बिना आवाज उठाए कुछ ठीक नहीं होगा
लखनऊ : पीड़ित महिला या बच्ची के साथ कुछ भी गलत होने पर सबसे पहले घरवाले ही 'चुप हो जाओ सब कुछ ठीक हो
लखनऊ : पीड़ित महिला या बच्ची के साथ कुछ भी गलत होने पर सबसे पहले घरवाले ही 'चुप हो जाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा' की नसीहत देने लगते हैं। यहां तक पुलिसकर्मी भी। यह गलतफहमी दूर करनी होगी। चुप रहने के बजाय आवाज उठानी होगी, क्योंकि बिना आवाज उठाए कुछ ठीक नहीं होगा। यह कहना था महिला सम्मान प्रकोष्ठ की पुलिस महानिदेशक सुतापा सान्याल का।
मंगलवार को डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में यूनिसेफ, विवि व एक संस्था द्वारा संयुक्त रूप से महिला एवं बाल अपराध नियंत्रण पर राउंड टेबल का आयोजन किया गया। इस दौरान डीजी सुतापा सान्याल ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि गर्वनेंस कोई रॉकेट साइंस नहीं है। विश्लेषण व निगरानी मजबूत और बेहतर हो, तभी गुड गर्वनेंस संभव है। उन्होंने कहा कि पुलिस महकमा 1868 नियमावली के तहत आज भी संचालित होता है, जो कि कठोर शासनकाल का दौर रहा है। आज के दौर में 80 प्रतिशत नागरिकों को सामाजिक पुलिसिंग की जरूरत है। उनका कहना है पुलिस महकमें में अधिकांश लोग उसी बैकग्राउंड से आते हैं जो बचपन से ही पारिवारिक विषमताओं को देखते रहे हैं। उन्होंने महिलाओं से आपराधिक घटनाओं, घरेलू ¨हसा पर आवाज उठाने की नसीहत दी। छात्रा-छात्राओं से कहा पढ़ाई के साथ समाज की 5 कुरीतियों को मुद्दा बनाए, उठाए, और आगे तक ले जाएं। उन्होंनें महिला एवं बाल ¨हसा के विरुद्ध आवाज उठाने व सभ्य समाज में महिलाओं एवं बच्चों के प्रति ¨हसा को अक्षम्य बताया। साथ ही वर्तमान हालात की बेहतरी के लिए पुरुष प्रधान मानसिकता में बदलाव लाने की बात कही। डीजी सुतापा सान्याल बोली एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ 30 फीसदी महिलाएं ही अपने प्रति हुई ¨हसा को लोगों से साझा करती हैं और 1 फीसदी महिलाएं मामले को पुलिस तक पहुंचाती हैं। वह बोली आधी आबादी को सम्मान के साथ जीने के हक से ही देश को विकासशील से विकसित बनाया जा सकता है। विवि के कुलपति प्रो निशीथ राय ने कहा जब तक पुरुष प्रधान मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा, स्थिति में सुधार नहीं होगा। कुलपति बोले, दृष्टिबाधित महिलाओं व बच्चों की मुश्किलें अधिक होती हैं। उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने में समावेशी शिक्षा काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या में कमी आई है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि समाज के कुछ हिस्से में बच्चियों को मारने की कुप्रथा प्रचलित है। जो कि बेहद अमानवीय एवं शर्मनाक है।