेढ़ घंटे दैनिक जागरण कार्यालय में बिताने के बाद चलते वक्त मुस्कुराते हुए सुर्रा छोड़ा, 'यह सब समझ इसलिए रहा हूं, क्या पता कब मुझे अखबार निकालना पड़ जाए।'
पहले पेज पर हों प्रेरक खबरें
खबरनवीसों के बीच पहुंचते ही उनका संपादकीय कौशल जागा और वह अपने सपनों के अखबार की परिकल्पना जाहिर करने से नहीं चूके। चेहरे पर संपादक सदृश संजीदगी के भाव के साथ उन्होंने कहा कि अखबार के पहले पेज पर किसी आदमी की सफलता बयां करती और प्रेरणा देने वाली स्टोरी जरूर होनी चाहिए। खेलकूद में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी की खबरों को भी अखबार के पहले पेज पर अनिवार्य रूप से स्थान मिलना चाहिए। हेडलाइंस ऐसी हों कि पहली नजर में पाठक अखबार उठा लें। इन्वायरमेंटल इंजीनियङ्क्षरग के छात्र रहे मुख्यमंत्री ने पर्यावरण और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को भी अखबार में प्राथमिकता देने की वकालत की। अपराध से जुड़ी खबरों को इस तरह प्रस्तुत किया जाए कि लोगों में यह संदेश जाए कि यह गलत और निंदनीय काम है, न कि उससे सनसनी फैले।
अतिथि संपादक के तौर पर उन्होंने दादरी कांड पर अपनी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यह मुद्दा राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चर्चा और बहस का मुद्दा बन गया है। ऐसे मामलों में रिपोर्टिंग करते हुए बेहद सचेत रहने की जरूरत है। लोग सच जानना चाहते हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए अखबार की भूमिका तय होनी चाहिए। अखबारनवीस इसी नजरिये से सच की पड़ताल करें। यह जानने की कोशिश करें कि फोरेंसिक रिपोर्ट क्या कह रही है। सियासत से जुड़े लोगों को भी इन मुद्दों पर बहुत सावधानी से प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए वर्ना मीडिया वाले फंसा देते हैं। फिर उन्हें जैसे कुछ याद आया और बोल पड़े, 'एक बार मैं भी फंस गया था दैनिक जागरण, बरेली के पत्रकारों के सवालों में। धर्मांतरण के मुद्दे पर न चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल गया कि यह फालतू सवाल है। फिर बोले, 'इसके बाद मुझसे कभी कोई गड़बड़ नहीं हुई। '