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उत्तर प्रदेश में योगी कैबिनेट के जरिए 2019 साधने की पहल

सपनों और उम्मीदों के वोट से बनी प्रचंड जनादेश की सरकार में अनुभव, जाति, संगठन और बाहर से आये दिग्गजों को तरजीह देकर भाजपा ने सबका साथ-सबका विकास का संदेश देने का प्रयास किया है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Mon, 20 Mar 2017 05:12 PM (IST)Updated: Mon, 20 Mar 2017 05:32 PM (IST)
उत्तर प्रदेश में योगी कैबिनेट के जरिए 2019 साधने की पहल
उत्तर प्रदेश में योगी कैबिनेट के जरिए 2019 साधने की पहल

लखनऊ [आनन्द राय]। सपनों और उम्मीदों के वोट से बनी प्रचंड जनादेश की सरकार में अनुभव, जाति, संगठन और बाहर से आये दिग्गजों को तरजीह देकर भाजपा ने सबका साथ-सबका विकास का संदेश देने का प्रयास किया है। योगी आदित्यनाथ की सरकार में शामिल मंत्रियों का अपने-अपने क्षेत्र और जाति में मजबूत प्रभाव है। इनके जरिए 2019 साधने की भी रणनीति बनाई गयी है। 

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उत्तर प्रदेश में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 80 में 73 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए 2019 एक बड़ी चुनौती है। विधानसभा चुनाव में 14 वर्षों के बसपा-सपा सरकार के कुशासन को मुद्दा बनाकर मतदाताओं के बीच जादू बरकरार रखने वाली भाजपा की निगाह 2019 के चुनाव पर है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को 337 विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली और 2017 तक 325 सीटों पर यह स्थिति बरकरार रही। भाजपा सूबे की सरकार के जरिए जनता के बीच मजबूत पकड़ बनाये रखना चाहती है।

अब तक यही बात होती रही है कि विकास और कानून-व्यवस्था के मामले में दोनों सरकारें फेल रही हैं। केन्द्र से भेजे जा रहे पैसे का सही सदुपयोग न होने और भ्रष्टाचार व गुंडाराज के चलते उप्र का विकास रुक गया है। योगी आदित्यनाथ ने जिन मंत्रियों को चुना है वह काम करने के लिहाज से अनुभवी हैं। इनमें सूर्य प्रताप शाही, सुरेश खन्ना, स्वामी प्रसाद मौर्य, सतीश महाना, रमापति शास्त्री, मोती सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। मंत्रिमंडल में शिक्षाविद, किसान और महिलाओं का भी समन्वय है।

जातीय संतुलन साधने की कोशिश
भाजपा ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के चयन में क्षत्रिय, ब्राह्मण और पिछड़ा संतुलन बनाया है। 47 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 15 पिछड़े, आठ ब्राह्मण, सात क्षत्रिय, चार दलित, दो-दो भूमिहार व जाट, एक सिख, एक मुसलमान, एक कायस्थ और खत्री समेत अन्य जातियों के सदस्य हैं। पिछड़ों में कुर्मी, मौर्य, निषाद, चौहान, गड़रिया, राजभर की भागीदारी महत्वपूर्ण है।

संगठन को दी तरजीह
भाजपा को दो तिहाई बहुमत दिलाने में मोदी की लहर के साथ ही संगठन और कार्यकर्ताओं की भी मेहनत कम नहीं है। मंत्रिमंडल में पार्टी ने संगठन को खूब महत्व दिया है। गौर करें तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा, पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष दारा सिंह चौहान, पूर्व अध्यक्ष एसपी सिंह बघेल, अवध के क्षेत्रीय अध्यक्ष मुकुट विहारी वर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष आशुतोष टंडन, राष्ट्रीय मंत्री डॉ. महेन्द्र सिंह, प्रदेश महामंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, पश्विम के क्षेत्रीय अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी, महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष स्वाति सिंह को मौका दिया गया है।

सबका साथ
गठबंधन के साथ लड़े अपना दल सोनेलाल के जय कुमार सिंह जैकी को राज्यमंत्री बनाया गया है जबकि, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। अपना दल सोनेलाल का आधार कुर्मी समाज है जबकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का सर्वाधिक प्रभाव राजभरों में है।
लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव के दरम्यान दूसरे दलों के कई नेता भाजपा में शामिल हुए। उन्हें पार्टी ने टिकट दिया और जीतने के बाद मंत्री भी बनाया है। पूर्व नेताप्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा, कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, दारा सिंह चौहान, एसपी सिंह बघेल, बृजेश पाठक, चौधरी लक्ष्मी नारायण, नंदगोपाल गुप्ता नंदी, धर्म सिंह सैनी, अनिल राजभर जैसे नेता दूसरे दलों से आये और चुनाव जीतने के बाद इन्हें मंत्री बनने का अवसर मिला।

विधायक बनते ही लालबत्ती
यूं तो बृजेश पाठक, दारा सिंह चौहान, एसपी सिंह बघेल, चेतन चौहान राजनीति में वरिष्ठ हैं और सांसद भी रहे हैं लेकिन पहली बार विधायक बनते ही लालबत्ती मिल गयी। ओमप्रकाश राजभर, सिद्धार्थनाथ सिंह श्रीकांत शर्मा, अनुपमा जायसवाल, अनिल राजभर, स्वाति सिंह, अर्चना पाण्डेय, जय कुमार सिंह जैकी, अतुल गर्ग, नीलकंठ तिवारी, गिरीश यादव पहली बार के विधायक हैं जिन्हें मंत्री बनने का मौका मिला है। डॉ. महेन्द्र सिंह, भूपेन्द्र चौधरी पहली बार के एमएलसी हैं जबकि पूर्व एमएलसी स्वतंत्र देव सिंह और मोहसिन रजा किसी सदन का सदस्य न होने के बावजूद मंत्री बने हैं।
 


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