बजट जारी हो तो मिले ब्रिटिशकालीन वर्कशॉप को संजीवनी
लखनऊ : रेलवे की जिस यूनिट में इंजनों, बोगियों और पुलों की मरम्मत का जिम्मा है। उन ब्रिटिशकालीन वर्कश
लखनऊ : रेलवे की जिस यूनिट में इंजनों, बोगियों और पुलों की मरम्मत का जिम्मा है। उन ब्रिटिशकालीन वर्कशॉप की हालत जर्जर है। हालत यह है कि रेलवे इनके सुधार के लिए बजट तक मुहैया नहीं करवा पा रहा है। लखनऊ के इन तीनों बड़े वर्कशॉप में 10 हजार से अधिक रेलकर्मी तैनात हैं। यहां वर्षो पुराने उपकरणों के भरोसे रेलवे कर्मचारी काम कर रहे हैं।
लखनऊ में बोगियों की मरम्मत और ओवरहॉलिंग के लिए कैरिज एंड वैगन वर्कशॉप है। इसकी स्थापना 1865 में अवध और रुहेलखंड रेलवे ने की थी। आज भी लगभग चार हजार कर्मचारी इस वर्कशॉप में तैनात हैं। लखनऊ मंडल के अलावा इलाहाबाद सहित आसपास के मंडलों की बोगियों को ओवरहॉलिंग के लिए यहीं लाया जाता है। हाल यह है कि हर साल दो से तीन बड़े अग्निकांड इस वर्कशॉप में होते हैं। इसके बावजूद आज तक अग्निशमन उपकरणों की व्यवस्था नहीं हो सकी है। जिन भारी भरकम क्रेनों से बोगियों के एक्सल व अन्य हिस्सों को उठाया जाता है। वह भी वर्षो पुरानी हैं। पिछले बजट में केवल 55 लाख रुपये का बजट वर्कशॉप आधुनिकीकरण के लिए जारी हुआ था। रेल इंजनों के रखरखाव के लिए डीजल एंड लोको वर्कशॉप की स्थापना 1867 में हुई थी। यहां करीब चार हजार कर्मचारी इंजनों की मरम्मत करते हैं। यहां जिस पिट पर रेलकर्मी काम करते हैं वह टूटी हुई हैं। शेड भी जर्जर है। कई टन भारी उपकरण उठाने वाली मशीनें 20 से 30 साल पुरानी हो गई हैं। पिछले बजट में इसके लिए 2.15 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। वहीं डीजल शेड के लिए 2.84 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था। अब तक इनका आधुनिकीकरण नहीं हो सका है। इसी तरह 1910 में स्थापित सेतु वर्कशॉप के अपग्रेडेशन के लिए पिछले बजट में 40 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था। उत्तर रेलवे के जीएम ने इन वर्कशॉप का निरीक्षण भी किया था। इसके बावजूद एक साल बीतने पर भी आधुनिकीकरण नहीं हो सका।