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पत्रकारों को धमकी की एफआइआर दर्ज नहीं कर रही बुलंदशहर पुलिस

घटना एक लेकिन पुलिस का रवैया दो तरह का। बुलंदशहर के सरकारी विभाग इस समय जिला प्रशासन की कठपुतली बनकर काम कर रहे हैं। पहले तो कलेक्ट्रेट में डीएम बी.चंद्रकला के साथ कथित सेल्फी लेने के आरोप में युवक फराज को जिस तत्परता से जेल भेजा गया, उस पर सवाल

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 11 Feb 2016 10:19 AM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2016 02:30 PM (IST)
पत्रकारों को धमकी की एफआइआर दर्ज नहीं कर रही बुलंदशहर पुलिस

लखनऊ। घटना एक लेकिन पुलिस का रवैया दो तरह का। बुलंदशहर के सरकारी विभाग इस समय जिला प्रशासन की कठपुतली बनकर काम कर रहे हैं। पहले तो कलेक्ट्रेट में डीएम बी.चंद्रकला के साथ कथित सेल्फी लेने के आरोप में युवक फराज को जिस तत्परता से जेल भेजा गया, उस पर सवाल खड़े हुए। फिर दैनिक जागरण में इस बात की जब खबर छपी तो पत्रकारों पर डीएम की छवि बिगाडऩे का मुकदमा ठोक दिया गया। दूसरी ओर, जब पीडि़त पत्रकार डीएम की धमकी की शिकायत करने पुलिस के पास पहुंचा तो शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया गया।

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ऐसा तब हुआ जबकि पत्रकार को फोन पर डीएम के धमकाने का ठोस साक्ष्य उपलब्ध है। ऐसे में मुकदमा दर्ज कराने के लिए पत्रकार को मजबूरन अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं कि पीडि़त कोई भी हो, यदि वह शिकायत लेकर थाने जाता है तो तत्काल रिपोर्ट दर्ज की जाए। पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद भी एफआइआर दर्ज करने की सीख देते रहे हैं। बावजूद इसके बुलंदशहर का पुलिस प्रशासन पत्रकार की रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रहा। डीएम की ओर से घर पर गुंडे भेजने की धमकी के बाद से पत्रकार बेहद तनाव में है, लेकिन पुलिस उसकी नहीं सुन रही। नगर कोतवाली में पत्रकार ने डीएम के खिलाफ शिकायत दी तो उसे दर्ज नहीं किया गया। बताया गया कि पहले मामले जांच होगी, फिर वरिष्ठ अफसरों से राय-मशविरा होगा। निराश होकर पत्रकार ने कोर्ट ने धारा 156 (3) के तहत अर्जी लगाई। कोर्ट ने थाने से आख्या मांगी है।

ऐसा भी नहीं कि बुलंदशहर प्रशासन या डीएम का दवाब सिर्फ जिला पुलिस पर है। अभी दो दिन पहले बुलंदशहर में जागरण कार्यालय के बाहर रात के सन्नाटे में चुपचाप दो ट्रक कूड़ा डलवा दिया गया। इसको लेकर क्षेत्रवासियों में जबरदस्त रोष है। यदि वहां किसी प्रकार की अशांति फैलती तो उसका जिम्मेदार कौन होता। साफ है कि मामला किसी बड़े ओहदेदार का हो तो पुलिस की घिग्घी बंध ही जाती है।

डीएम की मनमानी और तानाशाही

डीएम चाहती थीं कि सेल्फी की घटना मीडिया की सुर्खियां न बने। लिहाजा खबर छपने पर पत्रकार पर मुकदमा दर्ज करा दिया गया। हालांकि न तो सेल्फी लेने वाले फराज और न ही पत्रकार पर मुकदमा दर्ज करने के पहले पुलिस ने कोई जांच-पड़ताल की। यह मान लिया गया कि डीएम जो कह रही हैं सच कह रही हैं। हालांकि अब एडीएम विशाल सिंह ने बयान दिया है कि फराज सेल्फी नहीं, बल्कि कलेक्ट्रेट में वीडियो बना रहा था। फराज के खिलाफ दर्ज मुकदमे में भी यही शिकायत है। ऐसे में यह सवाल है कि डीएम फराज पर सेल्फी लेने की बात अब तक क्यों प्रचारित कर रही हैं। फराज के खिलाफ दर्ज मुकदमे में धारा भी शांति भंग (151) की लगाई गई है, न कि महिला से छेड़छाड़ या उसकी निजता के अपमान की।


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