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गर्मी ही नहीं जाड़े में भी बढ़ रहा है तापमान

रूमा सिन्हा, लखनऊ जिसे देखिए वह इन दिनों गर्मी से बेहाल है और उसी की चर्चा कर रहा है। बड़े-बुजुर्ग

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Jun 2017 02:34 PM (IST)Updated: Thu, 15 Jun 2017 02:34 PM (IST)
गर्मी ही नहीं जाड़े में भी बढ़ रहा है तापमान
गर्मी ही नहीं जाड़े में भी बढ़ रहा है तापमान

रूमा सिन्हा, लखनऊ

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जिसे देखिए वह इन दिनों गर्मी से बेहाल है और उसी की चर्चा कर रहा है। बड़े-बुजुर्ग यह भी कहते मिल जाते हैं कि पहले इतनी गर्मी नहीं पड़ती थी। यह सच भी है और इसकी पुष्टि की है सेंटर ऑफ साइंस एंड एंवायरमेंट (सीएसइ) की क्लाइमेट चेंज पर जारी हालिया रिपोर्ट ने। रिपोर्ट के अनुसार गर्मी का यह सितम यूं ही बरकरार रहा तो अगले दो दशकों में गर्मी सहने की जो अंतरराष्ट्रीय सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस तय की गई है, वह भी क्रॉस हो जाएगी।

सीएसइ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार क्लाइमेट चेंज के चलते गर्मी तो गर्मी जाड़े भी गर्म होने लगे हैं। बीती जनवरी-फरवरी अब तक की सबसे गर्म सर्दी रिकॉर्ड हुई जिसमें तापमान औसत से 2.95 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। जाहिर है कि अब केवल गर्मी के दिनों में ही नहीं जाड़े में भी 'गर्मी' सितम ढा रही है।

रिपोर्ट के अनुसार

- वर्ष 2010 के ग्रीष्मकाल सबसे अधिक गर्म रहा जिसमें तापमान औसत से 2.05 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड हुआ।

- वर्ष 1995 से जो 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई वह बरकरार है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहनीय सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस से कुछ ही कम है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगले दो दशकों में ही इस स्तर के पार होंगे।

-बीते दो दशक में जो 15 सबसे गर्म वर्ष रहे वह 2001 से 2016 के मध्य रहे।

जलवायु परिवर्तन की देन:

भारत एक्सट्रीम वेदर कंडीशन से दो-चार हो रहा है। विश्व बैंक कह चुका है कि यहां 40 दिन की बरसात अब घटकर महज 25-30 दिन की ही रह गई है। यही नहीं, जो बारिश होती भी है वह कम अंतराल में और बेहिसाब होती है। इससे बारिश का चक्र गड़बड़ा गया है। इसका प्रभाव आर्थिक, सामाजिक व पारिस्थितिकीय स्थितियों पर इसका सबसे अधिक पड़ रहा है। इससे मौसम व जल चक्र दोनों प्रभावित हो रहे हैं। मौसम के इस बदलाव का सर्वाधिक प्रभाव गरीबों को झेलना पड़ेगा।

यह कारक हैं जिम्मेदार:

ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में प्रदेश अव्वल:

- उत्तर प्रदेश इसके लिए खुद जिम्मेदार है, जहां ग्रीन हाउस गैसों कार्बन डाइ ऑक्साइड, मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन पूरे देश में सबसे ज्यादा 14 फीसद है।

- राज्य में होने वाले कुल उत्सर्जन में 66 फीसद भागीदारी कार्बनडाइआक्साइड की। मीथेन की भागीदारी 26 और नाइट्रस आक्साइड की आठ फीसद हिस्सेदारी।

इन शहरों की सबसे ज्यादा भागीदारी:

सोनभद्र, रायबरेली, गौतमबुद्ध नगर से सर्वाधिक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन।

यह हैं कारक:

-जेनरेटर

-डीजल ट्यूबवेल

-वाहन जनित प्रदूषण

-औद्योगिक प्रदूषण

-मीथेन सहित ग्रीन हाउस गैसें

वैज्ञानिक अनुमान:

- सूबे के विभिन्न इलाकों में बारिश का औसत स्तर बदलेगा।

- वर्ष 2050 तक तापमान व वर्षा में भारी परिवर्तन आएगा।

- परंपरागत वर्षा ऋतु (15 जून से 15 सितंबर) की प्रकृति बदलेगी।

-सालाना बारिश में 15 से 20 फीसद

इजाफा होगा।

-जाड़े की ऋतु में भी तापमान बढ़ेगा।

कोट:

तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है। चिंताजनक यह है कि गर्मी को छोड़ भी दें तो जाड़े के मौसम में भी तापमान बढ़ने से गर्मी निरंतर बढ़ रही है। यह इसी से समझा जा सकता है कि इस सदी में यानी वर्ष 2000 से 2017 के बीच 15 ऐसे साल रहे हैं जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रिकॉर्ड हुआ है जबकि बीते सौ सालों में असामान्य तापमान वाले केवल सात-आठ साल ही थे।

डॉ.राजेश अग्निहोत्री

वरिष्ठ वैज्ञानिक, बीरबल साहनी पुरासाइंसेस संस्थान।


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