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पत्ते खोलने से पहले खूब दांव आजमाएंगे बाबू सिंह कुशवाहा

उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रमुख राजनीतिक दल जातीय क्षत्रपों से गठजोड़ कर सकते हैं। कभी बसपा सरकार में ताकतवर रहे पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा इस समीकरण को अच्छी तरह समझते हैं और इसीलिए अपना पत्ता खोलने से पहले सब कुछ आजमा लेना चाहते

By Ashish MishraEdited By: Published: Mon, 08 Feb 2016 08:06 PM (IST)Updated: Mon, 08 Feb 2016 08:12 PM (IST)
पत्ते खोलने से पहले खूब दांव आजमाएंगे बाबू सिंह कुशवाहा

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रमुख राजनीतिक दल जातीय क्षत्रपों से गठजोड़ कर सकते हैं। कभी बसपा सरकार में ताकतवर रहे पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा इस समीकरण को अच्छी तरह समझते हैं और इसीलिए अपना पत्ता खोलने से पहले सब कुछ आजमा लेना चाहते हैं। एनआरएचएम घोटाले के आरोप में करीब चार वर्ष तक जेल में रहकर रिहा हुए कुशवाहा सियासी मसलों पर फिलहाल खामोशी ओढ़े हैं।

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सोमवार को राजधानी के पार्क रोड स्थित कसमांडा हाऊस में कुशवाहा दिन भर जन अधिकार मंच और अन्य संगठनों से आने वाले कार्यकर्ताओं से मिलते रहे। उनकी गिरफ्तारी के बाद समर्थकों ने इस मंच का गठन किया था। रविवार रात स्वागत में आतिशबाजी और अफरातफरी के चलते उनके और समर्थकों के खिलाफ हजरतगंज कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराये जाने की टीस चेहरे पर साफ थी लेकिन उन्होंने इससे अनभिज्ञता जतायी। यह कहने पर कि आपके समर्थकों ने कानून का मखौल उड़ाया? बाबू सिंह ने बात काटी और बोल पड़े, इसमें मेरा क्या दोष है। इस बीच गुलदस्ता लेकर पहुंचे एक इंजीनियर और उनके परिवार की कुशल क्षेम पूछी। बताने लगे मेरी पीठ पर पट्टियां चिपकी हैं और देर तक नहीं बैठ सकता। शरीर के दर्द के साथ मन का दर्द भी उनकी जुबां पर था।

मिलने-जुलने वालों का सिलसिला लगा था। बहराइच के एक नेताजी आए। कुशवाहा ने पूछा अभी किस दल में हैं? नेताजी ने कहा कि बसपा में ही हूं साहब, लेकिन आपके साथ हूं। मेरे लिये आदेश करिए। बाबू ने पूछा टिकट नहीं मांग रहे। नेताजी तपाक से बोल पड़े-आप तो जानते हैं कि एक करोड़ रुपये लगेंगे। बाबू ने उनसे फिर मिलने की बात कहकर उन्हें विदा कर दिया।

बाबू सिंह से अखबार के लिए बातचीत की पेशकश की गयी। मायावती, मुलायम, भाजपा किसी भी तरह के सवाल हुए तो वह मुस्कराए जरूर पर होंठ हिले नहीं। कुशवाहा ने कहा कि अभी मुझे हालात समझने दीजिए। चार वर्ष जेल में रहा हूं। कुशवाहा, कोइरी, शाक्य और सैनी समाज की ताकत के बारे में बात उठी तो बोल पड़े हमारी हिस्सेदारी 11 प्रतिशत है। पर अगले ही पल सावधान हो गए। कहने लगे कि हम सिर्फ एक समाज की बात नहीं करते हैं। हम तो किसानों, दलितों, अति पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और सभी दबे-कुचलों की आवाज बनना चाहते हैं। जातीय धु्रवीकरण के लिए उनका यह संकेत था। कुशवाहा हर आने वाले से उसके इलाके की सियासत का तापमान भी समझ रहे थे। मऊ से मुख्तार अंसारी के दोबारा जीतने की जानकारी चाही तो बहराइच की बलहा रिजर्व सीट का भी ब्यौरा लिया। रायबरेली से लेकर गाजीपुर और कौशांबी से लेकर कुशीनगर तक की एक-एक जानकारी ले रहे थे।

