भाजपा को 'पश्चिमी विक्षोभ' से आस, विपक्ष निराश
देश के पूर्वोत्तर में भाजपा ने आखिरकार कमल खिला लिया, लेकिन उत्तर प्रदेश का क्या? यहां भाजपा सियासी वनवास काट रही है। 14 साल से। पार्टी को पता है कि वह जेब में हाथ डालकर सत्ता की सीढिय़ां नहीं चढ़ सकती।
लखनऊ। देश के पूर्वोत्तर में भाजपा ने आखिरकार कमल खिला लिया, लेकिन उत्तर प्रदेश का क्या? यहां भाजपा सियासी वनवास काट रही है। 14 साल से। पार्टी को पता है कि वह जेब में हाथ डालकर सत्ता की सीढिय़ां नहीं चढ़ सकती। संगठन में वो शक्ति नहीं बची और सत्ता पाने का शार्टकट तो उत्तराखंड में भी काम नहीं आया।
सिर्फ मोदी की लोकप्रियता ही काम आ सकती है। भाजपा ने अपनी इस थ्योरी पर काम शुरू किया सहारनपुर से। कारण, पार्टी को यूपी में सबसे ज्यादा आस पश्चिम से ही है। राजनीति में टाइमिंग का महत्व कभी-कभी क्रिकेट से भी ज्यादा होता है। मोदी सरकार की दूसरी वर्षगांठ पर बढिय़ा मौका भला और क्या होता। कितने पानी में है, यह भी पता चल जाएगा। सो, सहारनपुर में रैली हो गई। यह महज इत्तफाक नहीं था, बल्कि दो साल के प्रदर्शन के लिए सहारनपुर का चुनाव एक सोचा-समझा सियासी कदम है। सियासत में शारीरिक भाषा के भी मतलब निकाले जाते हैं। मोदी जब मंच से उतर रहे थे, सूरज अस्त होने की तैयारी में था। लेकिन यूपी में भाजपा की उम्मीदों का सूर्योदय हो गया। लोकसभा चुनाव से तुलना करें तो मोदी की लोकप्रियता में रत्ती भर भी कमी नजर नहीं आई। सरकार में दो साल रहने के बाद भी ऐसी लोकप्रियता कांग्रेस के लिए आश्चर्य, शंका और शोध का विषय हो सकती है।
भीड़ में 12 साल के बच्चे से लेकर 72 साल के बुजुर्ग तक। महिलाओं की भी पूरी भागीदारी। गांव से लेकर शहर तक के चेहरे। अमीर भी, गरीब भी। युवाओं में भी वही जोश, वही मोदी-मोदी की गूंज। हवा में हेलीकाप्टर दिखते ही हजारों हाथ हिलने लगे। भीड़ भी वैसी ही। उत्साह-उमंग से भरी हुई। खुद मोदी ने भी इसे नोटिस किया और तपती धूप में बैठी अपार भीड़ के प्रति आभार जताया। सियासी पंडित भी मान रहे हैैं कि यूपी में पार्टी को अंजाम तक पहुंचाने के लिए मोदी का आगाज बढिय़ा था। वे भगवा उड़ान के लिए नये सियासी रनवे की नींव रख गए। कार्यकर्ताओं के सामने बस मोदी-मोदी की इस गूंज को यूपी विधानसभा में वोटों में बदलने की चुनौती होगी। जाहिर है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों वाले इस सूबे में यह काम जरा मुश्किल है। लेकिन लोकसभा चुनाव की नजीर है कि कार्यकर्ताओं को जोश में भर देती है।विकास ही मुख्य मुद्दा होगा, मोदी यह साफ कर गए। राजनीति संभावनाओं का खेल है और इस रैली के बाद भाजपा अपने लिए सबसे ज्यादा संभावना वेस्ट में ही देख रही है। यह संभावना सत्ता के कितने करीब ले जाएगी...देखना बाकी है।
जनता में मायूसीः सपा
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर विपक्ष ने प्रधानमंत्री द्वारा केवल हवाई घोषणाओं की भरमार करने से जनता में मायूसी बढऩे का आरोप लगाया है। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ बहुमत दिया था लेकिन केंद्र में सरकार बनते ही भाजपा नेतृत्व अपने सब वादे भूल गया। राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के बजाय विदेशों में भीड़ जुटाने और समझौतों पर जोर है। अच्छे दिन आने की आस घोर निराशा में बदल गई है। महंगाई की मार से त्रस्त भाजपा की जुमलेबाजी से छुटकारा पाने का बेचैन है। गत दो वर्ष में केवल घोषणा करने की होड़ रही, अमल कुछ नहीं किया।
