बसपा में अब सतीश चंद्र मिश्रा से आगे मुखिया मायावती के भाई व भतीजा
मायावती के मंच पर सतीश चंद्र मिश्रा के आगे आनंद तथा आकाश दिखे। जिससे संकेत मिलने लगा है कि मायावती भी अन्य पार्टियों की तरह ही परिवार के लोगों पर अधिक भरोसा जताने की ओर जा रही हैं।
लखनऊ (जेएनएन)। बहुजन समाज पार्टी की सियासत भी अब बदलने लगी है। बसपा के तमाम दिग्गजों के किनारा कर लेने के बाद अब पार्टी की मुखिया मायावती अपने परिवार के लोगों पर अधिक भरोसा कर रही हैं। मेरठ में कल रैली में उनके मंच पर भाई आनंद तथा भतीजा आकाश सबसे आगे दिखे।
मायावती के मंच पर कल सतीश चंद्र मिश्रा के आगे आनंद तथा आकाश दिखे। जिससे संकेत मिलने लगा है कि मायावती भी अन्य पार्टियों की तरह ही परिवार के लोगों पर अधिक भरोसा जताने की ओर जा रही हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद कल पहली बार मेरठ के वेदव्यासपुरी में बसपा मुखिया मायावती का मंच पहली बार काफी बदला नजर आया। रैली में पहली बार उनके भाई आनंद कुमार और भतीजे आकाश भी सार्वजानिक मंच पर साथ नजर आए।
दरअसल यह पहला मौका था जब मायावती के भाई आनंद कुमार और उनके बेटे आकाश किसी जनसभा में मायावती के साथ मंच पर मौजूद थे। रैली का संचालन करने वाले ने इन दोनों का नाम लेकर उनका परिचय करवाया। इतना ही नहीं दोनों ने एक मंझे हुए नेता की तरह हाथ हिलाकर जनता के अभिनंदन को स्वीकार किया।
इतना ही नहीं मायावती ने कल ही अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से भतीजे आकाश को भी मिलवाया और कहा कि यह पार्टी को मजबूती देने में उनकी मदद करेगा। इसके बाद एक बार फिर चर्चा शुरू हुई कि मायावती लंदन से एमबीए ग्रेजुएट भतीजे आकाश को अपना उत्तराधिकारी बना सकती हैं।
सहारनपुर में हुए जातीय संघर्ष के दौरान जब पहली बार मायावती शब्बीरपुर के दौरे पर गईं थीं तो आकाश भी उनके साथ थे। आकाश वहां दंगा पीडि़तों से मुलाकात कर उनकी बात भी गंभीरता से सुन रहे थे।
प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती उन चंद नेताओं में शुमार होती हैं, जिन्होंने पार्टी पर परिवार को हावी नहीं होने दिया, किंतु मायावती के मंच पर पहली बार परिवार नजर आया, जिसके हाथों में पार्टी की विरासत हो सकती है। मायावती ने भाई आनंद और भतीजे आकाश को पहली बार समर्थकों के बीच पेश किया। माना जा रहा है कि उनकी पार्टी के निर्णयों में उनकी अहम भूमिका होगी।
मायावती के भाई आनंद कुमार का नाम नया नहीं है, किंतु सियासी मंच पर वह नहीं देखे गए थे। कार्यकर्ता उन्हें बखूबी जानते हैं। माना जा रहा है कि अब सियासत की डोर आकाश संभालेंगे, जबकि आनंद पार्टी की सेकंड लाइन की मॉनीटरिंग करेंगे। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं नहीं हैं, किंतु अपने बेटे आकाश को राजनीति का कहकरा सिखाने की मंशा सच हो गई।
लंबे राजनीतिक जीवन में परिवार से दूर रहने के दौरान बसपा मुखिया मायावती का भरोसा पार्टी में कई लोगों ने खोया। स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा व नसीमुद्दीन से मतभेद के बाद अब वह किसी पर यकीन नहीं जमा पाएंगी। बसपा के कार्यकर्ताओं की मानें तो इसी वजह से उन्होंने अपने भाई और भतीजे को साथ ले लिया है। उनके भाई आनंद कुमार अब पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।
उन्हें भले ही सियासी अनुभव न हो, किंतु मायावती के कार्यकाल में रियल स्टेट व पार्टी का कोष संभालने के आरोपों में विवादों में आए। नोटबंदी के बाद उनकी संस्था के नाम पर दिल्ली में बेतहाशा पैसे जमा किए गए। इस मामले में विपक्षियों का आरोप है कि माया के तमाम हिसाब-किताब आनंद के पास हैं। उन्हें राजनीति में अहमियत मिलते ही विपक्ष हमलावर हो सकता है, जबकि आकाश के सामने सियासत का खुला आसमान है।
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मायावती समझ चुकी हैं कि राजनीतिक विरासत संभालने के लिए उन्हें नए चेहरों को आजमाना होगा। पार्टी कार्यकर्ताओं में मंच में आए इस बदलाव को लेकर चर्चा रही। पार्टी के तमाम बड़े पदाधिकारियों की मानें तो उन्होंने आनंद को भी पहली बार देखा है। आकाश के बारे में कइयों ने सुना तक नहीं था।
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विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती ने अप्रैल 2017 में आनंद कुमार को पार्टी का उपाध्यक्ष घोषित किया था। उस वक्त कहा जा रहा था कि आनंद कुमार कभी भी पार्टी के सांसद और मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। आनंद कुमार के उपाध्यक्ष बनने के बाद से ही राजनैतिक गलियारों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई थी कि मायावती अपना वारिस चुन रही हैं।
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माना जा रहा है कि पार्टी के दिग्गज नेताओं के एक-एक कर पार्टी छोडऩे के बाद मायावती पार्टी का कमान अपने ही परिवार के पास रखना चाह रही हैं। लिहाजा उन्होंने अपने छोटे भाई को उपाध्यक्ष बनाया।