मां से मिलने जाएंगे बांदा

बाबू सिंह की मां बांदा में रहती हैं। बोले, एक-दो दिन यहां हूं लेकिन मेरी मां 80 वर्ष की हो गयी हैं। चार वर्ष में कभी-कभार मुलाकात हुई। उनसे मिलने जाऊंगा। घोटाले को लेकर किसी ने बात छेड़ी तो कहने लगे बहुत गहरी राजनीतिक साजिश थी। मेरा घोटाले से कोई मतलब नहीं था।

छोटे दलों का मोर्चा संभव

कुशवाहा से गोपनीय ढंग से रविवार की रात से लेकर सोमवार तक कई अफसर भी मिले। कुछ दूसरे दलों के नेताओं ने भी मुलाकात की। वह छोटे-छोटे दलों के साथ गठजोड़ कर एक मोर्चा भी बना सकते हैं। जन अधिकार मंच ने फिलहाल ताकत बढ़ानी शुरू कर दी है। कुशवाहा से पूछा गया कि क्या यह संगठन राजनीतिक दल है? उन्होंने कहा कि दल का पंजीकरण कराने में कितना समय लगता है। मंच के कार्यकारी अध्यक्ष अजय मौर्य, चित्रकूट के मंडल प्रभारी राजेन्द्र सिंह कुशवाहा, बांदा के विजय बहादुर समेत उनसे जुड़े कई भरोसेमंद कार्यकर्ताओं ने कुशवाहा को जन अधिकार मंच के प्रदेश व्यापी संगठन के बारे में जानकारी दी।

कुशवाहा की घेरेबंदी शुरू

बाबू सिंह के स्वागत में राजधानी में उमड़ी भीड़ और उसका अनुशासनहीन प्रदर्शन कोई नयी बात नहीं थी लेकिन हजरतगंज कोतवाली में मुकदमा दर्ज होने से यह साफ हो गया कि कुशवाहा का शक्ति प्रदर्शन सरकार को रास नहीं आया। एनआरएचएम घोटाले में सीबीआइ जांच में फंसे कुशवाहा आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार की सतर्कता जांच का भी सामना कर रहे हैं।

सतर्कता अधिष्ठान ने बाबू सिंह के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए शासन से अनुमति मांगी है। अधिष्ठान की झांसी इकाई ने कुशवाहा के खिलाफ पद का दुरुपयोग और आय से अधिक व्यय करने का मामला जांच में पाया है। शासन से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 (एक) डी (पद का दुरुपयोग), 13 (एक) ई और आइपीसी की 120 बी (षडयंत्र) के तहत मुकदमा दर्ज करने की अनुमति मांगी गयी है। सतर्कता जांच में कुशवाहा ने आय से 35 प्रतिशत ज्यादा व्यय किया है। अब शासन में कुशवाहा से संबंधित फाइलें निकाली जा रही हैं। जांच-एजेंसी को देर-सवेर सरकार मुकदमा दर्ज करने की अनुमति भी दे सकती है। जाहिर है सरकार ने कुशवाहा की घेरेबंदी शुरू कर दी है।

गौरतलब है कि सतर्कता विभाग की झांसी इकाई जिस समय कुशवाहा पर बांदा और झांसी में मुकदमा दर्ज करने की तैयारी कर रही थी, उसी दौरान कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या और भाई शिवचरण कुशवाहा ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। इस राजनीतिक गठबंधन का असर जांच पर पड़ा और तकनीकी खामियों की पेंच फंसा कर कुशवाहा पर एफआइआर दर्ज करने का मसला लंबित कर दिया गया। बाद में उनकी पत्नी शिवकन्या को गाजीपुर से सपा का टिकट दिया गया। वह गाजीपुर में बहुत मजबूती से चुनाव लड़ी लेकिन चुनाव हार गयीं। शुरुआती दिनों में सरकार ने कुशवाहा की सुधि जरूर ली लेकिन चुनाव बाद ध्यान हटा लिया।


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