वादे भुला दिए : बसपा
बसपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के गत दो वर्ष जनता के लिए निराशा भरे रहे। बड़े बड़े वादों से भ्रम फैला कर केंद्र की सत्ता कब्जाने वालों ने अपने वादे भुला दिए हैं। काले धन की वापसी व गरीबों के बैंक खातों में पैसा जमा करने का वादा धोखा साबित हुआ। सर्वाधिक नुकसान गरीबों को झेलना पड़ा है क्योंकि महंगाई की मार से उनको जीवनयापन करना भी मुश्किल हो गया है। मौर्य ने कहा कि भाजपा सरकार को बचे तीन वर्ष में गरीबों व किसानों के बारे में कुछ करके दिखा देना चाहिए।
नौजवानों की चिंता नहीं : कांग्रेस
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी अपने व्यक्तिगत प्रमोशन में जुटे हैं। जनता से किए वादे भूल चुके मोदी को किसानों और नौजवानों की कोई चिंता नहीं है। यूपीए शासनकाल में 70-80 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाली अरहर की दाल अब 170 रुपये से ज्यादा के भाव पर बिक रही है। डीजल-पेट्रोल भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर सस्ता हो गया पर देशवासियों को कोई लाभ नहीं मिला। मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और स्किल हंडिया जैसे नारे खोखले साबित हुए हैं।
उद्योगपतियों को लाभः रालोद
राष्ट्रीय लोकदल प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने आरोप लगाया कि केंद्र से किसानों को सर्वाधिक निराशा मिली है। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का दावा करने वालों ने खेती की जमीनें कब्जाने की रणनीति बना ली थी। किसानों का कर्ज माफ करने और न्यूनतम समर्थित मूल्य देने की घोषणा से भी भाजपा ने मुंह मोड़ लिया है। गांवों और किसानों की दशा सुधारने के बजाय प्रधानमंत्री का सारा जोर उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने में लगा है।
दलित उत्पीडऩ बढ़ाः रालोद
आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अवधेश कुमार वर्मा ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के दो वर्ष में सबसे अधिक उत्पीडऩ दलितों का ही हुआ। दलित कर्मियों को पदावनत किया गया और केंद्र सरकार आंख और कान बंद किए बैठी है। इससे दलित समाज में घोर निराशा है। वर्मा ने बताया कि 29 मई को हरदोई में महासम्मेलन करके दलित विरोधी ताकतों को बेनकाब किया जाएगा। कांगेस ने मोर्चा खोला सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर जश्न मना रही भाजपा के खिलाफ कांगेस ने मोर्चा खोल दिया है। गुरुवार को महासचिव शकील अहमद ने पार्टी मुख्यालय में पत्रकार वार्ता में नरेंद्र मोदी सरकार की खामियों को गिनाते हुए पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की खूबियां भी बतायीं। आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने कुछ नया नहीं किया केवल कांग्रेस की योजनाओं के नाम बदलकर अपनी पीठ को खुद ही थपथपाने का काम किया है। किसानों के हक को पूंजीपतियों पर लुटाने का आरोप लगाते हुए कहा कि जनता अब छुटकारा पाने को बेताब है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पद संभालते हुए गुजरात माडल लागू करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपना दुश्मन नंबर- एक किसानों को मान लिया है।